क्या भारत में वायु प्रदूषण ने आपातकाल की स्थिति पैदा कर दी है?
वायु प्रदूषण आपातकाल: एक गंभीर चेतावनी
वायु प्रदूषण आपातकाल (सोशल मीडिया से छवि)
वायु प्रदूषण आपातकालस्विट्जरलैंड की पर्यावरण संस्था आईक्यूएयर (IQAir) द्वारा जारी की गई हालिया रिपोर्ट ने भारत की वायु गुणवत्ता को लेकर एक गंभीर चेतावनी दी है। इस रिपोर्ट में दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में सभी स्थान भारतीय शहरों के नाम दर्ज हैं। यह स्थिति केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आपातकाल का संकेत है, जहां हर सांस के साथ विषाक्तता शरीर में प्रवेश कर रही है।
भारत की हवा में विषाक्तता: चिंताजनक संकेत
रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान का बिगासर (PM2.5 स्तर 830), हरियाणा का सोनीपत (433) और झज्जर (477), तथा उत्तर प्रदेश का मुजफ्फरनगर (634) और गाजियाबाद (439) जैसे शहर अब वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक प्रदूषित माने जा रहे हैं।
दिल्ली, जो इस सूची में 13वें स्थान पर है, की हवा को 'गंभीर श्रेणी' में वर्गीकृत किया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्तर की हवा फेफड़ों, हृदय और तंत्रिका तंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव डालती है, और यह भारत में समयपूर्व मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक बन चुकी है।
विकास की परिभाषा: स्वच्छ हवा के साथ
"विकास की सच्ची परिभाषा वही है, जहाँ विकास के साथ हवा भी स्वच्छ रहे।"
आईक्यूएयर की रिपोर्ट यह दर्शाती है कि हमने विकास की दौड़ में प्रकृति को पीछे छोड़ दिया है। आज प्रदूषण केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक और आर्थिक संकट बन चुका है।
अदृश्य संकट: 'धीमी मौत' का खतरा
अदृश्य संकट: 'धीमी मौत' का खतरा
प्रदूषण अब एक "धीमी मौत" का रूप ले चुका है। आईक्यूएयर और विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल 15 से 18 लाख लोग वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण मरते हैं।
• बच्चों में अस्थमा, श्वसन संक्रमण और एलर्जी की घटनाएं बढ़ रही हैं।
• बुजुर्गों में हृदय और रक्तचाप संबंधी बीमारियाँ बढ़ रही हैं।
• कार्यशील युवाओं की उत्पादकता में कमी आ रही है।
प्रदूषण के कारण और समाधान
प्रदूषण के मुख्य कारणों में वाहन उत्सर्जन की वृद्धि, औद्योगिक प्रदूषण पर कमजोर नियंत्रण, अनियंत्रित निर्माण कार्य की धूल, और कृषि में पराली जलाना शामिल हैं। इसके अलावा, कोयला आधारित बिजली संयंत्र भी सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन का बड़ा उत्सर्जन कर रहे हैं।
समाधान की दिशा: अब आधे उपाय नहीं चलेंगे
विशेषज्ञों का मानना है कि केवल 'ऑड-ईवन' जैसे अल्पकालिक उपाय अब पर्याप्त नहीं हैं। इस राष्ट्रीय आपातकाल से निपटने के लिए ठोस और बहुआयामी कदम उठाने होंगे:
1. नीति-स्तर पर सख़्ती: सरकार को उद्योगों और थर्मल पावर स्टेशनों के उत्सर्जन मानकों पर कठोर नियंत्रण लागू करना होगा।
2. हरित परिवहन को प्रोत्साहन: सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करना और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना।
3. कृषि में सुधार: पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए किसानों को बायोमास संयंत्र और कम्पोस्टिंग जैसे विकल्प उपलब्ध कराना।
4. जन-सहभागिता: यह संकट केवल सरकारी जिम्मेदारी नहीं है। हर नागरिक को पेड़ लगाने, प्लास्टिक का उपयोग कम करने और स्थानीय स्वच्छता अभियानों में भाग लेना होगा।
5. ग्रीन बेल्ट और शहरी नियोजन: शहरों में ग्रीन बेल्ट, खुली भूमि, और औद्योगिक क्षेत्रों का पृथक्करण सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
भारत को अब यह समझना होगा कि हर सांस एक प्रश्न है और स्वच्छ हवा उपलब्ध कराना अब केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि हर नागरिक का जीवन का अधिकार है।
.png)