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छत्रपति संभाजी महाराज के विश्वासघात की कहानी: गणोजी और कान्होजी शिर्के का काला अध्याय

इस लेख में छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन और उनके साथ हुए विश्वासघात की कहानी का वर्णन किया गया है। गणोजी और कान्होजी शिर्के की गद्दारी ने किस प्रकार स्वराज्य को प्रभावित किया, यह जानने के लिए पढ़ें। इस घटना ने भारतीय इतिहास में एक काला अध्याय जोड़ा है, जो आज भी चर्चा का विषय है।
 

छत्रपति संभाजी को किसने धोखा दिया?

छत्रपति संभाजी महाराज के विश्वासघात की कहानी: गणोजी और कान्होजी शिर्के का काला अध्याय

छत्रपति संभाजी महाराज का इतिहास (सोशल मीडिया से)

छत्रपति संभाजी को किसने धोखा दिया था: भारतीय इतिहास में कई ऐसे शासक रहे हैं जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए अपने ही लोगों के साथ विश्वासघात किया। इस विश्वासघात ने विदेशी आक्रांताओं को भारत में पैर जमाने में मदद की। इसके परिणामस्वरूप कई भारतीय राजाओं को पराजय का सामना करना पड़ा और उन्हें अपनी जान भी गंवानी पड़ी। इसी संदर्भ में छत्रपति संभाजी महाराज का एक महत्वपूर्ण किस्सा है।


जब मुगलों ने भारत में कदम रखा, तब मराठों ने स्वराज्य की स्थापना के लिए कई संघर्ष किए। शिवाजी महाराज की नीतियों ने उनके साम्राज्य को मजबूती दी। लेकिन शिवाजी महाराज के निधन के बाद, कुछ मराठा नेताओं ने गद्दारी की, जिनमें गणोजी शिर्के और कान्होजी शिर्के शामिल थे। इन दोनों ने अपनी स्वार्थी महत्वाकांक्षाओं के चलते औरंगजेब के साथ हाथ मिलाया, जिससे स्वराज्य को बड़ा धक्का लगा।


गणोजी और कान्होजी शिर्के का परिचय

गणोजी और कान्होजी शिर्के कौन थे?


गणोजी और कान्हो जी शिर्के छत्रपति संभाजी महाराज की पत्नी महारानी येसूबाई के भाई थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में दाभोल क्षेत्र के प्रमुख थे। शिवाजी महाराज ने दाभोल पर कब्जा कर लिया था, लेकिन शिर्के भाइयों का अपने क्षेत्र और सत्ता के प्रति गहरा लगाव था। वे चाहते थे कि दाभोल की गद्दी पर वे स्वयं उत्तराधिकारी बनें, लेकिन उन्हें मराठा साम्राज्य में सूबेदार का पद मिला, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया।


गद्दारी की कहानी

शिवाजी महाराज के निधन के बाद, उनके बेटे छत्रपति संभाजी महाराज ने दाभोल को पुनः कब्जे में ले लिया। इसके बाद गणोजी और कान्हो जी शिर्के ने संभाजी महाराज से दाभोल की सत्ता को लेकर समझौता करने की कोशिश की, लेकिन संभाजी ने उन्हें नकार दिया। इस अस्वीकार के बाद, शिर्के भाइयों ने स्वराज्य के प्रति अपनी निष्ठा को त्यागते हुए, मुगलों से संपर्क किया और संभाजी महाराज के खिलाफ षड्यंत्र रचने लगे।


गद्दारी का परिणाम - 1689


1689 में, जब औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य पर आक्रमण तेज किया, तब गणोजी और कान्होजी शिर्के ने उसे संभाजी महाराज के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने मुगल सेना के सरदार मकरब खान से मिलकर संभाजी महाराज को पकड़वाने में मदद की। मकरब खान ने उन्हें लालच दिया कि अगर वे संभाजी महाराज को पकड़ने में मदद करते हैं, तो उन्हें दक्षिण का आधा राज्य दे दिया जाएगा। इस प्रकार, 1689 में संभाजी महाराज को धोखे से गिरफ्तार कर लिया गया।


संभाजी महाराज की यातनाएं

संभाजी महाराज को दी गई यातनाएं


1 फरवरी, 1689 को छत्रपति संभाजी महाराज को औरंगजेब के सामने पकड़कर तुलापुर किले में ले जाया गया। वहां औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम कुबूल करने के लिए कहा, लेकिन संभाजी ने इसका दृढ़ विरोध किया। कहा जाता है कि औरंगजेब की सेना ने उन्हें लगभग 38 दिनों तक उल्टा लटका कर पीटा और उनकी आंखें निकाल दीं। अंततः 11 मार्च, 1689 को उनके सिर को तन से जुदा कर दिया गया।


गणोजी और कान्होजी का अंत

गणोजी और कान्होजी शिर्के का अंत


छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, मराठा साम्राज्य संकट में पड़ गया था। गणोजी और कान्होजी शिर्के ने मुगलों के पक्ष में कार्य किया, लेकिन बाद में उन्होंने छत्रपति राजाराम महाराज को जिंजी से बाहर निकालने में सहायता की। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, मुगलों का नियंत्रण कमजोर पड़ा और शिर्के भाई मुक्त हो गए। लेकिन उन्हें दोबारा वो सम्मान हासिल नहीं हो सका।


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