कैसे प्रेमानंद जी महाराज ने मन की चंचलता पर विजय पाने के उपाय बताए?
प्रेमानंद जी महाराज का संदेश
Premanand ji Maharaj News (image from Social Media)
प्रेमानंद जी महाराज: मन की चंचलता मानव के भीतर चल रहे द्वंद्व का प्रतीक है, जहां इच्छाएं, विचार और भावनाएं एक साथ बहती हैं। हर कोई इस मन को नियंत्रित करने की कोशिश करता है, लेकिन समाधान अक्सर कठिन होता है। यदि इस समस्या का समय पर समाधान नहीं किया गया, तो जीवन कठिनाई में बदल सकता है। हाल ही में प्रेमानंद जी ने इस चंचल मन की प्रवृत्ति और इसे नियंत्रित करने के सरल उपायों पर प्रकाश डाला। उनका संदेश केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में आत्म-नियंत्रण और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है। यह संदेश उन सभी के लिए एक मार्गदर्शक है जो मन की चंचलता से जूझ रहे हैं।
मन की चंचलता - सबसे बड़ा आंतरिक शत्रु
प्रेमानंद जी ने अपने प्रवचन में बताया कि मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन उसका अपना मन है, खासकर जब वह चंचल होता है। यह मन कभी भविष्य की चिंता करता है, कभी अतीत की पीड़ा में उलझता है। वर्तमान में टिकना उसके लिए कठिन हो जाता है, क्योंकि यह हर क्षण भटकता रहता है। यही चंचलता उसे अशांत करती है और वह अपने वास्तविक स्वरूप से दूर होता जाता है।
ध्यान: चंचल मन को नियंत्रित करने की पहली सीढ़ी
प्रेमानंद जी ने ध्यान को चंचलता पर विजय पाने का सबसे प्रभावी साधन बताया। उन्होंने कहा कि प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट का ध्यान मन की गति को नियंत्रित करने में मदद करता है। ध्यान के दौरान 'सांस पर ध्यान केंद्रित करें' या 'राम-नाम का जाप करें' करने से मन की अशांति धीरे-धीरे शांत होने लगती है। यदि मन ध्यान में भटकता है, तो धैर्यपूर्वक उसे फिर से एकाग्रता की ओर लाना चाहिए।
संगति का प्रभाव - चंचलता की जड़ में समाज
महाराज जी ने बताया कि हमारी संगति हमारे मन की दिशा को निर्धारित करती है। यदि हम नकारात्मक और अशांत प्रवृत्ति वाले लोगों के साथ रहते हैं, तो हमारा मन भी उसी प्रकार की चंचलता को अपनाता है। इसके विपरीत, सत्संग और भक्ति मन को संयमित करते हैं। इसलिए, चंचल मन को शांत करने के लिए संगति का विवेकपूर्ण चुनाव करना आवश्यक है।
इंद्रियों पर नियंत्रण - चंचलता की जड़ पर प्रहार
मन चंचल होता है क्योंकि हमारी इंद्रियां अनियंत्रित हैं। प्रेमानंद जी ने कहा कि जब हमारी इंद्रियां हर आकर्षक वस्तु की ओर दौड़ती हैं, तो मन भी उनके पीछे भागता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जैसे एक पतंग डोर से बंधा रहता है, वैसे ही इंद्रियों को संयमित रखना आवश्यक है। संयमित आहार और व्यवहार से मन भी स्थिर होता है।
राम-नाम का जप - आत्मा से जोड़ने वाली शक्ति
चंचल मन को राम-नाम का जप प्रभावी रूप से नियंत्रित करता है। महाराज जी ने कहा कि नाम स्मरण केवल धार्मिक कर्म नहीं है, बल्कि यह मन की अशांति को शांत करने का एक गहन विज्ञान है। जब मन किसी नाम का उच्चारण करता है, तो वह उसकी लय में डूब जाता है और भटकाव रुक जाता है।
स्व-अवलोकन - चंचलता का जड़ विश्लेषण
प्रेमानंद जी ने कहा कि 'मन को समझने के लिए मन के साथ बैठना जरूरी है।' यानी आत्मनिरीक्षण। दिन में कुछ समय अपने विचारों का निरीक्षण करने में बिताएं। जब हम अपने विचारों को पहचानने लगते हैं, तब हम उन्हें दिशा भी दे सकते हैं।
कार्य में निष्ठा - चंचलता को सेवा में लगाओ
प्रेमानंद जी ने 'कर्म में एकाग्रता' को चंचलता को नियंत्रित करने का एक और उपाय बताया। जब कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य में पूरी निष्ठा से डूब जाता है, तो मन को भटकने का अवसर नहीं मिलता। उन्होंने गीता का उल्लेख करते हुए कहा, 'कर्म करो, फल की चिंता मत करो'।
भक्ति - मन को प्रेम में लीन करना
महाराज जी ने स्पष्ट किया कि चंचलता केवल अनुशासन से नहीं, प्रेम से भी मिटती है। जब मन किसी उच्चतम प्रेम में डूबता है, जैसे ईश्वर के प्रति भक्ति, तब वह स्वतः शांत हो जाता है।
वर्तमान में जीना - चंचलता की समाप्ति का सूत्र
प्रेमानंद जी ने 'वर्तमान में जीने' पर जोर दिया। चंचलता इसलिए होती है क्योंकि हम अतीत या भविष्य में उलझे रहते हैं। जो व्यक्ति हर पल को ईश्वर की कृपा मानकर जीता है, उसका मन सहज रूप से स्थिर रहता है।
मन को साधना ही आत्मा की ओर पहला कदम
प्रेमानंद जी का यह प्रवचन आज की पीढ़ी के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, जो मानसिक अशांति से जूझ रही है। मन की चंचलता पर विजय पाना साधना, अभ्यास और भक्ति का परिणाम है। यदि हम प्रेमानंद जी के बताए मार्गों को अपनाते हैं, तो चंचल मन भी शांत हो सकता है और आत्मिक शांति की अनुभूति संभव हो जाती है।
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