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कौन थे पंडित डी. वी. पलुस्कर? जानें भारतीय शास्त्रीय संगीत के इस महानायक की कहानी

पंडित डी. वी. पलुस्कर, भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक महानायक, का जन्म 1921 में हुआ। उन्होंने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए संगीत को आम जनता तक पहुंचाने का कार्य किया। उनकी गायन शैली में रागों की शुद्धता और भावनात्मकता का अद्भुत समन्वय था। हालांकि उनका निधन 34 वर्ष की आयु में हो गया, लेकिन उनकी संगीत की विरासत आज भी जीवित है। जानें उनके जीवन और योगदान के बारे में इस लेख में।
 
कौन थे पंडित डी. वी. पलुस्कर? जानें भारतीय शास्त्रीय संगीत के इस महानायक की कहानी

पंडित डी. वी. पलुस्कर का संगीत सफर


नई दिल्ली, 25 अक्टूबर। संगीत एक ऐसी कला है जो साधना के माध्यम से ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करती है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में कई ऐसे कलाकार हुए हैं जिन्होंने अपनी साधना से इस विधा को समृद्ध किया है। इनमें से एक प्रमुख नाम है पंडित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर, जिन्हें आमतौर पर पंडित डी. वी. पलुस्कर के नाम से जाना जाता है।


महान गायक और संगीतकार विष्णु पलुस्कर का जन्म 28 मई, 1921 को महाराष्ट्र के कुरुंदवाड़ में हुआ। वे प्रसिद्ध संगीतज्ञ पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के पुत्र थे, जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके पिता की विरासत का एक अंश उनके पुत्र में भी देखने को मिला।


डी. वी. पलुस्कर ने अपने पिता की धरोहर को न केवल संजोया, बल्कि उसे और भी समृद्ध किया। ग्वालियर घराने से जुड़े पलुस्कर की गायन शैली में रागों की शुद्धता, भावनात्मकता और तकनीकी कुशलता का अद्भुत समन्वय था। उनके कुछ प्रसिद्ध रागों में यमन, भूप, दरबारी और मालकौस शामिल हैं, जिन्हें उन्होंने अपनी विशेष शैली में प्रस्तुत किया। उनके मधुर स्वर में गाए गए ख्याल, ठुमरी और भजन श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे।


पलुस्कर ने संगीत को आम जनता तक पहुंचाने के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने अपने पिता द्वारा स्थापित गांधर्व महाविद्यालय की परंपरा को आगे बढ़ाया और संगीत शिक्षा को बढ़ावा दिया। उनके प्रयासों से शास्त्रीय संगीत ने न केवल मंचों पर, बल्कि आम लोगों के बीच भी लोकप्रियता हासिल की।


हालांकि, उनका निधन मात्र 34 वर्ष की आयु में 25 अक्टूबर, 1955 को हो गया, लेकिन उनके संगीत की विरासत आज भी जीवित है, जिसे उनके शिष्यों और अनुयायियों ने आगे बढ़ाया है। पंडित पलुस्कर की रिकॉर्डिंग्स आज भी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।


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