क्या रणबीर कपूर की रामायण में अरुण गोविल की चेतावनी का असर होगा?

रामानंद सागर की ‘रामायण’ का प्रभाव
भगवान श्रीराम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल आज भी भारतीय समाज में एक धार्मिक प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। उनकी आवाज़ और व्यक्तित्व ने उन्हें राम के रूप में स्थापित कर दिया है। लेकिन अब, जब बॉलीवुड एक बार फिर रामायण को बड़े पर्दे पर लाने की योजना बना रहा है, तो अरुण गोविल ने इस पर अपनी गहरी चिंता और निराशा व्यक्त की है।
आदिपुरुष के बाद अरुण गोविल की प्रतिक्रिया
अरुण गोविल का यह बयान ‘आदिपुरुष’ की असफलता के बाद आया है, जिसमें प्रभास और कृति सेनन ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई थीं। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर निराशाजनक प्रदर्शन किया और इसके संवाद, विशेष प्रभाव और धार्मिक पात्रों की प्रस्तुति पर आलोचना हुई। एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "कई लोगों ने रामायण को फिर से बनाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ। मुझे नहीं लगता कि हमें इसे फिर से बनाने की कोशिश करनी चाहिए।"
राम की भूमिका निभाने की चुनौती
अरुण गोविल ने बॉलीवुड के अभिनेताओं की राम की भूमिका निभाने की क्षमता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "इस समय इंडस्ट्री में कोई भी एक्टर इस किरदार के लिए उपयुक्त नहीं है। शायद आपको किसी और जगह से एक्टर ढूंढना पड़े।" यह टिप्पणी रणबीर कपूर के आगामी रामायण में राम की भूमिका निभाने की पुष्टि के बाद आई है।
नीतेश तिवारी की रामायण का प्लान
नीतेश तिवारी की रामायण दो भागों में बनाई जा रही है, जिसमें पहला भाग दिवाली 2026 और दूसरा दिवाली 2027 में रिलीज़ होने की संभावना है। इस फिल्म में रणबीर कपूर के साथ साई पल्लवी सीता और यश रावण की भूमिका में नजर आ सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, अरुण गोविल भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बन सकते हैं, लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।
रामानंद सागर की रामायण का महत्व
1987 में प्रसारित हुई रामानंद सागर की रामायण आज भी भारतीय टेलीविजन की सबसे प्रभावशाली धार्मिक श्रृंखला मानी जाती है। यह शो रविवार सुबह 9:30 बजे प्रसारित होता था और उस समय इसे घर-घर में पूजा की तरह देखा जाता था। 78 एपिसोड की यह श्रृंखला भारतीय परिवारों के लिए केवल एक शो नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और आध्यात्मिक अनुभव बन गई थी।
आदिपुरुष से मिली सीख
2023 में आई आदिपुरुष ने पौराणिक पात्रों को आधुनिक ट्विस्ट और कैजुअल डायलॉग्स में पेश किया, जिससे दर्शकों की धार्मिक भावनाएँ आहत हुईं। "बजंरंग बली तेरे बाप की सेना है क्या?" जैसे संवादों ने फिल्म को भारी आलोचना का सामना कराया। कई जगहों पर प्रदर्शन हुए और अंततः निर्माताओं को डायलॉग्स में बदलाव करने पड़े।
अरुण गोविल का संदेश
अरुण गोविल का संदेश स्पष्ट है। वे बार-बार यह बताते हैं कि रामायण केवल एक कहानी नहीं है, बल्कि संस्कृति, मर्यादा और धर्म का प्रतीक है। इसे केवल तकनीक या बड़े सितारों के सहारे नहीं बनाया जा सकता। "राम बनना सिर्फ स्क्रिप्ट याद करने से नहीं होता, इसके लिए आत्मा से राम को जीना पड़ता है," - अरुण गोविल।
निष्कर्ष
रणबीर कपूर और नीतेश तिवारी की रामायण से दर्शकों को बहुत उम्मीदें हैं, लेकिन अरुण गोविल के शब्द एक चेतावनी के रूप में सामने आए हैं - कि पौराणिक किरदारों को निभाना केवल अभिनय नहीं, बल्कि आस्था, गरिमा और संस्कृति की जिम्मेदारी है। अब देखना यह है कि नीतेश तिवारी की रामायण इस कसौटी पर कितनी खरी उतरती है। क्या रणबीर कपूर भगवान राम की गरिमा को न्याय देंगे या यह प्रयोग भी आदिपुरुष की तरह विवादों में फंस जाएगा?