क्या आप जानते हैं? अचार की अनोखी कहानी और इसकी वैश्विक यात्रा!
अचार: भारतीय भोजन का अनिवार्य हिस्सा
Pickle Ki Story (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Pickle Ki Story (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
अचार की कहानी: भारतीय भोजन में अचार एक ऐसा तत्व है, जिसके बिना कई लोगों का खाना अधूरा लगता है। यह न केवल खाने में तीखा और चटपटा स्वाद लाता है, बल्कि इसकी खुशबू और रंग भी थाली को आकर्षक बनाते हैं। अक्सर अचार भोजन के साथ परोसा जाता है, लेकिन इसका महत्व किसी मुख्य व्यंजन से कम नहीं है।
अचार बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है और यह भारत की सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुड़ी हुई है। फलों और सब्जियों को अम्लीय, नमकीन और मसालेदार मिश्रण में डालकर लंबे समय तक सुरक्षित रखने की यह कला हजारों वर्षों से चली आ रही है।
प्राचीन इतिहास और वैश्विक यात्रा
न्यूयॉर्क फ़ूड म्यूज़ियम के अनुसार, अचार का सबसे पहला दस्तावेज़ी प्रमाण लगभग 2030 ईसा पूर्व का है, जब खीरे को नमक मिले पानी में डुबोकर मेसोपोटेमिया (वर्तमान ईरान-इराक क्षेत्र) ले जाया गया था। उस समय यह विधि मुख्य रूप से खाद्य वस्तुओं को यात्रा के दौरान खराब होने से बचाने के लिए अपनाई जाती थी।
यह भी माना जाता है कि खीरे की उत्पत्ति हिमालय की तलहटी में हुई थी, जहाँ से यह अन्य सभ्यताओं तक पहुँचा और धीरे-धीरे अचार बनाने की विधि विभिन्न क्षेत्रों में फैल गई।
स्वास्थ्य और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
अचार केवल स्वाद बढ़ाने वाला तत्व नहीं था, बल्कि प्राचीन काल में इसके स्वास्थ्य लाभों के कारण भी यह लोकप्रिय रहा। महान यूनानी दार्शनिक अरस्तु (384-322 ई.पू.) ने भी अचार के औषधीय गुणों का उल्लेख किया था। उन्होंने लिखा कि अचार में शरीर को रोगों से बचाने और पाचन को बेहतर करने की क्षमता होती है।
इतिहासकारों के अनुसार, रोमन सम्राट जूलियस सीज़र (100-44 ई.पू.) भी अचार का बड़ा प्रशंसक था। कहा जाता है कि वह अपने सैनिकों को युद्ध से पहले अचार खिलाता था, क्योंकि उसका मानना था कि इससे न केवल शारीरिक ताकत मिलती है, बल्कि यह मानसिक दृढ़ता भी बढ़ाता है।
माना जाता है कि पहली सदी में रोमन सम्राट टैबीरियस (42 ईसा पूर्व – 37 ईस्वी) खीरे के अचार का बहुत बड़ा शौकीन था। उसका सख़्त आदेश था कि उसके हर भोजन में खीरे का अचार अवश्य परोसा जाए। प्रसिद्ध रोमन लेखक गैस प्लिनियस सीकंड्स के अनुसार, टैबीरियस को सालभर ताज़ा खीरे मिलते रहें, इसके लिए विशेष ग्रीनहाउस में खीरे उगाए जाते थे।
सदियों बाद जब समुद्री यात्राएँ तेज़ हुईं, तो क्रिस्टोफ़र कोलंबस (1451–1506) और अमेरीगो वेसपुची (1454–1512) जैसे खोजी यायावरों ने अपने लंबे समुद्री अभियानों के दौरान अचार को भोजन का एक ज़रूरी हिस्सा बना लिया।
भारतीय अचार संस्कृति
हालाँकि, भारत में अचार बनाने की परंपरा इन सबसे कहीं अधिक विकसित और रचनात्मक थी। अचार केवल संरक्षण का साधन नहीं था, बल्कि यह भोजन की एक कलात्मक अभिव्यक्ति बन चुका था। 14वीं सदी में जब प्रसिद्ध मोरक्को के यात्री इब्न-ए-बतूता (1304–1377) भारत आए, तब उन्होंने भारतीय अचार संस्कृति की समृद्धता का उल्लेख किया।
इब्न-ए-बतूता ने लिखा था कि आम और अदरक का अचार भारतवासियों के भोजन का अभिन्न हिस्सा था। उनके शब्दों में:- "यहाँ एक फल (आम) होता है जो आकार में आलूबुख़ारे जितना बड़ा होता है। जब यह फल अधपका होकर पेड़ से गिर जाता है, तो लोग इसे नमक में डालकर संरक्षित करते हैं।"
प्रसिद्ध खाद्य इतिहासकार के.टी. अच्या की पुस्तक "A Historical Dictionary of Indian Food" में उल्लेख है कि भारतीय अचारों की परंपरा बेहद समृद्ध और प्राचीन है।
भारत में हर क्षेत्र और समुदाय की अपनी अनूठी अचार संस्कृति है। गुजरात और महाराष्ट्र में मीठा आम का अचार बनाया जाता है, जबकि उत्तर प्रदेश में आम का तीखा और चटपटा अचार सबसे लोकप्रिय है। दक्षिण भारत में ठोकू अचार बनाया जाता है, जो आम को पीसकर मसालों के साथ पकाया जाता है।
दूसरे देशों में अचार
भारत में अचार हर घर की शान है, लेकिन कई अन्य देशों में भी अचार का विशेष स्थान है। दक्षिण कोरिया में किमची, जापान में सुकेमोनो, जर्मनी में सॉरक्राउट, और अमेरिका में डिल पिकल जैसे अचार बहुत प्रसिद्ध हैं।
अचार सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। हर देश की अपनी परंपरा और स्वाद है, जो उनके भोजन, मौसम और जीवनशैली से जुड़ी हुई है।
क्या आप जानते हैं? क्लियोपेट्रा को अचार खाने का बेहद शौक़ था। कहा जाता है कि वह न केवल अचार को बड़े चाव से खाती थीं, बल्कि उनका मानना था कि उनकी ख़ूबसूरती का असली राज़ भी अचार ही है।
ये सभी अचार आज भी देशभर के बाज़ारों और रसोईघरों में अत्यंत चाव से खाए जाते हैं। अचार केवल स्वाद नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और विविधता का प्रतीक बन चुका है।
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