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क्या है रानी की वाव? जानिए इस अद्भुत धरोहर की कहानी

रानी की वाव, जो ₹100 के नोट पर छपी है, भारतीय जल प्रबंधन और वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। यह 11वीं सदी में रानी उदयामति द्वारा निर्मित एक उल्टे मंदिर के रूप में डिज़ाइन की गई थी। यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित की गई, यह संरचना न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और नारीशक्ति का भी प्रतीक है। जानें इसके इतिहास, वास्तुकला और जल संरक्षण के महत्व के बारे में।
 
क्या है रानी की वाव? जानिए इस अद्भुत धरोहर की कहानी

रानी की वाव: भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर

Rani ki Vav

रानी की वाव: भारतीय करेंसी के ₹100 के नोट पर छपी इस भव्य सीढ़ीदार संरचना को आपने देखा होगा। यह केवल एक चित्र नहीं, बल्कि भारतीय विरासत का एक अनमोल हिस्सा है। गुजरात के पाटण में स्थित यह बावड़ी जल प्रबंधन, संस्कृति, और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने जुलाई 2018 में इसे नोट पर स्थान देकर इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। आइए जानते हैं इस अद्वितीय संरचना के बारे में विस्तार से।


इतिहास और प्रेम की कहानी

रानी की वाव का निर्माण 11वीं सदी में राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी रानी उदयामति ने किया था। यह न केवल जल-संग्रहण का स्थान था, बल्कि अपने पति की याद में एक श्रद्धांजलि भी। रानी उदयामति, जो जूनागढ़ के चूड़ासमा शासक की पुत्री थीं, ने इस संरचना को उस समय की बेहतरीन स्थापत्य शैली में बनवाया। पाटण, जो पहले अन्हिलपुर के नाम से जाना जाता था, सोलंकी वंश का मुख्य केंद्र था।


वास्तुकला: उल्टे मंदिर का अद्भुत डिज़ाइन

रानी की वाव को सामान्य बावड़ियों से अलग एक 'उल्टे मंदिर' के रूप में डिज़ाइन किया गया है। इसका अर्थ है कि यह ऊपर से नीचे की ओर एक मंदिर के रूप में विस्तृत होता है। जैसे-जैसे कोई व्यक्ति सीढ़ियों से नीचे उतरता है, वह एक आध्यात्मिक यात्रा पर निकलता है, जो जल की ओर ले जाती है।


मूर्तिकला की उत्कृष्टता

वाव की दीवारों और स्तंभों पर बनी नक्काशियां विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करती हैं। इनमें भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों को खूबसूरती से दर्शाया गया है। यह मूर्तिकला न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि उस समय के शिल्प कौशल की उत्कृष्टता को भी प्रकट करती है।


सरस्वती नदी और पुनरुद्धार की कहानी

कभी यह वाव सरस्वती नदी के जल से भरी रहती थी, लेकिन समय के साथ नदी लुप्त हो गई। कई सदियों तक यह भूमिगत रही, और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसका पुनरुद्धार किया।


यूनेस्को मान्यता: वैश्विक पहचान

22 जून 2014 को यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। इसे 'स्टेपवेल्स की रानी' की उपाधि मिली, जो भारत की जल प्रबंधन की परंपरा का अद्वितीय उदाहरण है।


भारतीय रिज़र्व बैंक का संदेश

जब RBI ने ₹100 के नए नोट पर रानी की वाव को स्थान दिया, तो यह केवल एक सुंदर छवि नहीं थी, बल्कि यह हमारी संस्कृति और विरासत का सम्मान करने का संदेश था।


जल संरक्षण की प्रासंगिकता

आज जब जल संकट बढ़ रहा है, रानी की वाव जैसी संरचनाएं हमें यह सिखाती हैं कि कैसे प्राचीन काल में जल को सहेजने के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाते थे।


नारीशक्ति और स्थापत्य का संगम

रानी उदयामति की यह पहल यह दर्शाती है कि भारतीय इतिहास में महिलाओं की भूमिका केवल घरेलू दायरे तक सीमित नहीं थी। रानी की वाव केवल एक इमारत नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है।


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