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क्या आप जानते हैं 1943 में रिलीज हुई फिल्म 'किस्मत' ने कैसे बदली थी संगीत की दुनिया?

इस लेख में हम अनिल विश्वास की संगीत यात्रा और उनकी प्रसिद्ध फिल्म 'किस्मत' के बारे में जानेंगे। 1943 में रिलीज हुई इस फिल्म ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल की, बल्कि भारतीय संगीत में भी एक नई दिशा दी। अनिल विश्वास के द्वारा रचित गीतों ने लोगों के दिलों में देशभक्ति और प्रेम की भावना जगाई। जानें कैसे उन्होंने अपने संगीत से सिनेमा की दुनिया को प्रभावित किया और आज भी उनकी रचनाएं क्यों सुनने में ताजगी भरी लगती हैं।
 
क्या आप जानते हैं 1943 में रिलीज हुई फिल्म 'किस्मत' ने कैसे बदली थी संगीत की दुनिया?

अनिल विश्वास: संगीत के जादूगर


मुंबई, 6 जुलाई। आज के समय में, एक फिल्म को ब्लॉकबस्टर का दर्जा तब मिलता है जब वह 100 करोड़ का आंकड़ा पार करती है। यह सच है कि समय के साथ सब कुछ बदल गया है। 1960 के दशक में करोड़ों की कमाई एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब देश स्वतंत्र नहीं हुआ था, तब भी एक फिल्म ने 1 करोड़ से अधिक की कमाई की थी? इस फिल्म का नाम 'किस्मत' था, जो 1943 में प्रदर्शित हुई। इस फिल्म की सफलता का श्रेय संगीतकार अनिल विश्वास को दिया जाता है, जिन्होंने इसके लिए अद्भुत संगीत तैयार किया। उनके द्वारा रचित गीत 'आज हिमालय की चोटी से, फिर हमने ललकारा है...' ने देशभक्ति की भावना को जागृत किया, जबकि 'धीरे धीरे आ रे बादल...' ने लोगों के दिलों को छू लिया।


अनिल विश्वास का जन्म 7 जुलाई 1914 को पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) के बरीसाल में हुआ। उन्हें बचपन से ही संगीत में गहरी रुचि थी। किशोरावस्था में, वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहे और इसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा।


काम की तलाश में वे मुंबई आए और थिएटर में काम करना शुरू किया, जिसके बाद उन्होंने फिल्म उद्योग में कदम रखा। शुरुआत में, उन्होंने कलकत्ता की कुछ फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया, लेकिन असली पहचान उन्हें 'बॉम्बे टॉकीज' से मिली। उन्होंने न केवल बेहतरीन गीत दिए, बल्कि फिल्म संगीत की दिशा को भी नया मोड़ दिया।


'किस्मत' के बाद, अनिल विश्वास हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के प्रमुख संगीतकारों में गिने जाने लगे। उन्होंने मुकेश, तलत महमूद, लता मंगेशकर, मीना कपूर और सुधा मल्होत्रा जैसे गायकों को पहला मौका दिया और उन्हें पहचान दिलाई। उन्होंने गजल, ठुमरी, दादरा, कजरी, और चैती जैसे उपशास्त्रीय संगीत को भी फिल्मों में शामिल किया।


1940 और 50 के दशक में, अनिल विश्वास का संगीत पूरे देश में छाया रहा। उस समय जब अधिकांश गाने साधारण होते थे, उन्होंने उनमें गहराई और नई परतें जोड़ीं। उनकी रचनाएं आज भी ताजगी से भरी लगती हैं। 'अनोखा प्यार', 'आरजू', 'तराना', 'आकाश', 'हमदर्द' जैसी फिल्मों में उनका संगीत अद्वितीय था।


उन्होंने एक रागमाला भी बनाई, जिसमें चार अलग-अलग रागों को एक गीत में समाहित किया गया। यह प्रयोग उस समय के लिए अनोखा था।


संगीतकार के रूप में, उन्होंने 1965 में रिलीज हुई 'छोटी छोटी बातें' के लिए भी काम किया। इस फिल्म के गाने 'जिंदगी ख्वाब है...' और 'कुछ और जमाना कहता है...' उनकी कलात्मक सोच का प्रमाण हैं। हालांकि फिल्म की कहानी को खास पहचान नहीं मिली, लेकिन इसका संगीत आज भी लोगों की जुबान पर है।


फिल्मों से संन्यास लेने के बाद, अनिल विश्वास दिल्ली चले गए और संगीत शिक्षा में जुट गए। उन्होंने आकाशवाणी और संगीत नाटक अकादमी जैसे संस्थानों के साथ मिलकर काम किया।


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