पंचायत सीजन 4: सादगी से सियासत की ओर

पंचायत का नया सीजन: कहानी में बदलाव
साल 2020 में जब पूरी दुनिया कोरोना के कारण घरों में बंद थी, तब 'पंचायत' एक ऐसा शो बना जिसे परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर देख सकते थे। इसकी सरलता, ग्रामीण परिवेश और भावनात्मक कहानी ने दर्शकों को फुलेरा गांव से जोड़ दिया। प्रधान जी, सचिव जी, प्रह्लाद चा, चंदन, और रिंक जैसे किरदारों ने दर्शकों के दिलों में खास स्थान बना लिया है। अब इस सीरीज का चौथा सीजन रिलीज हो चुका है। आइए जानते हैं इस सीजन की कहानी कैसी है।
पहले दो सीजन की मासूमियत, अब सियासत का रंग
पहले दो सीजन में 'पंचायत' का जादू दर्शकों पर छाया रहा। लेकिन तीसरे और चौथे सीजन में कहानी में धीरे-धीरे मिर्जापुर जैसी राजनीतिक रंगत देखने को मिल रही है। फुलेरा की मासूमियत के स्थान पर अब वहां राजनीति और साजिशें हावी होती नजर आ रही हैं। तीसरे सीजन के क्लाइमेक्स में प्रधान जी को गोली लगने के बाद चौथे सीजन की कहानी की नींव रखी जाती है। अब प्रधान जी का जख्म भर रहा है, लेकिन गांव में डर और राजनीतिक माहौल बढ़ता जा रहा है। सचिव जी पर विधायक से झड़प के बाद केस भी दर्ज हो चुका है।
सचिव जी का संघर्ष और रिंकी के साथ बढ़ती नजदीकियां
सचिव जी अपने CAT के रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं, वहीं रिंकी के साथ उनका रिश्ता भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। इस सीजन में यह ट्रैक दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ता है, लेकिन बीच-बीच में राजनीति का असर इस मासूम ट्रैक को भी प्रभावित करता है।
राजनीति की बिसात
फुलेरा में अब केवल लौकी ही नहीं, बल्कि राजनीति भी पक रही है। बनराकस, क्रांति देवी, बिनोद और विधायक, सभी प्रधान जी की कुर्सी छीनने की साजिश में लगे हुए हैं। सीजन में बार-बार दिखाया गया है कि टीम बनराकस कैसे प्रधान जी की टीम की रणनीति को विफल करती है। 'कुकर में लौकी' का नारा इस सीजन में जितना दिलचस्प है, उतनी ही बार राजनीतिक साजिशें थका देती हैं। मंजू देवी और क्रांति देवी की जुबानी लड़ाई एक हद तक दिलचस्प है, लेकिन बाद के एपिसोड्स प्रेडिक्टेबल और खिंचे हुए लगते हैं।
सीजन 5 के लिए तैयार किया गया मैदान
'पंचायत 4' की पूरी स्क्रिप्ट इस बात की ओर इशारा करती है कि इसे जल्दबाजी में सीजन 5 की तैयारी के तौर पर लिखा गया है। कहानी के मुकाबले संवाद ज्यादा प्रभाव छोड़ते हैं, लेकिन ओवरडोज ऑफ पॉलिटिक्स सीरीज की आत्मा को थोड़ा कमजोर करता है।
डायरेक्शन और एक्टिंग बनी शो की जान
डायरेक्टर दीपक कुमार मिश्रा ने इस बार कुछ हद तक पकड़ ढीली छोड़ी है, लेकिन कलाकारों की परफॉर्मेंस शो को संभाल लेती है। जितेंद्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुवीर यादव, प्रकाश झा, सान्विका, चंदन रॉय और फैसल मलिक की अदायगी इतनी मजबूत है कि आप इन्हें फुलेरा से बाहर सोच भी नहीं सकते। हालांकि यह सीजन पहले जितना मासूम नहीं रहा, फिर भी आठ एपिसोड्स एक बार में देखने लायक हैं। खासकर उन दर्शकों के लिए जो पहले से पंचायत के फैन हैं। यह सीज़न भले ही कुछ जगह कमजोर लगे, लेकिन फुलेरा से जुड़ाव इसे एक बार देखने लायक जरूर बनाता है।