स्वेतलाना अलिलुयेवा: स्टालिन की बेटी की अनकही कहानी और भारत से जुड़ाव

स्वेतलाना अलिलुयेवा की यात्रा: सत्ता और प्रेम की कहानी
Svetlana-Alliluyeva Story
स्वेतलाना अलिलुयेवा की कहानी: जोसेफ स्टालिन की संतान स्वेतलाना का जीवन सत्ता, विद्रोह, प्रेम और निर्वासन के जटिल अनुभवों से भरा हुआ था। उनका भारत से संबंध केवल एक पर्यटक के रूप में नहीं, बल्कि एक बहू के रूप में भी था। जब उन्होंने भारत में स्थायी रूप से बसने की इच्छा जताई, तो उन्हें शरण नहीं दी गई। यह निर्णय न केवल उनके जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि भारत और सोवियत संघ के संबंधों पर भी एक छाया डालता है।
स्वेतलाना का 1967 में अमेरिका में राजनीतिक शरण लेने का निर्णय शीत युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता की खोज थी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
प्रारंभिक जीवन और ब्रजेश सिंह से संबंध

स्वेतलाना का जन्म 28 फरवरी 1926 को मास्को में हुआ। वह जोसेफ स्टालिन और उनकी पत्नी नादेज़्दा अलिलुयेवा की इकलौती संतान थीं। 1950 के दशक में, उनकी मुलाकात ब्रजेश सिंह से हुई, जो एक भारतीय कम्युनिस्ट नेता थे। दोनों के बीच गहरा संबंध विकसित हुआ, लेकिन सोवियत अधिकारियों ने उनके विवाह को मान्यता नहीं दी। 1966 में ब्रजेश सिंह की मृत्यु के बाद, स्वेतलाना ने उनकी राख को गंगा में विसर्जित करने का निर्णय लिया।
भारत यात्रा और शरण की मांग
दिसंबर 1966 में, स्वेतलाना भारत आईं और ब्रजेश सिंह की राख को गंगा में विसर्जित किया। इस दौरान, उन्होंने भारत में रहने की अनुमति मांगी, लेकिन सोवियत अधिकारियों ने उन्हें वापस लौटने का आदेश दिया। 9 मार्च 1967 को, उन्होंने नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास जाकर राजनीतिक शरण की मांग की।
अमेरिका पहुंच और नई पहचान

अमेरिकी अधिकारियों ने स्वेतलाना को तुरंत भारत से रोम भेजा, फिर वहां से जिनेवा और अंततः अमेरिका। अप्रैल 1967 में, वह न्यूयॉर्क पहुंचीं और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने पिता और सोवियत शासन की आलोचना की। उन्होंने "Twenty Letters to a Friend" नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें अपने जीवन और सोवियत संघ के अनुभवों का वर्णन किया। 1978 में, उन्होंने अमेरिकी नागरिकता प्राप्त की और "लाना पीटर्स" नाम अपनाया।
सोवियत संघ में वापसी और अंतिम वर्ष
1984 में, स्वेतलाना ने अपनी बेटी ओल्गा के साथ सोवियत संघ लौटने का निर्णय लिया और वहां की नागरिकता पुनः प्राप्त की। हालांकि, वहां की परिस्थितियों से असंतुष्ट होकर, 1986 में वह अमेरिका लौट आईं। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, वह विस्कॉन्सिन में रहीं और 22 नवंबर 2011 को उनकी मृत्यु हो गई।
स्वेतलाना की यह यात्रा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की खोज थी, जो शीत युद्ध के दौरान वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई।
ब्रजेश सिंह और स्वेतलाना: क्रेमलिन से कालाकांकर तक का प्रेम
1950 और 60 के दशक में सोवियत संघ के क्रेमलिन अस्पताल में एक असामान्य प्रेम कहानी ने जन्म लिया – कम्युनिस्ट विचारधारा के भारतीय नेता ब्रजेश सिंह और स्टालिन की बेटी स्वेतलाना के बीच।

ब्रजेश सिंह उत्तर प्रदेश के कालाकांकर राजघराने से ताल्लुक रखते थे और कम्युनिस्ट थे, वहीं स्वेतलाना, स्टालिन की बेटी होकर भी, कम्युनिज़्म से विमुख हो चुकी थीं। दोनों साथ रहने लगे, लेकिन तकनीकी तौर पर उनकी शादी को सोवियत सरकार ने मान्यता नहीं दी।
ब्रजेश सिंह की मृत्यु और स्वेतलाना का भारत आगमन
1966 में ब्रजेश सिंह का निधन हो गया। स्वेतलाना उनकी अस्थियाँ लेकर भारत आईं और उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ ज़िले में हिंदू रीति-रिवाज से अस्थि विसर्जन किया। वह भारत में स्थायी रूप से रहना चाहती थीं, लेकिन यहां उन्हें शरण नहीं मिली।
इंदिरा गांधी सरकार की अस्वीकृति: भावना बनाम कूटनीति
यह समय इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने का शुरुआती दौर था। जहां 1959 में नेहरू ने दलाई लामा को भावुक होकर शरण दी थी, वहीं इंदिरा गांधी ने स्वेतलाना को भारत में बसने की अनुमति नहीं दी।

इसका मुख्य कारण सोवियत संघ से भारत के संबंधों को खराब होने से बचाना था। सोवियत संघ उस समय लियोनिद ब्रेझनेव के नेतृत्व में था और वह नहीं चाहता था कि स्टालिन की बेटी विदेश में बस जाए।
स्वेतलाना का अमेरिका गमन: गुप्त मिशन या शरण की मजबूरी?
स्वेतलाना कुछ समय तक भारत में रहीं, लेकिन अंततः वह अमेरिकी दूतावास पहुंच गईं। रात का समय था, लेकिन उन्होंने अमेरिकी गार्ड को अपने दस्तावेज दिखाए और शरण की मांग की।
इसके बाद अमेरिकी राजदूत चेस्टर बॉवल्स को बुलाया गया, जिन्होंने स्वेतलाना को तत्काल वीज़ा दिलवाया और यूरोप के रास्ते अमेरिका भेजा गया।
लोकसभा में तूफान: स्वेतलाना बनाम विदेश नीति
- स्वेतलाना के अचानक अमेरिका जाने की खबर से भारतीय संसद में जोरदार बहस हुई।
- डॉ. राम मनोहर लोहिया ने इसे भारत की कमजोर विदेश नीति बताया और कहा कि अमेरिका अब स्वेतलाना को सोवियत संघ के खिलाफ एक हथियार बनाएगा।
- मधु लिमये ने दावा किया कि स्वेतलाना ने कहा था कि यदि भारत ने निकाल दिया, तो वह यमुना में कूद जाएंगी।
- सीपीएम नेता उमानाथ ने सनसनीखेज दावा किया कि स्वेतलाना लखनऊ में CIA एजेंट के साथ सिनेमा देखने गई थीं।
सरकार की स्थिति: चुप्पी और बचाव
भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री एम.सी. छागला ने कहा कि स्वेतलाना ने आधिकारिक रूप से भारत सरकार से शरण या वीज़ा विस्तार का कोई अनुरोध नहीं किया। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से स्वेतलाना के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए कहा: “कानून भले उन्हें पत्नी न माने, पर उनका प्रेम और वफादारी किसी भी पत्नी से अधिक है।” लेकिन उनके इस बयान से संतोष नहीं हुआ।
भारत-सोवियत संबंधों में दरार
सोवियत सरकार को जब यह ज्ञात हुआ कि स्वेतलाना अमेरिका चली गई हैं, तो उन्होंने भारत पर ठीक से सुरक्षा और देखभाल न करने का आरोप लगाया। भारत सरकार को स्पष्टीकरण देना पड़ा।
स्वेतलाना का जीवन अमेरिका में: प्रसिद्धि से गरीबी तक

स्वेतलाना ने अमेरिका में अपने संस्मरणों पर आधारित एक किताब लिखी, जिसके प्रकाशन से उन्हें 25 लाख डॉलर मिले। लेकिन अधिकांश धन उन्होंने दान कर दिया या खर्च कर डाला और बाद के वर्षों में वह आर्थिक संकट में आ गईं। 22 नवंबर 2011 को 85 वर्ष की उम्र में अमेरिका में उनका निधन हुआ। अंत तक वह अकेली और आर्थिक रूप से संघर्षरत रहीं।
भावना, प्रेम और राजनीति के बीच पिसती एक स्त्री
स्वेतलाना की जीवन गाथा केवल एक राजनेता की बेटी की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी स्त्री की दास्तान है, जिसने राजनीति और विचारधाराओं के बोझ तले अपना व्यक्तिगत जीवन कुर्बान कर दिया। भारत ने भावनाओं की जगह कूटनीति को चुना। शायद यह एक सही निर्णय था अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिहाज से, पर मानवीय दृष्टिकोण से यह एक दर्दनाक अस्वीकृति भी थी।
स्वेतलाना की विरासत:
एक ऐसी महिला जिसने सत्ता और विचारधारा को ठुकराकर प्रेम को अपनाया। जिसने भारत को अपनी मातृभूमि बनाना चाहा, पर ठुकरा दी गई। जो अंत में अमेरिका में गरीबी और अकेलेपन के साथ विदा हुई।