तेलुगू सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार: पी. भानुमति रामकृष्ण की अनकही कहानी
पी. भानुमति रामकृष्ण: एक अद्वितीय प्रतिभा
नई दिल्ली, 23 दिसंबर। सिनेमा की दुनिया में कई सितारे आए और गए, लेकिन कुछ ऐसे दिग्गज हैं जिनकी कला और व्यक्तित्व ने उन्हें हमेशा के लिए लोगों के दिलों में बसा दिया है। उनमें से एक हैं पी. भानुमति रामकृष्ण, जो तेलुगू सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार मानी जाती हैं। उनकी फीस इतनी अधिक थी कि किसी फिल्म के बजट का लगभग आधा हिस्सा केवल उन्हें देने में खर्च हो जाता था, लेकिन उनके अभिनय की जादूगरी हर पैसे की कीमत को सही ठहराती थी। उन्होंने ऐसे किरदार निभाए कि दर्शक हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते और कभी-कभी उनकी भावुक अदाकारी से आंखें भी नम हो जाती थीं।
भानुमति केवल एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक उत्कृष्ट गायक, निर्देशक, निर्माता और संगीतकार भी थीं। उनके करियर में 60 वर्षों में 97 फिल्मों का योगदान रहा, जिनमें 58 तेलुगु, 34 तमिल और 5 हिंदी फिल्में शामिल थीं। उनकी बहुमुखी प्रतिभा के लिए उन्हें जाना जाता था।
भानुमति का जन्म 7 सितंबर 1925 को आंध्र प्रदेश के ओंगोल में हुआ। उनके माता-पिता संगीत में पारंगत थे, इसलिए उन्होंने बचपन से ही भानुमति को संगीत सिखाना शुरू कर दिया। उन्होंने छोटी उम्र में ही स्टेज पर परफॉर्म करना शुरू किया, जो उनके फिल्मी करियर की शुरुआत थी। 13 साल की उम्र में उन्हें तेलुगु फिल्म 'वर विक्रमायम' में काम करने का अवसर मिला।
जल्द ही भानुमति ने अपनी अद्भुत प्रतिभा का जादू दिखाना शुरू कर दिया। उनके समय में फिल्म के कुल बजट का आधा हिस्सा केवल उनकी फीस में चला जाता था। चाहे वह म्यूजिकल ब्लॉकबस्टर 'मल्लेश्वरी' हो या रोमांटिक फिल्म 'कृष्ण प्रेम', भानुमति ने हमेशा दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाई।
उनकी जिंदगी में रोमांस भी उतना ही रंगीन था जितना उनकी फिल्मों की कहानी। शूटिंग के दौरान उन्हें असिस्टेंट डायरेक्टर रामकृष्ण से प्यार हो गया। उनके माता-पिता ने इस शादी को मंजूरी नहीं दी, लेकिन भानुमति ने अपनी चाहत के लिए घर से भागकर शादी कर ली। शादी के बाद भी उन्होंने फिल्मों को अलविदा नहीं कहा। उनके करियर का बड़ा मोड़ फिल्म 'स्वर्गसीमा' रही।
भानुमति सिर्फ अभिनय में ही नहीं, बल्कि संगीत में भी माहिर थीं। उन्होंने कई फिल्मों में अपने गाने खुद गाए और संगीत भी दिया। उनकी आवाज में जो भाव होता था, वह सीधे दिल को छू जाता था। यही कारण है कि आज भी उनके गाने लोगों की यादों में बसे हैं।
1953 में भानुमति ने फिल्म डायरेक्शन की दुनिया में कदम रखा और 'चंडीरानी' से डायरेक्टिंग डेब्यू किया, जिससे वह भारत की पहली महिला निर्देशक बन गईं। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने बेटे के नाम पर 'भारणी स्टूडियो' खोला और अपने पति रामकृष्ण को फिल्म निर्देशक के तौर पर मौका दिया। उनके बैनर तले बनी फिल्में जैसे 'लैला मजनू' और 'विप्रनारायण' ने नेशनल अवॉर्ड जीते।
भानुमति की पर्सनैलिटी इतनी दमदार थी कि उनके एटीट्यूड की कहानियां आज भी सुनाई जाती हैं। एक बार किसी रिपोर्टर ने पूछा कि आप टॉप मेल सुपरस्टार्स के साथ काम करती हैं, तो भानुमति ने कहा, 'मैं उनके साथ काम नहीं करती, वे मेरे साथ काम करते हैं।'
1966 में उन्हें पद्मश्री और 2003 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। उनके योगदान को मान्यता देते हुए 2013 में सिनेमा के 100 साल पूरे होने पर भारत पोस्टल डिपार्टमेंट ने उन्हें समर्पित डाक टिकट भी जारी किया।
चाहे अभिनय हो, संगीत हो, डायरेक्शन हो या लेखन, उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी। यही कारण है कि भानुमति आज भी साउथ सिनेमा की आइकॉन और भारतीय सिनेमा की प्रेरणा मानी जाती हैं।
24 दिसंबर 2005 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनकी फिल्में, गाने और कहानी आज भी लोगों के दिलों में जिन्दा हैं। भानुमति केवल एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक लीजेंड थीं जिन्होंने अपने टैलेंट और आत्मविश्वास से सिनेमा की दुनिया में अमिट छाप छोड़ी।
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