क्या आप जानते हैं अंतर्राष्ट्रीय परी दिवस का महत्व? जानें जादुई कहानियों का सफर!

अंतर्राष्ट्रीय परी दिवस: जादू और कल्पना का उत्सव
नई दिल्ली, 23 जून। परियां, जो बचपन की यादों का हिस्सा हैं, हमेशा से बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र रही हैं। शायद ही कोई बच्चा होगा, जिसे दादी-नानी ने परी की कहानियां न सुनाई हों। जादू और कल्पना से भरी ये कहानियां हर बच्चे के दिल में एक खास जगह बनाती हैं। हर साल 24 जून को अंतर्राष्ट्रीय परी दिवस मनाया जाता है, जो परियों और उनकी जादुई कहानियों को समर्पित है।
परियां न केवल बच्चों की कहानियों में पाई जाती हैं, बल्कि वे विभिन्न संस्कृतियों, साहित्य और फिल्मों का भी हिस्सा रही हैं। यह दिन हमें उन बचपन की कल्पनाओं को फिर से जीने का अवसर देता है, जहां जादू और आश्चर्य हर जगह बिखरे होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय परी दिवस की स्थापना का श्रेय फैंटेसी आर्टिस्ट जेसिका गाल्ब्रेथ को जाता है, जिन्होंने परियों और अन्य पौराणिक प्राणियों की कला के माध्यम से इस दिन को लोकप्रिय बनाया। लोककथाओं में यह माना जाता है कि परियां मानव जीवन में सक्रिय रहती हैं और इसे और भी खूबसूरत बनाती हैं।
परियों का विचार प्राचीन काल से चला आ रहा है। यूरोपीय लोककथाओं में परियां अक्सर प्रकृति से जुड़ी होती हैं और कभी मददगार तो कभी शरारती मानी जाती हैं। प्राचीन भारत में गंधर्व और अप्सराएं जैसी पौराणिक हस्तियां भी परियों से मिलती-जुलती थीं, जो जादुई शक्तियों और सुंदरता के लिए जानी जाती थीं। ग्रीक, रोमन और सेल्टिक संस्कृतियों में भी परियों का उल्लेख मिलता है। समय के साथ, परियां बच्चों की कहानियों और आधुनिक सिनेमा का हिस्सा बन गई हैं।
परियां विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग रूपों में मौजूद हैं। भारत में 'परी' शब्द यूरोपीय प्रभाव से आया है, लेकिन हिंदू पौराणिक कथाओं में अप्सराएं, यक्षिणियां और देवियां परियों जैसी भूमिकाएं निभाती हैं। उदाहरण के लिए, उर्वशी और मेनका जैसी अप्सराएं अपनी सुंदरता और जादुई शक्तियों के लिए प्रसिद्ध थीं।
साहित्य में विलियम शेक्सपियर की 'ए मिडसमर नाइट्स ड्रीम' और जे.एम. बैरी की 'पीटर पैन' ने परियों को एक नया रूप दिया। डिज्नी की 'टिंकर बेल' आज की पीढ़ी के लिए परियों का प्रतीक बन चुकी है।
अंतर्राष्ट्रीय परी दिवस हमें याद दिलाता है कि जादू और कल्पना हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। भारत में, भले ही परियां पश्चिमी अवधारणा से आई हों, लेकिन हमारी लोककथाओं और सिनेमा में जादुई प्राणियों की कोई कमी नहीं है।
भारतीय सिनेमा में परियों को पर्दे पर लाने का प्रयास किया गया है। हालांकि परियां सीधे तौर पर कम दिखाई देती हैं, लेकिन जादुई और अलौकिक किरदारों के रूप में उनकी उपस्थिति स्पष्ट है। भारतीय फिल्में अक्सर पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और फैंटेसी से प्रेरित होती हैं, जहां परियां कहानियों को जादुई बनाती हैं।
2024 में रिलीज हुई 'फेयरी फोक' में रसिका दुग्गल और मुकुल चड्ढा मुख्य भूमिका में हैं। यह एक आधुनिक फैंटेसी ड्रामा है, जो मानवीय रिश्तों की जटिलताओं को जादुई यथार्थवाद के साथ प्रस्तुत करता है। इसे सिडनी फिल्म फेस्टिवल और शिकागो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सराहा गया। समीक्षकों ने इसे 'पहले कभी न देखा गया' अनुभव बताया।
अनुष्का शर्मा की 'परी' 2018 में रिलीज हुई थी, जो एक महिला की कहानी है, जो एक रहस्यमयी प्राणी से जुड़ जाती है। यह पारंपरिक परी की कहानी नहीं है, लेकिन 'परी' नाम और जादुई तत्व इसे अंतर्राष्ट्रीय परी दिवस के संदर्भ में प्रासंगिक बनाते हैं।
1991 में आई 'लाल परी' एक फैंटेसी रोमांटिक फिल्म है, जो एक जलपरी पर आधारित है। इस फिल्म में आदित्य पंचोली, जावेद जाफरी और गुलशन ग्रोवर ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं।
अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने भी जलपरी का किरदार निभाया है। 1996 में रिलीज हुई तेलुगू फिल्म 'साहासा वीरुदू सागर कन्या' में उन्होंने जल परी का रोल किया था।
1990 में आई जीतेंद्र की 'हातिमताई' भी परियों की फैंटेसी दुनिया में ले जाती है। इस फिल्म में जीतेंद्र मुख्य भूमिका में थे, जबकि संगीता बिजलानी ने परी 'गुलनार' का किरदार निभाया था।
भारत में परियां यूरोपीय कॉन्सेप्ट से भिन्न हैं। यहां की लोककथाओं में जादुई प्राणी अक्सर देवी-देवताओं या प्रकृति की शक्तियों के रूप में दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए, दक्षिण भारत की लोककथाओं में 'वनों की देवियां' और बंगाल की 'दैत्यानी' कहानियां परियों से मिलती-जुलती हैं। भारतीय सिनेमा में परियां कम दिखती हैं, क्योंकि हमारी कहानियां अक्सर पौराणिक कथाओं और धार्मिक विश्वासों पर आधारित होती हैं। फिर भी, आधुनिक फिल्में जैसे 'फेयरी फोक' में वे दिखाई देती हैं।
--आईएएनएस
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