क्या हैं विधवाओं की कहानियाँ? जानिए भारतीय सिनेमा में उनके संघर्षों का चित्रण

विधवाओं की कहानियों का सिनेमा में प्रभाव
मुंबई, 22 जून। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता 'विधवा' की एक पंक्ति 'वह क्रूर काल तांडव की स्मृति रेखा सी' विधवाओं के जीवन के संघर्ष को बखूबी दर्शाती है। साहित्य के साथ-साथ सिनेमा ने भी इन महिलाओं की कहानियों को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया है। 'प्रेम रोग' से लेकर 'वॉटर' तक, इन फिल्मों की एक लंबी श्रृंखला है।
ये फिल्में सामाजिक सुधार, सशक्तीकरण और मानवीय भावनाओं को उजागर करती हैं। 23 जून को अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने 2010 में इन महिलाओं के अधिकारों और चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए स्थापित किया था।
भारतीय सिनेमा ने इन महिलाओं के संघर्षों और सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने की कहानियों को प्रभावी ढंग से दर्शाया है। इन फिल्मों में 'सिंगल वूमेन और सिंगल मदर' के दर्द और संघर्षों को भी आवाज दी गई है।
डायरेक्टर विकास खन्ना की फिल्म 'द लास्ट कलर' में नीना गुप्ता मुख्य भूमिका में हैं। 2019 में रिलीज हुई यह फिल्म विधवाओं के जीवन में रंग भरने का प्रयास करती है। फिल्म का अंतिम दृश्य, जिसमें विधवाएं होली का त्योहार मनाती हैं, बेहद खास है। इसमें एक 70 वर्षीय विधवा और 9 साल के फूल बेचने वाले बच्चे की दोस्ती को खूबसूरती से दर्शाया गया है।
नागेश कुकुनूर की फिल्म 'डोर' दो महिलाओं की कहानी पर आधारित है। 2006 में रिलीज हुई इस फिल्म में एक महिला का पति जेल में है, जबकि दूसरी विधवा हो जाती है। आयशा टाकिया और गुलपनाग मुख्य किरदार में हैं। एक घटना के बाद दोनों की जिंदगी में बदलाव आता है।
फिल्म 'वॉटर', जो 2005 में आई थी, दीपा मेहता द्वारा निर्देशित है। यह फिल्म 1938 में एक आश्रम में विधवाओं के जीवन को दर्शाती है। एक बाल विधवा अन्य विधवाओं के साथ सामाजिक रूढ़ियों का सामना करती है। यह फिल्म पितृसत्तात्मक व्यवस्था की क्रूरता को उजागर करती है और इसे ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया था।
1982 में आई 'प्रेम रोग' राज कपूर द्वारा निर्देशित एक फिल्म है, जिसमें विधवाओं के प्रेम और पुनर्विवाह के अधिकार को संवेदनशीलता से दर्शाया गया है। यह फिल्म उस समय के लिए एक क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत करती है।