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फिल्म 'माँ': एक अनोखी डरावनी कहानी जो दिल को छू लेती है

फिल्म 'माँ' एक अनोखी डरावनी कहानी है जो भारतीय हॉरर सिनेमा के पारंपरिक ढांचे से बाहर निकलती है। इसमें एक मां की कहानी है जो अपनी बेटी के लिए राक्षसी ताकतों से लड़ती है। निर्देशक विशाल फुरिया ने डर को माहौल से रचा है, और काजोल के प्रभावशाली प्रदर्शन ने इसे और भी खास बना दिया है। क्या कोई मां सच में देवी बन सकती है? जानने के लिए इस फिल्म को जरूर देखें।
 
फिल्म 'माँ': एक अनोखी डरावनी कहानी जो दिल को छू लेती है

एक नई डरावनी फिल्म का परिचय

फिल्म 'माँ' एक अनोखी डरावनी कहानी है, जो भारतीय हॉरर सिनेमा के पारंपरिक ढांचे से बाहर निकलती है। निर्देशक विशाल फुरिया ने इसमें ऐसा डर पेश किया है जो केवल आंखों से नहीं, बल्कि दिल से भी महसूस होता है। इसमें न तो तेज़ म्यूज़िक है और न ही अचानक प्रकट होने वाले भूत, बल्कि यह एक मां की कहानी है जो अपनी बेटी के लिए दानवों से मुकाबला करती है।


गांव, कोहरा और छिपा हुआ सच

कहानी की शुरुआत चंद्रपुर नामक एक रहस्यमय गांव से होती है, जो हमेशा कोहरे में ढका रहता है। इस गांव की खामोशी में एक मां अंबिका का दुख छिपा है, जिसकी बेटी पर एक भयानक श्राप का साया है। यह श्राप ही अंबिका को देवी जैसी शक्तियों से लैस करता है।


ममता का रूपांतरण

अंबिका का किरदार एक साधारण महिला से शुरू होकर एक अद्भुत शक्ति में बदलता है। जब उसकी आंखों में डर की जगह हिम्मत और गुस्सा दिखाई देता है, तब दर्शक समझ जाते हैं कि कहानी का मोड़ आ गया है। यह केवल एक बेटी को बचाने की लड़ाई नहीं, बल्कि बुराई के खिलाफ एक महायुद्ध है।


परफॉर्मेंस का जादू

काजोल ने अंबिका के किरदार में ऐसा प्रदर्शन किया है जो लंबे समय तक याद रहेगा। उनके चेहरे के हावभाव, चुप्पी और प्रभावशाली डायलॉग्स सब कुछ दर्शकों पर गहरा असर डालते हैं। श्वेता के किरदार में खेरीन शर्मा भी काफी प्रभावी लगती हैं। रोनित रॉय की उपस्थिति कहानी में एक रहस्य का तत्व जोड़ती है, जो इसे और भी मज़बूत बनाता है।


शांत लेकिन प्रभावी डर

विशाल फुरिया ने डर को आवाज़ों और भूतों से नहीं, बल्कि माहौल से रचा है। फिल्म के जंगल, मंदिर और सुनसान गलियों में जो सन्नाटा है, वही असली डर पैदा करता है। यह हॉरर का एक शांत लेकिन प्रभावी रूप है।


क्या राक्षस सच में मर गए हैं?

फिल्म में पौराणिक कहानी 'रक्तबीज' और देवी काली को आज के समाज से जोड़ा गया है। यह दर्शाता है कि असली राक्षस अब भी हमारे समाज में मौजूद हैं, जो डर, चुप्पी और गलत सोच के रूप में प्रकट होते हैं। इस तरह से फिल्म चुपचाप एक गहरी बात कह जाती है।


देखें, सुनें और महसूस करें

फिल्म में 'काली शक्ति' गाना और कई दृश्य इतने प्रभावशाली हैं कि रोंगटे खड़े कर देते हैं। VFX, कैमरा वर्क और साउंड डिज़ाइन इतने बेहतरीन हैं कि चंद्रपुर की गलियां और मंदिर वास्तविकता के करीब लगते हैं।


इन सवालों के जवाब जानने के लिए देखें 'माँ'

क्या कोई मां सच में देवी बन सकती है? एक श्राप पीढ़ियों तक कैसे असर करता है? बुराई से लड़ाई में अकेली मां कितनी दूर जा सकती है? क्या परंपरा और आधुनिक सोच एक साथ आ सकती हैं? यदि ये सवाल आपके मन में हैं, तो 'माँ' फिल्म का जवाब जरूर देखें।


एक जरूरी फिल्म

'माँ' केवल डर की कहानी नहीं है, बल्कि यह ममता, आस्था और हिम्मत की कहानी है। इसमें जिस तरह से इमोशन और हॉरर को मिलाया गया है, उसने इसे एक बेहतरीन वॉच फिल्म बना दिया है। इस वीकेंड इसे जरूर देखें, यह आपके लिए एक अद्भुत अनुभव साबित होगी।


फिल्म की जानकारी

डायरेक्टर: विशाल फुरिया


कास्ट: काजोल, रोनित रॉय, इंद्रनील सेनगुप्ता, खेरीन शर्मा, जितिन गुलाटी, गोपाल सिंह, सुर्यशिखा दास, यानिया भारद्वाज, रूपकथा चक्रवर्ती


समय: 135 मिनट


रेटिंग: 3.5/5


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