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काजोल की फिल्म 'मां': एक माइथोलॉजिकल थ्रिलर की समीक्षा

काजोल की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'मां' अब सिनेमाघरों में है। इसे माइथोलॉजिकल थ्रिलर के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें एक मां अपनी बेटी के लिए शैतान से लड़ती है। फिल्म की कहानी, परफॉर्मेंस और विजुअल्स की चर्चा करें। जानें कि क्या यह फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरती है या नहीं।
 
काजोल की फिल्म 'मां': एक माइथोलॉजिकल थ्रिलर की समीक्षा

फिल्म 'मां' का परिचय

Maa Review: काजोल की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'मां' अब सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो चुकी है। इसके प्रमोशन्स के दौरान इसे भारत की पहली माइथो-हॉरर फिल्म बताया गया था, जिससे दर्शकों में उत्सुकता और बढ़ गई। हाल ही में फिल्म का पहला रिव्यू भी सामने आया है। असल में, यह फिल्म माइथो-हॉरर नहीं, बल्कि एक माइथोलॉजिकल थ्रिलर है। इसकी असली ताकत इसकी कहानी, थ्रिल, माइथोलॉजिकल कनेक्शन और क्लाइमेक्स में निहित है। फिल्म में एक मां की कहानी दिखाई गई है, जो अपनी बेटी के लिए शैतान से मुकाबला करती है। हालांकि, फिल्म के प्रमोशन में आर माधवन की उपस्थिति ने कुछ दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि उनका कोई कनेक्शन हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है। दोनों कहानियां पूरी तरह से अलग हैं। काजोल की इस फिल्म की कहानी जानने के लिए आगे पढ़ें।


फिल्म की कहानी

कहानी की शुरुआत श्वेता की जिद से होती है, जो समर वेकेशन में अपने पिता के गांव चंद्रपुर जाना चाहती है। लेकिन वहां कुछ रहस्य छिपे हुए हैं। दरअसल, चंद्रपुर की धरती मां काली और रक्तबीज के रहस्य से जुड़ी हुई है, जहां हर खून की बूंद से एक नया राक्षस उत्पन्न होता है। यह शैतान अब गांव की लड़कियों को निशाना बना रहा है। फिल्म का पहला भाग थोड़ा धीमा है, क्योंकि निर्देशक विशाल फुरिया ने सेटअप में अधिक समय लिया है, जिससे हॉरर का प्रभाव कम हो जाता है। लेकिन दूसरे भाग में फिल्म गति पकड़ती है और 15 मिनट का क्लाइमेक्स इसे यादगार बना देता है। काजोल का देवी अवतार, उनकी दमदार परफॉर्मेंस और शानदार VFX दर्शकों को रोमांचित कर देते हैं।


दादी-नानी की कहानियों की याद

इस फिल्म की कहानी सायवन क्वाड्रस ने लिखी है, जिसमें फिक्शन और माइथोलॉजी को बेहतरीन तरीके से पिरोया गया है। फिल्म देखकर ऐसा लगता है जैसे बचपन में सुनी दादी-नानी की कहानियां फिर से जीवंत हो गई हों। इसकी ट्रीटमेंट कुछ हद तक हनुमान या कार्तिकेय जैसी साउथ फिल्मों की याद दिलाती है।


परफॉर्मेंस

काजोल ने अपनी परफॉर्मेंस से सभी को प्रभावित किया है। उनकी एक्सप्रेशन्स और स्क्रीन प्रेजेंस ने पूरी फिल्म को संभाला है। उनकी बेटी का किरदार निभाने वाली खेरिन शर्मा की एक्टिंग भी शानदार है। इसके अलावा, दिब्येंदु भट्टाचार्य ने भी अच्छा काम किया है, लेकिन रोनित रॉय का किरदार उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाता।


विजुअल्स और म्यूजिक

फिल्म के विजुअल्स की बात करें तो इसकी सिनेमैटोग्राफी और VFX बहुत अच्छे हैं। अजय देवगन की VFX कंपनी ने बेहतरीन काम किया है। हालांकि, संदीप फ्रांसिस की एडिटिंग और मनोज मुंतशिर के गाने उतना प्रभाव नहीं छोड़ते। बैकग्राउंड स्कोर भी साधारण है।


फाइनल वर्डिक्ट

‘मां’ एक माइथोलॉजिकल थ्रिलर है, जिसमें शानदार क्लाइमेक्स और काजोल की बेहतरीन परफॉर्मेंस इसे ऊंचा उठाते हैं। हॉरर की उम्मीद से आए दर्शकों को थोड़ी कमी महसूस हो सकती है, लेकिन माइथोलॉजी और विजुअल्स के प्रेमियों के लिए यह फिल्म एक अच्छा अनुभव है। इसकी रेटिंग 3.5 है।


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