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पटपड़गंज का ऐतिहासिक युद्ध: कैसे एक लड़ाई ने बदल दी भारत की किस्मत?

पटपड़गंज का युद्ध, जो 11 सितंबर 1803 को लड़ा गया, ने भारत के राजनीतिक इतिहास को बदल दिया। यह युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठों के बीच हुआ, जिसने दिल्ली पर ब्रिटिशों का नियंत्रण स्थापित किया। जानें इस ऐतिहासिक घटना का महत्व और इसके परिणाम, जो आज भी भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण हैं।
 

पटपड़गंज का इतिहास

पटपड़गंज का ऐतिहासिक युद्ध: कैसे एक लड़ाई ने बदल दी भारत की किस्मत?

Patparganj History (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Patparganj History (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पटपड़गंज का ऐतिहासिक महत्व: आज पटपड़गंज को एक औद्योगिक क्षेत्र और बाजार के रूप में जाना जाता है, लेकिन इसके पीछे एक महत्वपूर्ण और रक्तरंजित इतिहास छिपा है। 19वीं सदी की शुरुआत में, यहां एक ऐसा युद्ध लड़ा गया था जिसने भारत के राजनीतिक और औपनिवेशिक भविष्य को हमेशा के लिए बदल दिया।


पटपड़गंज का युद्ध – 11 सितंबर, 1803

पटपड़गंज का युद्ध– 11 सितंबर, 1803


पटपड़गंज का ऐतिहासिक युद्ध: कैसे एक लड़ाई ने बदल दी भारत की किस्मत?

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)


इस दिन मराठों और मुग़लों की संयुक्त सेना ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शक्तिशाली सेना का सामना किया। यह केवल एक साधारण युद्ध नहीं था, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ था जिसने भारत की सत्ता की संरचना को पूरी तरह बदल दिया।


ब्रिटिशों की निर्णायक जीत

इस लड़ाई में ब्रिटिशों ने निर्णायक जीत हासिल की, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने दिल्ली पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। मुगल साम्राज्य केवल नाममात्र का रह गया, और मराठा साम्राज्य का पतन शुरू हो गया, जो अगले 15 वर्षों में लगभग समाप्त हो गया।


इतिहास की कड़ी: प्लासी, बक्सर और पटपड़गंज


प्लासी (1757) और बक्सर (1764) की लड़ाइयों के बाद, पटपड़गंज का युद्ध तीसरा महत्वपूर्ण युद्ध था जिसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में न केवल सैन्य शक्ति दी, बल्कि उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर प्रशासनिक नियंत्रण भी दिलाया।


दिल्ली पर कब्ज़ा

दिल्ली पर कब्ज़ा– प्रतीकात्मक सत्ता का अधिग्रहण


दिल्ली उस समय राजनीतिक रूप से कमजोर हो चुकी थी, लेकिन मुग़लों की राजधानी होने के नाते यह प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण थी। ब्रिटिशों ने इस युद्ध के बाद दिल्ली पर कब्ज़ा करके देश की मानसिक सत्ता भी अपने हाथों में ले ली।


पटपड़गंज का ऐतिहासिक सफर

पटपड़गंज का ऐतिहासिक सफर


आज जहां बाजार, कॉलोनियाँ और फैक्ट्रियाँ हैं, वहीं कभी गोलियों की गूंज और तलवारों की टंकार सुनाई देती थी।


17वीं सदी में जब शाहजहाँ ने शाहजहानाबाद की नींव रखी, तब पटपड़गंज भी एक व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ।


पटपड़गंज पर हमले

हमलों से अछूता नहीं रहा पटपड़गंज


हालांकि दिल्ली पर कई आक्रमण हुए, पटपड़गंज आमतौर पर शांत रहा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह क्षेत्र हिंसा से अछूता रहा।


◾ 1753 : नजीबउद्दौला का हमला


रोहिल्ला सरदार नजीबउद्दौला ने मुग़ल बादशाह की मदद के बदले पटपड़गंज पर हमला किया और लूटपाट की।


मराठों की एंट्री

◾ 1757 : मराठों की एंट्री


जुलाई 1757 में मराठा सैनिकों ने दिल्ली पर हमला करने से पहले पटपड़गंज में डेरा डाला।


पटपड़गंज केवल व्यापार का केंद्र नहीं था, बल्कि यह सियासत और रणनीतिक गठबंधनों की भूमि भी था।


मुग़ल साम्राज्य का पतन

मुग़ल साम्राज्य के उत्थान-पतन की गवाही देता इलाक़ा


मुग़ल साम्राज्य के मध्यकाल में पटपड़गंज एक छोटा, किंतु रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इलाका था।


औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद, साम्राज्य का पतन शुरू हुआ और पटपड़गंज भी अशांतियों की चपेट में आने लगा।


युवराज शाह आलम द्वितीय का राज

युवराज शाह आलम द्वितीय का राज


हालांकि युद्ध में मराठे हार गए, लेकिन अब्दाली ने दिल्ली की प्रशासनिक बागडोर फिर से मराठों को सौंप दी।


इलाहाबाद संधि

इलाहाबाद संधि (Allahabad Pact)


इन युद्धों में अंग्रेज़ों ने मुग़ल सम्राट और नवाबों की संयुक्त सेनाओं को हराकर अपनी सैन्य कुशलता का परिचय दिया।


पटपड़गंज का ऐतिहासिक महत्व

इस प्रकार, पटपड़गंज और समूचा दिल्ली क्षेत्र 18वीं सदी में सत्ता के संघर्ष का साक्षी बना, जिसमें मुग़ल, मराठा, अफ़ग़ान, जाट, सिख और अंग्रेज़ सभी शामिल थे।


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