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ब्लाउज फैशन: भारतीय परिधान में बदलाव की कहानी

ब्लाउज का फैशन भारतीय महिलाओं के परिधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। इस लेख में हम जानेंगे कि ब्लाउज की शुरुआत कैसे हुई और इसके पीछे की सामाजिक और सांस्कृतिक कहानियाँ क्या हैं। प्राचीन काल से लेकर आज तक, ब्लाउज ने कैसे अपने रूप को बदला है और यह महिलाओं की स्वतंत्रता का प्रतीक कैसे बना है। इस दिलचस्प यात्रा में शामिल हों और जानें कि कैसे फैशन ने समाज में बदलाव लाया है।
 
ब्लाउज फैशन: भारतीय परिधान में बदलाव की कहानी

ब्लाउज फैशन का उदय

saree without blouse to modern style (social media) 

saree without blouse to modern style (social media) 

ब्लाउज फैशन: वर्तमान समय में, ब्लाउज भारतीय महिलाओं के पारंपरिक परिधान का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ब्लाउज की उत्पत्ति कब और कैसे हुई? यह कहानी केवल फैशन की नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन, महिलाओं की स्वतंत्रता और सांस्कृतिक बदलाव की भी है।


प्राचीन परिधान की झलक

प्राचीन परिधान की झलक

भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में, प्राचीन काल में महिलाएं हल्के और ढीले कपड़े पहनती थीं। उस समय बिना सिले कपड़े जैसे अंतरिया और उत्तरिया का उपयोग किया जाता था। अंतरिया शरीर के निचले हिस्से को ढकता था, जबकि उत्तरिया दुपट्टे या साड़ी की तरह ऊपरी हिस्से पर लपेटा जाता था। उस समय नग्नता को नकारात्मक रूप से नहीं देखा जाता था। लेकिन जैसे-जैसे विदेशी संस्कृतियों का प्रभाव बढ़ा, कपड़ों के प्रति सोच में भी बदलाव आया।


मुगल और विदेशी प्रभाव

मुगल और विदेशी प्रभाव

13वीं शताब्दी से मुगल काल तक, महिलाओं के पहनावे में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। शाही परिवार की महिलाएं लंबे लबादे पहनने लगीं और शरीर को पूरी तरह ढकने पर जोर दिया जाने लगा। इससे पहले की महिलाओं की मूर्तियों और चित्रों से यह स्पष्ट होता है कि ऊपरी हिस्से को ढकने के लिए केवल गहनों या बिना सिले कपड़ों का उपयोग होता था।


ब्रिटिश राज और विक्टोरियन प्रभाव

ब्रिटिश राज और विक्टोरियन प्रभाव

19वीं सदी में जब अंग्रेजों ने भारत पर शासन करना शुरू किया, तब पश्चिमी सोच का प्रभाव हमारे पहनावे पर भी देखने को मिला। विक्टोरियन विचारधारा के अनुसार, महिलाओं को पूरे कपड़े पहनने चाहिए थे और शरीर का कोई हिस्सा खुला नहीं रहना चाहिए था। उस समय भारतीय महिलाओं के पारंपरिक साड़ी पहनने के तरीके में ऊपरी हिस्सा खुला रह जाता था, जो अंग्रेजों के लिए असहज था।


ज्ञानदानंदिनी देवी का योगदान

ज्ञानदानंदिनी देवी का योगदान

महिलाओं के पहनावे में बदलाव लाने का श्रेय ज्ञानदानंदिनी देवी को जाता है। वह पहले भारतीय ICS अधिकारी सत्येंद्र नाथ टैगोर की पत्नी थीं। एक बार उन्हें केवल इस कारण से किसी सामाजिक कार्यक्रम में जाने से रोका गया क्योंकि उनके कपड़े 'उचित' नहीं थे। इसके बाद उन्होंने पारसी महिलाओं से प्रेरणा लेकर साड़ी पहनने का नया तरीका अपनाया, जिसमें ब्लाउज और पेटीकोट शामिल थे। उन्होंने साड़ी को मोड़कर पहनना शुरू किया जिससे ऊपरी हिस्सा भी पूरी तरह ढक जाता था।


ब्लाउज का बदलता रूप

ब्लाउज का बदलता रूप

प्रारंभिक ब्लाउज पश्चिमी फैशन से प्रभावित थे। ऊंची कॉलर, बटन, रिबन और लेस से सजे ब्लाउज उच्च वर्ग की महिलाओं में लोकप्रिय थे। बाद में भारतीय कारीगरों ने इसमें अपनी कला मिलाकर जरी, कढ़ाई और पारंपरिक डिज़ाइन शामिल किए। धीरे-धीरे यह आम महिलाओं के लिए भी उपलब्ध होने लगा और भारत के विभिन्न राज्यों में इसके अपने-अपने डिज़ाइन विकसित हुए।


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