क्या चिट्ठियों का जादू अब खत्म हो गया है? जानिए कैसे बदल गए रिश्ते!
भारतीय डाक विभाग की यादें
भारतीय डाक विभाग (सोशल मीडिया से)
भारतीय डाक विभाग: आज जब मैंने एक साल बाद चिट्ठियां लिखने का मन बनाया, तो यह एक अनोखा अनुभव था। लिखने की इच्छा थी, लेकिन शब्दों की कमी महसूस हो रही थी। सोच रही थी कि क्या पूछूं, सब कैसे हैं, या फिर खुद के बारे में क्या बताऊं। क्या फोन और सोशल मीडिया ने हमारी संवाद की शैली को बदल दिया है? पेन से लिखने की आदत अब लगभग खत्म हो चुकी है, फिर भी कल एक बुजुर्ग महिला ने मुझे 10 पेन का सेट खरीदने के लिए मजबूर किया।
मुझे याद है कि 15 से 35 साल पहले चिट्ठियां लिखना कितना आनंददायक होता था। हर पत्र में नए अभिवादन, कुशलक्षेम पूछने के तरीके, और सुंदर लिखावट देखने का मजा आता था। चिट्ठियों के माध्यम से हम अपने और परिवार के बारे में जानकारी साझा करते थे। उस समय पिनकोड की आवश्यकता नहीं होती थी, क्योंकि पते याद रहते थे। चिट्ठियां हमारे जीवन के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का दस्तावेज होती थीं।
बेटियां जब ससुराल से मायके चिट्ठी लिखती थीं, तो वे अपने मन की बातें खुलकर व्यक्त करती थीं, लेकिन कुछ बातें छिपा भी जाती थीं ताकि उनके माता-पिता को दुख न हो। मां हमेशा बेटियों को ससुराल के बारे में अच्छी बातें लिखने के लिए प्रेरित करती थीं। दूसरी ओर, बेटे जो दूसरे शहरों में काम कर रहे थे, उनकी चिट्ठियों का इंतजार मांओं को रहता था।
चिट्ठियां केवल संवाद का साधन नहीं थीं, बल्कि वे भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम थीं। वे एक मां की आशा, पिता का विश्वास, और पति-पत्नी के मन की बातें व्यक्त करती थीं। नीले रंग का अंतर्देशीय पत्र एक अनंत यात्रा की तरह होता था, जिसे पढ़ने का मन नहीं भरता। राखी भेजने के साथ लिखी गई चिट्ठी भाई-बहन के बचपन की यादों को ताजा करती थी। राखी के साथ आने वाला मनीआर्डर केवल पैसे नहीं, बल्कि उस पर लिखे शब्दों का उपहार होता था।
रिश्तों में अब पहले जैसी संवेदनाएं नहीं रहीं
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