सिकंदर और दंडमिस: जब महान विजेता ने साधु से सीखा जीवन का असली अर्थ

सिकंदर और दंडमिस की अनोखी मुलाकात
Sikandar and Dandamis
Sikandar and Dandamis: सिकंदर महान, जिसे अलेक्जेंडर द ग्रेट के नाम से जाना जाता है, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का एक ऐसा योद्धा था जिसने आधे से अधिक ज्ञात विश्व पर विजय प्राप्त की। मकदूनिया का यह शासक फारस, मिस्र, मेसोपोटामिया और मध्य एशिया पर राज करता था। लेकिन जब वह भारत की सीमाओं पर पहुँचा, तो उसे न केवल युद्ध का सामना करना पड़ा, बल्कि एक ऐसी संस्कृति से भी मिला जिसने उसकी सोच को चुनौती दी। 326 ईसा पूर्व में, जब सिकंदर पंजाब के तक्षशिला में था, उसकी मुलाकात एक भारतीय दार्शनिक दंडमिस से हुई। यह मुलाकात इतिहास में कम दर्ज हुई, लेकिन यह सिकंदर के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी। यह कहानी न केवल दो व्यक्तियों के बीच संवाद की है, बल्कि पश्चिमी विजेता और भारतीय दर्शन के बीच एक अनोखे संवाद की भी है।
सिकंदर का भारत अभियान
सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व में मकदूनिया के पेला में हुआ था। उनके गुरु, प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तू, ने उन्हें ज्ञान, विज्ञान और युद्ध की कला सिखाई। 20 साल की उम्र में, अपने पिता फिलिप द्वितीय की हत्या के बाद, सिकंदर राजा बना। उसने अपने पिता के सपने को पूरा करने का संकल्प लिया—एक विशाल साम्राज्य की स्थापना। उसने फारस के साम्राज्य को हराया, मिस्र में खुद को फिरौन घोषित किया और मध्य एशिया के कठिन रास्तों को पार किया। लेकिन उसकी महत्वाकांक्षा अभी खत्म नहीं हुई थी। वह दुनिया के छोर तक जाना चाहता था, और भारत, जो उस समय धन और ज्ञान का केंद्र था, उसका अगला लक्ष्य बना।
भारत में प्रवेश
326 ईसा पूर्व में, सिकंदर ने हिंदूकुश पर्वत को पार किया और भारत में प्रवेश किया। उसने तक्षशिला (आज का टैक्सिला, पाकिस्तान) के राजा अंभि को हराया, जो बिना लड़े आत्मसमर्पण कर गया। तक्षशिला उस समय का एक प्रमुख शिक्षा और व्यापार केंद्र था, जहाँ यूनानी और भारतीय संस्कृतियों का मेल हो रहा था। लेकिन सिकंदर का रास्ता आसान नहीं था। उसने झेलम नदी के किनारे पोरस (पुरु) के साथ हाइडस्पीज की लड़ाई लड़ी, जो उसकी सबसे कठिन लड़ाइयों में से एक थी। पोरस की हार के बाद भी, सिकंदर ने उसका सम्मान किया और उसे उसका राज्य लौटा दिया। लेकिन इन युद्धों के बीच, सिकंदर का सामना एक ऐसी दुनिया से हुआ, जो विचारों से जीती जाती थी—भारतीय दर्शन की दुनिया।
दंडमिस: एक साधु की कहानी
दंडमिस, जिन्हें कुछ यूनानी स्रोतों में डंडमिस या डांटमिस कहा गया, एक भारतीय साधु थे, जो जैन या वैदिक परंपरा के दिगंबर साधु माने जाते हैं। उनका असली नाम अज्ञात है, क्योंकि भारतीय परंपरा में साधु अक्सर अपने सांसारिक नाम को त्याग देते थे। यूनानी इतिहासकारों ने उन्हें एक नग्न दार्शनिक के रूप में वर्णित किया, जो जंगल में रहता था और सांसारिक सुखों से दूर था। दंडमिस तक्षशिला के आसपास के जंगलों में अपने कुछ शिष्यों के साथ रहते थे। वे पूरी तरह नग्न रहते थे, ध्यान और तपस्या में लीन, और प्रकृति के साथ एकाकार।
सिकंदर की दंडमिस से मुलाकात
सिकंदर ने अपने दूतों को दंडमिस और अन्य साधुओं को अपने दरबार में बुलाने के लिए भेजा। लेकिन दंडमिस ने सिकंदर का न्योता ठुकरा दिया। यूनानी इतिहासकार अर्रियन के अनुसार, दंडमिस ने कहा कि वह किसी राजा के सामने नहीं झुकेगा, क्योंकि उसे किसी सांसारिक चीज़ की जरूरत नहीं है। यह जवाब सिकंदर के लिए नया था। वह एक ऐसा विजेता था, जिसके सामने बड़े-बड़े राजा घुटने टेक चुके थे। लेकिन एक नग्न साधु ने न केवल उसका न्योता ठुकराया, बल्कि उसे चुनौती भी दे दी।
संवाद: शक्ति बनाम दर्शन
सिकंदर और दंडमिस की बातचीत को यूनानी इतिहासकारों ने अपने-अपने तरीके से दर्ज किया है, लेकिन इसका सार एक ही है। सिकंदर ने दंडमिस से पूछा कि वह नग्न क्यों रहता है और जंगल में क्या कर रहा है। दंडमिस ने जवाब दिया कि वह आत्मा की शांति की तलाश में है। उसने कहा कि शरीर को कपड़ों की जरूरत नहीं, क्योंकि प्रकृति ही सब कुछ देती है। उसने सिकंदर से पूछा कि वह इतनी दूर तक युद्ध क्यों लड़ रहा है, जब असली सुख भीतर छिपा है।
सिकंदर पर दंडमिस का प्रभाव
यह मुलाकात सिकंदर के लिए एक झटके जैसी थी। वह एक ऐसा शासक था, जिसके सामने दुनिया झुकती थी, लेकिन दंडमिस ने न सिर्फ उसका न्योता ठुकराया, बल्कि उसकी पूरी ज़िंदगी के मकसद पर सवाल उठा दिया। यूनानी स्रोतों के अनुसार, सिकंदर ने दंडमिस का सम्मान किया और उसे बिना परेशान किए वापस लौट गया। उसने अपने साथियों से कहा कि अगर वह राजा न होता, तो वह दंडमिस जैसा बनना चाहता।
भारतीय दर्शन की जीत
दंडमिस की कहानी सिर्फ एक मुलाकात की नहीं है। यह उस भारतीय दर्शन की ताकत को दर्शाती है, जो बिना हथियारों के भी दुनिया के सबसे बड़े विजेता को झुका सकता था। सिकंदर ने भारत के कई राजाओं को हराया, लेकिन दंडमिस जैसे साधु ने उसे विचारों के मैदान में चुनौती दी। यह मुलाकात दो सभ्यताओं—यूनानी और भारतीय—के बीच एक अनोखा संवाद थी।
क्यों भूल गई यह कहानी
यह कहानी कम चर्चित है, क्योंकि सिकंदर के इतिहास को अक्सर उसके युद्धों और विजयों के चश्मे से देखा जाता है। लेकिन दंडमिस की कहानी इसलिए भी दब गई, क्योंकि यह सिकंदर की कमज़ोरी को उजागर करती है। वह एक ऐसा शासक था, जो दुनिया जीतना चाहता था, लेकिन एक साधु के सामने उसकी सारी शक्ति बेकार थी।