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Saree Style: अलग होती हैं कांजीवरम और बनारसी सिल्क की साड़ी, आप भी जानें इनका अंतर

भारत में शायद ही कोई महिला होगी जिसे साड़ी पहनना पसंद न हो। शादी हो या कोई अन्य अवसर, हर उम्र की महिलाएं खूबसूरत दिखने के लिए साड़ी को सबसे अच्छा विकल्प मानती हैं। महिलाओं का साड़ियों के प्रति प्रेम और दीवानगी किसी से छिपी नहीं है।
 
Saree Style: अलग होती हैं कांजीवरम और बनारसी सिल्क की साड़ी, आप भी जानें इनका अंतर

भारत में शायद ही कोई महिला होगी जिसे साड़ी पहनना पसंद न हो। शादी हो या कोई अन्य अवसर, हर उम्र की महिलाएं खूबसूरत दिखने के लिए साड़ी को सबसे अच्छा विकल्प मानती हैं। महिलाओं का साड़ियों के प्रति प्रेम और दीवानगी किसी से छिपी नहीं है। खासकर अगर बात सिल्क साड़ियों की करें तो महिलाओं को सिल्क साड़ियां बहुत पसंद होती हैं। अभिनेत्रियों को सिल्क साड़ियां पहनना भी बहुत पसंद है। ज्यादातर महिलाएं कांजीवरम और बनारसी साड़ियां पसंद करती हैं।

Saree Style: अलग होती हैं कांजीवरम और बनारसी सिल्क की साड़ी, आप भी जानें इनका अंतर

लोग सोचते हैं कि कांजीवरम और बनारसी साड़ी एक ही हैं, जबकि ऐसा नहीं है। ये साड़ियाँ हाथ से बनी होती हैं इसलिए कीमत बहुत ज्यादा होती है। इसके अलावा दोनों की ब्राइटनेस लगभग एक जैसी है, जिससे इनके बीच अंतर बता पाना काफी मुश्किल हो जाता है। इसलिए आज के आर्टिकल में हम आपको कांजीवरम और बनारसी सिल्क साड़ियों के बीच अंतर के बारे में बताने जा रहे हैं।

सबसे पहले जानें बनारसी साड़ी का इतिहास: अगर इतिहास की बात करें तो बनारसी साड़ी का इतिहास करीब 2000 साल पुराना बताया जाता है। देश के कई हिस्सों में नई दुल्हनों को पहनने के लिए बनारसी साड़ी ही दी जाती है।

ऐसे होता है निर्माण: मुगल काल की 14वीं शताब्दी के आसपास बनारस के ब्रोकेड कपड़ों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। उस समय ये साड़ियाँ रेशम पर सोने और चाँदी के धागों का प्रयोग करके बनाई जाती थीं। इसके बाद अकबर के समय में बनारसी साड़ियों को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया। उस समय बनारसी साड़ियों पर इस्लामिक कलाकारी की जाती थी.

Saree Style: अलग होती हैं कांजीवरम और बनारसी सिल्क की साड़ी, आप भी जानें इनका अंतर

कैसे करें पहचान: अगर आप बनारसी साड़ी को परखना चाहते हैं तो उसकी कढ़ाई पर ध्यान दें। साड़ी पर मजबूत रेशमी धागों से कढ़ाई की गई है। बनारसी साड़ियाँ जरी के काम के कारण भारी होती हैं। इसके साथ ही एक असली बनारसी साड़ी के पल्लू में हमेशा 6 से 8 इंच सादे रेशमी कपड़े का इस्तेमाल होता है।

जानिए कांजीवरम साड़ियों का इतिहास: हालाँकि कांजीवरम साड़ियों के इतिहास के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि कांजीवरम साड़ियों की उत्पत्ति तमिलनाडु के एक छोटे से शहर कांचीपुरम से हुई थी। कांजीवरम साड़ियाँ 400 से अधिक वर्षों से बुनकरों द्वारा बुनी जाती रही हैं। इन साड़ियों को कृष्ण देवराय के शासनकाल के दौरान लोकप्रियता मिली।

Saree Style: अलग होती हैं कांजीवरम और बनारसी सिल्क की साड़ी, आप भी जानें इनका अंतर

बेहद कम होता है वजन: कांजीवरम साड़ियाँ शहतूत रेशम से बनाई जाती हैं, जो वजन में बहुत हल्की होती हैं। असली रेशम के धागे की बनावट दानेदार होती है इसलिए आप धागे को छूकर भी इसे पहचान सकते हैं। कई बार धोने के बाद भी इसकी चमक कम नहीं होती है।

ऐसे करें पहचान: अगर आप कांजीवरम साड़ी खरीदने का प्लान कर रही हैं तो पहले उसे साइड से खुरचने की कोशिश करें, अगर आपको नीचे लाल रेशम दिखे तो समझ लें कि साड़ी असली है। इसकी पहचान करने का यह सबसे अच्छा तरीका है.

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