Movie prime

क्या बदल गया है भारतीय इतिहास की किताबों में? एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक में मुगलों की सच्चाई का खुलासा!

एनसीईआरटी की नई कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की किताब ने मुगलों के इतिहास को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। इस किताब में बाबर, अकबर, और औरंगजेब जैसे शासकों की छवि को चुनौती दी गई है, जहां उन्हें धार्मिक असहिष्णुता और क्रूरता के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है। इसके साथ ही, किताब में प्रतिरोध की कहानियों को भी शामिल किया गया है, जो विद्यार्थियों को इतिहास के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराती है। क्या यह इतिहास का पुनर्लेखन है या एक आवश्यक पुनरावलोकन? जानें इस लेख में।
 
क्या बदल गया है भारतीय इतिहास की किताबों में? एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक में मुगलों की सच्चाई का खुलासा!

मुगलों की सच्चाई: एक नया दृष्टिकोण

मुगलों की वास्तविकता (सोशल मीडिया से)

मुगल काल की सच्चाई: भारत के ऐतिहासिक पाठ्यक्रम में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है। एनसीईआरटी द्वारा कक्षा 8 के लिए जारी की गई नई सामाजिक विज्ञान की किताब ने दिल्ली सल्तनत और मुगलों के शासन के बारे में पूर्वाग्रहों को चुनौती दी है। पहले जहां इन शासकों को सांस्कृतिक समावेशिता और प्रशासनिक कुशलता का प्रतीक माना जाता था, वहीं अब उन्हें धार्मिक असहिष्णुता, मंदिरों के विध्वंस और नरसंहार से जोड़ा गया है। इस बदलाव ने शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रों में नई बहस को जन्म दिया है। आइए इस विषय पर विस्तार से जानते हैं-


किताब का मुख्य संदेश: इतिहास को नए दृष्टिकोण से देखना आवश्यक

एनसीईआरटी की नई किताब 'Exploring Society: India and Beyond – Part 1' राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 के अनुसार तैयार की गई है। इसमें 13वीं से 17वीं शताब्दी के कालखंड को 'भारत के राजनीतिक मानचित्र का पुनर्निर्माण' अध्याय में शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य केवल घटनाओं का वर्णन नहीं, बल्कि उन पहलुओं को उजागर करना है जो पहले के पाठ्यक्रमों में नजरअंदाज किए गए थे।


बाबर: एक क्रूर विजेता

क्या बदल गया है भारतीय इतिहास की किताबों में? एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक में मुगलों की सच्चाई का खुलासा!

एनसीईआरटी की नई किताब में बाबर को 'निर्मम आक्रमणकारी' के रूप में दर्शाया गया है।

बाबर के भारत में आक्रमण के दौरान किए गए कत्लेआम और इंसानी खोपड़ियों की मीनारें बनवाने के कार्यों का उल्लेख करते हुए उसे 'बर्बरता का प्रतीक' कहा गया है। इतिहासकारों के अनुसार, बाबर ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई जीतने के बाद भारत में सत्ता की नींव रखी, लेकिन उसके आक्रमणों में धार्मिक रक्तपात और निर्दयता भी शामिल थी।


अलाउद्दीन खिलजी की क्रूर नीतियां

दिल्ली सल्तनत के प्रमुख शासकों में से एक अलाउद्दीन खिलजी को भी किताब में कठोर नीतियों और धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक बताया गया है। उसके शासनकाल में इस्लाम धर्म को बढ़ावा देने के साथ-साथ मंदिरों के विध्वंस और जजिया कर को प्रमुखता से रेखांकित किया गया है।


अकबर: सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण

अकबर, जिसे अब तक 'सर्वधर्म समभाव' का प्रतीक माना जाता रहा है, उसकी छवि को भी किताब में नए सिरे से देखा गया है। चित्तौड़गढ़ के युद्ध के बाद 30,000 नागरिकों के नरसंहार का उल्लेख किया गया है। हालांकि, अकबर की धार्मिक सहिष्णुता और दीने-इलाही जैसे प्रयासों का भी उल्लेख किया गया है, लेकिन उसे 'सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण' कहा गया है।


औरंगजेब: कट्टर और क्रूर शासक

क्या बदल गया है भारतीय इतिहास की किताबों में? एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक में मुगलों की सच्चाई का खुलासा!

मुगल शासकों में सबसे विवादास्पद चेहरा औरंगजेब का रहा है।

नई किताब में औरंगजेब को कट्टर और क्रूर सैन्य शासक कहा गया है, जिसने मंदिरों और गुरुद्वारों को तोड़ने का आदेश दिया। उसके शासनकाल में जजिया कर फिर से लागू किया गया, जिसे धार्मिक भेदभाव का साधन बताया गया है।


जज़िया कर: सामाजिक दबाव का एक साधन

इस नई किताब में जज़िया कर को विशेष रूप से उजागर किया गया है। यह कर गैर-मुस्लिम प्रजा पर लगाया जाता था, जिससे उन्हें सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता की कीमत चुकानी पड़ती थी। किताब के अनुसार, जज़िया सामाजिक और आर्थिक दबाव बनाता था और यह इस्लाम स्वीकार करने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से प्रेरित करता था।


देश के वीरों की कहानियां: प्रतिरोध की गाथाएं

नई किताब में केवल शासकों के अत्याचार नहीं, बल्कि उनके खिलाफ हुए प्रतिरोध की भी गाथा है। इसमें मराठा के वीर योद्धाओं, राजपूत, सिख और जनजातीय शूरवीरों द्वारा मुगलों के विरोध में किए गए साहसिक कार्यों का जिक्र है।


इतिहास को समझने की नई अपील

किताब के आरंभ में 'इतिहास के कुछ अंधकारमय काल पर टिप्पणी' शीर्षक से नोट जोड़ा गया है, जिसमें छात्रों को यह समझने की अपील की गई है कि अतीत के काले अध्यायों को वर्तमान से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।


एनसीईआरटी का पक्ष: 'सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते'

एनसीईआरटी सामाजिक विज्ञान क्षेत्र समूह के प्रमुख पर्यटन मिशेल डैनिनो ने किताब का बचाव करते हुए कहा कि किसी भी शासक को 'शैतान' दिखाने का प्रयास नहीं किया गया है। उनके अनुसार, ऐतिहासिक घटनाओं का संतुलित और वस्तुनिष्ठ प्रस्तुतीकरण ही नई किताबों का उद्देश्य है।


क्या यह इतिहास का पुनर्लेखन है?

आलोचकों का कहना है कि यह इतिहास का पुनर्लेखन है, जबकि एनसीईआरटी इसे 'पुनरावलोकन' कहता है। एनसीईआरटी अधिकारियों के अनुसार, पुराने दस्तावेजों से तुलना करना निरर्थक है क्योंकि यह नई किताबें पुनः डिज़ाइन किए गए पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं।


पहले क्या पढ़ाया जाता था?

क्या बदल गया है भारतीय इतिहास की किताबों में? एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक में मुगलों की सच्चाई का खुलासा!

पुरानी किताबों में इन शासकों के प्रशासनिक सुधार, सांस्कृतिक योगदान और साम्राज्य विस्तार पर अधिक जोर था।

मंदिर विध्वंस, धार्मिक असहिष्णुता और विद्रोहों का उल्लेख कम या सतही रूप से किया गया था। अब एनसीईआरटी की किताबों में इन्हीं घटनाओं को खुलकर और स्पष्ट रूप से रखा गया है।


किताब की श्रृंखला में आगे क्या?

अब तक कक्षा 1 से 4, 6, 7 और 8 के लिए एनसीईआरटी की नई किताबें पेश की जा चुकी हैं। कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की यह पहली किताब है, जिसका भाग-2 इस वर्ष के अंत में आने की उम्मीद है।


बदलाव बना इतिहास का आईना, लेकिन निष्पक्ष दृष्टि से

इतिहास को लेकर हमेशा दो दृष्टिकोण रहे हैं, एक, जो गौरवशाली पक्ष को उजागर करता है और दूसरा, जो कटु सच्चाइयों को सामने लाता है। एनसीईआरटी की यह नई पहल शायद इसी द्वंद्व को मिटाने का प्रयास है, जहां विद्यार्थियों को भारत के शासकों के महान कार्यों के साथ-साथ उनके कठोर फैसलों और अत्याचारों से भी अवगत कराया जाए।


OTT