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नीरज पांडे: साइलेंट सस्पेंस के मास्टर, जो दर्शकों के दिलों में छोड़ते हैं गहरी छाप

नीरज पांडे, जो साइलेंट सस्पेंस और ग्रे किरदारों के लिए जाने जाते हैं, ने हिंदी सिनेमा में अपनी अनोखी पहचान बनाई है। उनका सफर 2008 में 'ए वेडनेसडे' से शुरू हुआ, जिसने उन्हें रातों-रात पहचान दिलाई। नीरज की फिल्मों में न तो भव्य एक्शन होते हैं और न ही जबरदस्ती के संवाद, फिर भी वे दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ते हैं। जानें उनके करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर उनकी उपलब्धियों के बारे में।
 
नीरज पांडे: साइलेंट सस्पेंस के मास्टर, जो दर्शकों के दिलों में छोड़ते हैं गहरी छाप

नीरज पांडे का अनोखा सफर




मुंबई, 16 दिसंबर। जब हिंदी सिनेमा में ऐसी फिल्मों की चर्चा होती है जो बिना शोर-गुल के दर्शकों के मन में सवाल छोड़ जाती हैं, तो निर्देशक नीरज पांडे का नाम सबसे पहले आता है। उनकी फिल्मों में न तो भव्य एक्शन दृश्य होते हैं और न ही जबरदस्ती की संवाद, फिर भी दर्शक फिल्म देखने के बाद काफी समय तक सोचते रहते हैं। उनके प्रोजेक्ट्स की पहचान साइलेंट सस्पेंस, थ्रिलर और ग्रे किरदारों के लिए होती है।


नीरज पांडे का जन्म 17 दिसंबर 1973 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में हुआ। उनके पिता बिहार के आरा जिले से थे और हावड़ा में एक जर्मन कंपनी में कार्यरत थे। नीरज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हावड़ा में प्राप्त की। पढ़ाई में वे उतने अच्छे नहीं थे और एक समय वे नौवीं कक्षा में फेल भी हो गए थे। लेकिन बचपन से ही उन्हें कहानियों, कविताओं और शायरी में गहरी रुचि थी। बाद में वे दिल्ली आए और दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री हासिल की।


शिक्षा पूरी करने के बाद, नीरज ने टीवी इंडस्ट्री में अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने दिल्ली की एक प्रोडक्शन कंपनी में काम किया, जहां उन्हें कैमरा, स्क्रिप्ट और प्रोडक्शन की बारीकियों का ज्ञान मिला। 2002 में वे मुंबई पहुंचे और डॉक्यूमेंट्री, विज्ञापन और शॉर्ट फिल्में बनाने लगे। इस दौरान उन्होंने अपने मित्र शीतल भाटिया के साथ मिलकर एक प्रोडक्शन हाउस की स्थापना की, जो बाद में फ्राइडे फिल्मवर्क्स के नाम से जाना गया।


उनकी पहली फिल्म 'ए वेडनेसडे' 2008 में आई, जिसने उन्हें रातों-रात पहचान दिलाई। यह फिल्म आतंकवाद जैसे संवेदनशील विषय पर आधारित थी, लेकिन इसमें कोई नारेबाजी नहीं थी। फिल्म ने एक आम आदमी, पुलिस अधिकारी और सिस्टम के बीच की जटिलता को सरलता से दर्शाया। नसीरुद्दीन शाह और अनुपम खेर जैसे कलाकारों के किरदार पूरी तरह ग्रे थे, यानी ना पूरी तरह सही, ना पूरी तरह गलत। यही नीरज पांडे की कहानी कहने की शैली की शुरुआत थी।


'स्पेशल 26' के बाद, जिसमें नकली सीबीआई अधिकारी बनकर अपराध करने वाले लोग थे, नीरज ने 'बेबी' में खुफिया एजेंसियों की दुनिया को दिखाया।


2016 में आई 'एम. एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी' उनके करियर की सबसे बड़ी व्यावसायिक सफलता बनी। यह फिल्म अन्य फिल्मों से अलग थी, लेकिन इसमें संघर्ष, धैर्य और आंतरिक मजबूती की कहानी थी। इसके बाद 'अय्यारी' जैसी फिल्म आई, जो बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, लेकिन इसमें भी सिस्टम, सेना और नैतिक दुविधा जैसे विषय शामिल थे।


नीरज पांडे ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी अपनी खास शैली को बनाए रखा। 'स्पेशल ऑप्स' और 'खाकी: द बिहार चैप्टर' जैसी वेब सीरीज में देशभक्ति, राजनीति, अपराध और सस्पेंस का संतुलन स्पष्ट दिखाई देता है। उनके किरदार अक्सर ऐसे होते हैं, जो परिस्थितियों का सामना करते हैं।


नीरज पांडे ने कई पुरस्कार अपने नाम किए हैं। 'ए वेडनेसडे' के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा, उनकी फिल्मों और सीरीज को कई फिल्मफेयर और ओटीटी अवार्ड्स में सराहना मिली है।


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