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क्या स्वतंत्र सिनेमा को मिलेगा नया जीवन? प्रकाश झा के सुझावों पर एक नज़र

फिल्म निर्माता प्रकाश झा ने स्वतंत्र सिनेमा की चुनौतियों और इसे बेहतर बनाने के उपायों पर अपने विचार साझा किए हैं। उन्होंने बताया कि कैसे मल्टीप्लेक्स के आगमन ने रिलीज प्रक्रिया को प्रभावित किया है और छोटे फिल्म निर्माताओं के लिए समस्याएँ खड़ी की हैं। झा का मानना है कि व्यावहारिक सोच और सही रणनीति से स्वतंत्र सिनेमा को बढ़ावा दिया जा सकता है। जानें उनके सुझाव और विचार इस लेख में!
 
क्या स्वतंत्र सिनेमा को मिलेगा नया जीवन? प्रकाश झा के सुझावों पर एक नज़र

स्वतंत्र सिनेमा की चुनौतियाँ और समाधान




मुंबई, 22 दिसंबर। भारतीय सिनेमा न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह समाज में बदलाव लाने और नई सोच को फैलाने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इस कारण से स्वतंत्र फिल्मों का महत्व काफी बढ़ गया है। ये फिल्में आमतौर पर बड़े बजट की फिल्मों की तरह ग्लैमर या बड़े सितारों पर निर्भर नहीं होतीं, लेकिन इनकी कहानियाँ दर्शकों से सीधे जुड़ती हैं और उन्हें सोचने पर मजबूर करती हैं।


फिल्म निर्माता प्रकाश झा ने एक इंटरव्यू में स्वतंत्र सिनेमा की वर्तमान स्थिति और इसे सुधारने के उपायों पर अपने विचार साझा किए।


झा ने कहा कि मल्टीप्लेक्स के आगमन से फिल्मों को प्रदर्शित करने का प्लेटफॉर्म तो बेहतर हुआ है, लेकिन रिलीज प्रक्रिया में कई समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। उन्होंने बताया, "छोटे बजट की फिल्म हो या बड़ी, रिलीज की लागत लगभग समान होती है। यही कारण है कि छोटे फिल्म निर्माता अक्सर अपनी फिल्म को समय पर मल्टीप्लेक्स में रिलीज नहीं कर पाते।"


प्रकाश झा, जो खुद एक मल्टीप्लेक्स के मालिक हैं, ने इस मुद्दे पर चर्चा करते हुए कहा कि स्वतंत्र फिल्मों को कम खर्च में समय पर रिलीज करने के विकल्प खोजने की आवश्यकता है। उनका मानना है कि व्यावहारिक सोच और सही रणनीति से स्वतंत्र सिनेमा को बढ़ावा दिया जा सकता है।


उन्होंने यह भी कहा, "पहले जब मल्टीप्लेक्स नहीं थे, तब स्वतंत्र फिल्मों के लिए डिस्ट्रीब्यूटर आसानी से मिल जाते थे। उस समय ये फिल्में खास और सीमित दर्शकों के लिए होती थीं, लेकिन डिस्ट्रीब्यूटर उन्हें रिलीज और प्रचार करने के लिए तैयार रहते थे। अब विज्ञापन का खर्च बहुत बढ़ गया है, क्योंकि पहले स्थानीय स्तर पर प्रचार किया जा सकता था, जबकि आज का प्रचार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होता है। यही कारण है कि छोटे फिल्म निर्माताओं के लिए अपनी फिल्म का प्रचार करना और दर्शकों तक पहुंचाना कठिन हो गया है।"


उन्होंने डिजिटल कंटेंट की लागत में वृद्धि पर भी चिंता व्यक्त की। प्रकाश झा ने कहा, "आज फिल्म बनाना महंगा हो गया है, इसलिए स्वतंत्र सिनेमा को बनाए रखने और बढ़ावा देने के लिए व्यावहारिक सोच आवश्यक है। स्वतंत्र फिल्में लोगों से सीधे जुड़ती हैं और महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करती हैं। अगर इन्हें सही प्लेटफॉर्म और आर्थिक सहायता मिले, तो फिल्म निर्माता अपनी कहानियों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और गुणवत्ता वाली फिल्में बना सकते हैं।"


उन्होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी स्थिति की चर्चा की। झा ने कहा, "आम तौर पर इस प्लेटफॉर्म पर व्यावसायिक और बड़े बजट वाली फिल्में अधिक पसंद की जाती हैं। स्वतंत्र फिल्में अक्सर पीछे रह जाती हैं। बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म को छोटे और विशेष फिल्म निर्माताओं को अवसर देना चाहिए। अगर उन्हें कम कीमत पर फिल्मों को खरीदने और प्रदर्शित करने का विकल्प दिया जाए, तो इससे फिल्म निर्माता नई फिल्में बनाने के लिए प्रेरित होंगे और स्वतंत्र सिनेमा को सही मंच मिलेगा।"


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