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भारत की पहली महिला न्यायाधीश एम. फातिमा बीबी: एक प्रेरणादायक यात्रा

एम. फातिमा बीबी, भारत की पहली महिला न्यायाधीश, ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी सेवाओं से न्यायिक क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखा। उनके जीवन की यात्रा, शिक्षा, न्यायिक करियर और विवादों से भरे कार्यकाल को जानें। उनके योगदान ने न केवल भारतीय न्यायपालिका को प्रभावित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बना। उनके निधन के बाद, उनकी विरासत आज भी जीवित है।
 

भारत की पहली महिला न्यायाधीश का परिचय

भारत की पहली महिला न्यायाधीश एम. फातिमा बीबी: एक प्रेरणादायक यात्रा

भारत की पहली महिला न्यायाधीश: एम. फातिमा बीबी (M. Fatima Beevi) ने सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में कार्य कर एक नया इतिहास रचा। उनका जन्म 30 अप्रैल 1927 को हुआ और वे न्यायिक क्षेत्र में महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन गईं। न केवल वे सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश थीं, बल्कि सेवानिवृत्ति के बाद केरल की राज्यपाल भी बनीं। उनकी न्यायप्रियता और विधि क्षेत्र में योगदान ने भारतीय न्याय प्रणाली में महिलाओं की भागीदारी को एक नई दिशा दी। यह लेख उनकी प्रेरणादायक यात्रा का विस्तृत वर्णन करता है।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

एम. फातिमा बीबी का जन्म 30 अप्रैल 1927 को त्रावणकोर साम्राज्य (वर्तमान केरल) के पठानमथिट्टा जिले में हुआ। उनका पूरा नाम मीरा साहिब फातिमा बीबी था। वह अन्नवीटिल मीर साहिब और खदीजा बीबी की संतान थीं। उनका प्रारंभिक जीवन शिक्षा और कानून के प्रति गहरी रुचि के साथ बीता।

फातिमा बीबी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा टाउन स्कूल और कैथोलिकेट हाई स्कूल, पठानमथिट्टा से प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने तिरुवनंतपुरम के महिला कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से रसायन विज्ञान में स्नातक (बीएससी) की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने कानून के क्षेत्र में करियर बनाने का निर्णय लिया और सरकारी लॉ कॉलेज, तिरुवनंतपुरम से एलएलबी (बैचलर ऑफ लॉ) की डिग्री प्राप्त की।


न्यायिक सफर

न्यायिक सफर

एम. फातिमा बीबी को 14 नवंबर 1950 को अधिवक्ता के रूप में नामांकित किया गया। उन्होंने उसी वर्ष बार काउंसिल की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने केरल की निचली न्यायपालिका से की और मई 1958 में मुंसिफ (न्यायिक मजिस्ट्रेट) के रूप में नियुक्त हुईं।

उनकी काबिलियत को देखते हुए, 1968 में उन्हें अधीनस्थ न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। इसके बाद, 1972 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और 1974 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति मिली।


भारत की पहली महिला न्यायाधीश

भारत की पहली महिला न्यायाधीश

उनकी प्रतिष्ठा को देखते हुए, 6 अक्टूबर 1989 को उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। इस प्रकार, वह सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनीं। उन्होंने 29 अप्रैल 1992 को सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्ति ली।


राज्यपाल के रूप में कार्यकाल

राज्यपाल के रूप में कार्यकाल

सेवानिवृत्ति के बाद, एम. फातिमा बीबी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य के रूप में कार्य किया और 1997 से 2001 तक तमिलनाडु की राज्यपाल रहीं। 25 जनवरी 1997 को उन्हें राज्यपाल नियुक्त किया गया।


विवाद और आलोचना

विवाद और आलोचना

उनका कार्यकाल कई विवादों से घिरा रहा। 2001 में विधानसभा चुनावों के बाद, उन्होंने जयललिता को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई, जबकि वह कानूनी रूप से चुनाव लड़ने के अयोग्य थीं। इस निर्णय को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गईं।


एक प्रतिष्ठित न्यायविद

एक प्रतिष्ठित न्यायविद

एम. फातिमा बीबी ने न केवल न्यायपालिका में बल्कि प्रशासनिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तमिलनाडु की राज्यपाल रहते हुए, उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय की कुलाधिपति के रूप में भी कार्य किया।


निधन और विरासत

निधन और विरासत

एम. फातिमा बीबी का निधन 23 नवंबर 2023 को 96 वर्ष की आयु में हुआ। उनके योगदान को देखते हुए, उन्हें 2024 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।


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