Movie prime

क्या है फिल्म 'तिलोत्तमा' की कहानी? जानें निर्देशक उज्ज्वल चटर्जी की अनकही बातें

फिल्म 'तिलोत्तमा' एक नई बंगाली फिल्म है, जिसका निर्देशन उज्ज्वल चटर्जी ने किया है। यह फिल्म एक मां की कहानी है, जो अपनी बेटी को खोने के बाद न्याय की खोज में निकलती है। निर्देशक ने इसे केवल एक कहानी नहीं, बल्कि एक गवाही के रूप में प्रस्तुत किया है। जानें इस फिल्म की प्रेरणा और इसके पीछे की गहरी भावनाएं।
 
क्या है फिल्म 'तिलोत्तमा' की कहानी? जानें निर्देशक उज्ज्वल चटर्जी की अनकही बातें

फिल्म 'तिलोत्तमा' का अनावरण


मुंबई, 30 अक्टूबर। सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज की जटिलताओं को समझने का एक माध्यम भी है। इसी विचार के साथ, दो बार नेशनल अवार्ड जीत चुके निर्देशक उज्ज्वल चटर्जी ने अपनी नई बंगाली फिल्म 'तिलोत्तमा' का परिचय दिया है।


यह फिल्म राज्य के स्वामित्व वाले प्रसार भारती द्वारा प्रस्तुत की जाएगी और इसे यूसीसी एंटरटेनमेंट्स ने निर्मित किया है।


9 अगस्त 2024 को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक जूनियर डॉक्टर की हत्या और दुष्कर्म की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस घटना ने उज्ज्वल चटर्जी को एक ऐसी कहानी लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसे वह अब 'तिलोत्तमा' के माध्यम से दर्शकों के सामने लाने जा रहे हैं।


उज्ज्वल चटर्जी ने मीडिया से बातचीत में कहा, ''यह फिल्म केवल एक कहानी नहीं है, बल्कि यह एक गवाही है। मैंने कभी नहीं सोचा कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन के लिए होता है। 'तिलोत्तमा' वह कहानी है जिसने मुझे चैन से सोने नहीं दिया। जब मैंने इस घटना को देखा, तो मुझे समझ में आया कि अब चुप रहना कोई विकल्प नहीं है। एक फिल्मकार किसी के घाव को नहीं भर सकता, लेकिन वह यह सुनिश्चित कर सकता है कि उस घाव को भुलाया न जाए।''


फिल्म की कहानी एक मां के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपनी प्यारी बेटी को खो देती है। बेटी के खोने का दर्द उसकी ताकत बन जाता है। मां अपने दुख को नुक्कड़ नाटक, जीवनमुखी गान और मूक अभिनय के माध्यम से व्यक्त करती है। हर गीत और हर प्रदर्शन उसके गुस्से और न्याय की खोज का प्रतीक बन जाता है।


इस फिल्म की कहानी जर्मन मां मैरिएन बाकमायर की कहानी से प्रेरित है, जिसने अपनी बेटी के बलात्कारी को अदालत में गोली मारी थी। निर्देशक ने स्पष्ट किया कि यह किसी की नकल नहीं है, बल्कि यह भावनाओं की समानता, गुस्से और विश्वास के बंधन की कहानी है। जब एक महिला अन्याय के खिलाफ खड़ी होती है, तो वह केवल अपने लिए नहीं लड़ती, बल्कि समाज के संतुलन को भी बहाल करती है।


उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म में मां का किरदार साधारण नहीं है, बल्कि यह विचार और चेतना का प्रतीक है। उसकी हर क्रिया और प्रदर्शन एक प्रकार का विद्रोह है।


OTT