कबीर जयंती 2025: काशी में संत कबीर दास की विरासत का जश्न

संत कबीर जयंती 2025: श्रद्धा और उत्साह का पर्व
Sant Kabir Jayanti 2025 (social media)
Sant Kabir Jayanti 2025: हर वर्ष, देशभर में कबीरपंथी संत कबीर दास की जयंती को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस बार भी काशी, जो कबीर दास की जन्मभूमि मानी जाती है, में उनके अनुयायियों की भारी भीड़ जुटी है। कबीर मठ, जो काशी के कबीरचौरा क्षेत्र में स्थित है, इस अवसर पर श्रद्धालुओं का प्रमुख केंद्र बन जाता है। कहा जाता है कि कबीर साहब का बचपन यहीं बीता और उन्होंने अपने जीवन के 11 महत्वपूर्ण वर्ष इसी स्थान पर व्यतीत किए।
650 साल पुराना चमत्कारी कुआं
650 साल पुराना चमत्कारी कुआं
कबीर मठ में एक प्राचीन कुआं भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। यह कुआं लगभग 650 साल पुराना है और कहा जाता है कि संत कबीर ने 11 वर्षों तक इसी कुएं का जल पिया। भक्त आज भी इस कुएं के पानी को अमृत के समान मानते हैं। मान्यता है कि इस कुएं का जल मां गंगा से जुड़ा हुआ है और इसे पीने से पेट संबंधी रोगों से राहत मिलती है। इसीलिए, दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं, कुएं का जल पीते हैं और अपने घर भी ले जाते हैं। गुजरात से आई एक भक्त वंदना ने बताया कि वह हर साल कबीर जयंती पर यहां आती हैं और कुएं का जल और मिट्टी अपने घर ले जाकर पूजा करती हैं।
कबीर मठ की अन्य विशेषताएं

कबीर मठ की अन्य विशेषताएं
काशी के कबीर मठ में केवल एक पवित्र कुआं ही नहीं, बल्कि संत कबीरदास से जुड़ी कई ऐतिहासिक और दुर्लभ वस्तुएं भी देखने को मिलती हैं। यहां उनकी खड़ाऊ, त्रिशूल, करघा और दुर्लभ तस्वीर को श्रद्धा से संरक्षित किया गया है। ये वस्तुएं कबीरदास के साधारण, संयमित और आध्यात्मिक जीवन की झलक प्रस्तुत करती हैं। करघा, जिस पर वे बुनाई करते थे, उनके श्रमशील जीवन का प्रतीक है। खड़ाऊ उनके त्याग और साधु जीवन का प्रतीक है। त्रिशूल उनके आध्यात्मिक बल और निडर स्वभाव को दर्शाता है। उनकी तस्वीर, जो बहुत कम स्थानों पर देखने को मिलती है, उनके जीवन की स्मृति को जीवित रखती है। कबीर मठ में आने वाले श्रद्धालु इन वस्तुओं को देखकर भावुक हो जाते हैं और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। यह स्थान कबीरपंथियों के लिए एक तीर्थ स्थल के समान है, जहां लोग संत कबीर के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा लेते हैं।
कबीर के दोहे जीवन का मार्गदर्शन देते हैं
कबीर के दोहे जीवन का मार्गदर्शन देते हैं
संत कबीरदास को पढ़ा-लिखा नहीं माना जाता, लेकिन उनके कहे गए दोहे आज भी लोगों को गहरी सीख देते हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जात-पात और दिखावे के खिलाफ अपनी वाणी से आवाज़ उठाई।
'बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, पंछी को छाया नहीं, फल लगे अति दूर'
इसका अर्थ है कि यदि आप ऊंचे पद या स्थान पर हैं, लेकिन दूसरों के किसी काम नहीं आ रहे, तो वह बड़ा होना व्यर्थ है।
'जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान मारग में पूछो नाता, पूछ लीजिए पहचान'
इसका अर्थ है कि इंसान की पहचान उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके ज्ञान और कर्म से होनी चाहिए।
'पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, धाई के बिन दूध न निकले, सोई गुरु की सोई'
इसका अर्थ है केवल किताबें पढ़ने से कोई ज्ञानी नहीं बनता, सच्चा ज्ञान गुरु से ही प्राप्त होता है।
'बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, मैं ही तो बुरा हूं, ऐसा मन में सोई'
इसका अर्थ है जब हम दूसरों की बुराइयों को देखते हैं, तो हमें खुद की खामियां नहीं दिखतीं। आत्मचिंतन ज़रूरी है।
'माया मरी न मन मरा, मन मरा तो सब खोय. माया मरी न मन मरा, मन मरा तो सब खोय'
इसका अर्थ है जब तक मन में इच्छाएं हैं, तब तक असली मुक्ति नहीं मिल सकती। मोह और माया से ऊपर उठना जरूरी है।
संत कबीर: एक महान संत और समाज सुधारक

संत कबीर न केवल एक महान संत थे, बल्कि समाज सुधारक भी थे। उनके विचार आज भी उतने ही प्रसिद्ध हैं, जितने उनके समय में थे। काशी के कबीर मठ में उनकी जयंती पर जुटने वाली भीड़ यह दर्शाती है कि उनकी वाणी आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। कबीर का जीवन, उनके दोहे और उनके द्वारा छोड़ी गई शिक्षाएं हमें सादगी, मानवता और आत्मचिंतन का मार्ग दिखाती हैं।