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क्या फैंटेसी गेम्स युवाओं के लिए बन रहे हैं खतरा? जानें इसके प्रभाव और समाधान!

फैंटेसी गेम्स ने भारतीय युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया है, लेकिन इसके साथ ही यह मानसिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का कारण बन रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, इन ऐप्स का उपयोग करने वाले युवाओं में डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी के मामले बढ़ रहे हैं। इसके अलावा, पारिवारिक जीवन में दरार और आपराधिक गतिविधियों के मामले भी सामने आ रहे हैं। इस लेख में हम फैंटेसी गेम्स के प्रभाव, युवाओं के फंसने के कारण और इसके समाधान पर चर्चा करेंगे। क्या यह डिजिटल लत भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित कर सकती है? जानें पूरी जानकारी में।
 
क्या फैंटेसी गेम्स युवाओं के लिए बन रहे हैं खतरा? जानें इसके प्रभाव और समाधान!

फैंटेसी ऐप्स में युवाओं की रुचि

युवाओं की फैंटेसी ऐप्स में रुचि (फोटो क्रेडिट: AI)

युवाओं की फैंटेसी ऐप्स में रुचि (फोटो क्रेडिट: AI)

फैंटेसी ऐप्स में युवाओं की रुचि: आजकल क्रिकेट मैचों के शुरू होने से पहले आपके फोन पर एक नोटिफिकेशन आना आम बात है, जिसमें कहा जाता है, “अपनी टीम बनाओ और लाखों जीतो!” चाहे IPL हो या वर्ल्ड कप, ये ऐप्स सोशल मीडिया और OTT प्लेटफार्मों पर छाए रहते हैं। भारत में Dream11, MPL, My11Circle और WinZO जैसे ऐप्स ने लाखों युवाओं को आभासी सट्टेबाज़ी की दुनिया में खींच लिया है। यह खेल अब केवल मनोरंजन नहीं रह गया है, बल्कि यह मानसिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का कारण बनता जा रहा है।


फैंटेसी गेम्स और सट्टेबाज़ी का बढ़ता बाजार

भारत में फैंटेसी गेम्स और सट्टेबाज़ी का बढ़ता बाजार:

क्या फैंटेसी गेम्स युवाओं के लिए बन रहे हैं खतरा? जानें इसके प्रभाव और समाधान!

1. आंकड़ों की अनदेखी सच्चाई

2023 में Statista की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में फैंटेसी स्पोर्ट्स का बाजार लगभग 34,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। Dream11 के 18 करोड़ से अधिक यूजर्स में से लगभग 75% की उम्र 18 से 35 वर्ष के बीच है।


सट्टा कानून की सीमाएं

2. सट्टा कानून की सीमाएं

भारत में ‘Public Gambling Act 1867’ के तहत जुए पर सख्त पाबंदी है। हालांकि, ऑनलाइन फैंटेसी गेम्स को ‘स्किल गेम’ के रूप में मान्यता मिलने के कारण इन्हें छूट मिल जाती है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने Dream11 को ‘स्किल बेस्ड गेम’ माना, जिससे इसे वैधता मिली।


युवाओं का फंसना

युवा कैसे फंसते हैं इस घने जाल में

1. जल्दी अमीर बनने की लालसा - इन ऐप्स में 50 से 100 रुपये की एंट्री फीस देकर लाखों रुपये जीतने का दावा युवाओं को आकर्षित करता है। बेरोजगारी और आर्थिक संकट का सामना कर रहे युवा इस लालच में फंस जाते हैं।

2. हार जाने का दबाव - जब कोई यूजर हार जाता है, तो वह अपने पैसे वापस पाने के लिए और अधिक निवेश करता है, जिसे ‘Loss Chasing’ कहा जाता है। यह मानसिकता पारंपरिक जुए में भी देखी जाती है।


'Loss Chasing' की परिभाषा

'Loss Chasing' क्या है?

क्या फैंटेसी गेम्स युवाओं के लिए बन रहे हैं खतरा? जानें इसके प्रभाव और समाधान!

'Loss Chasing' का मतलब है - किसी जुए या सट्टे में अपने पिछले नुकसान हुए पैसे को वापस पाने की लालसा में और अधिक पैसे लगाना। इस खेल में आपको निराशा, भय और क्रोध जैसी भावनाओं का सामना करना पड़ता है।


सोशल मीडिया का प्रभाव

3. सोशल मीडिया पर सेलेब्रिटी का प्रभाव - क्रिकेटर्स और बॉलीवुड सितारों द्वारा प्रमोट किए जाने से ये ऐप्स ‘कूल’ लगते हैं। जब सौरव गांगुली या हार्दिक पांड्या जैसे दिग्गज Dream11 को प्रमोट करते हैं, तो युवा इसे बिना किसी संदेह के अपनाते हैं।


मानसिक और सामाजिक प्रभाव

मानसिक और सामाजिक प्रभाव

क्या फैंटेसी गेम्स युवाओं के लिए बन रहे हैं खतरा? जानें इसके प्रभाव और समाधान!

1. मानसिक स्वास्थ्य पर असर (impact on mental health) - 2022 में National Institute of Mental Health and Neurosciences की रिपोर्ट के अनुसार, नियमित गेमिंग और सट्टेबाज़ी करने वाले युवाओं में डिप्रेशन, एंग्ज़ायटी और इन्सोमनिया के मामले लगभग 45% तक बढ़ गए हैं। हारने पर आत्मग्लानि और कुंठा उन्हें आत्मघाती बना सकती है।


पारिवारिक जीवन में दरार

2. पारिवारिक जीवन में दरार (rift in family life) - अधिकतर मामलों में युवा अपने परिवार से छिपाकर पैसे इन ऐप्स में लगाते हैं। कई बार भारी कर्ज में डूब जाने के कारण कुछ युवा आपराधिक गतिविधियों में भी लिप्त हो जाते हैं।


शिक्षा और करियर पर प्रभाव

3. पढ़ाई और करियर पर प्रभाव (Impact on studies and career) - 2023 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक सर्वे के अनुसार, लगभग 38% कॉलेज स्टूडेंट्स फैंटेसी ऐप्स पर लगातार 1-2 घंटे खर्च करते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई और एकाग्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


आपराधिक गतिविधियों से सम्बन्ध

आपराधिक गतिविधियों से सम्बन्ध

2023 में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में कई मामले सामने आए, जहां युवाओं ने ऐप्स में पैसा हारने के बाद आत्महत्या कर ली या चोरी जैसी वारदात को अंजाम दिया।


उदाहरण

उदाहरण:

- 2023 सितंबर में, मुंबई में 21 वर्षीय छात्र ने लगभग 1.2 लाख रुपये हारने के बाद आत्महत्या कर ली।

- 2024 जनवरी में, हैदराबाद में एक युवक ने कर्ज चुकाने के लिए अपने दोस्त का मोबाइल बेच दिया।


सट्टेबाज़ी और गेमिंग के बीच फर्क

सट्टेबाज़ी और गेमिंग के बीच समझें फर्क

क्या फैंटेसी गेम्स युवाओं के लिए बन रहे हैं खतरा? जानें इसके प्रभाव और समाधान!

कानूनी रूप से ‘गेम ऑफ चांस’ जैसे लॉटरी और सट्टा भारत में प्रतिबंधित हैं, जबकि ‘गेम ऑफ स्किल’ जैसे फैंटेसी स्पोर्ट्स को कुछ राज्यों में अनुमति है। कंपनियां इसी कानून का लाभ उठाकर करोड़ों रुपये कमा रही हैं। लेकिन जब यूजर टीम सेलेक्ट करने के लिए खिलाड़ी के प्रदर्शन की बजाय अपनी ‘gut feeling’ से दांव लगाता है, तो यह भी जुए जैसा हो जाता है।


सरकार की पहल

इस मामले में सरकार क्या कर रही है

1. राज्य सरकारों का रुख - तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने 'फैंटेसी ऐप्स' पर बैन लगाने का प्रयास किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह रोक हटा दी गई।

2. केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय - 2023 में MeitY ने "Online Gaming Rules" बनाए, जिनके तहत हर गेम को Self Regulatory Body (SRB) से प्रमाणित होना होगा। लेकिन इन SRBs को नियंत्रित करने की प्रक्रिया अब भी बेहद नाज़ुक है।

3. कर प्रणाली - 2023 से ऑनलाइन गेमिंग पर लगभग 28% GST लागू कर दिया गया, ताकि इनकी बढ़ती लोकप्रियता में कमी आए, लेकिन युवाओं पर इसका प्रभाव बहुत कम रहा है।


समाधान

क्या है इसका समाधान?

क्या फैंटेसी गेम्स युवाओं के लिए बन रहे हैं खतरा? जानें इसके प्रभाव और समाधान!

1. स्कूल और कॉलेज स्तर पर डिजिटल साक्षरता (Digital Literacy at School and College Level):

बच्चों को शुरू से बताया जाना चाहिए कि ये गेम्स वास्तव में किस तरीके से काम करते हैं और इनके पीछे का लालच क्या है।

2. सेलेब्रिटी एंडोर्समेंट पर रोक (Ban on celebrity endorsements): सेलेब्रिटी एंडोर्समेंट जैसे तंबाकू उत्पादों के विज्ञापनों पर रोक लग गई है, वैसे ही सट्टा और फैंटेसी गेम्स को प्रमोट करने पर भी सख्त प्रतिबंध लगना चाहिए।

3. पारिवारिक संवाद और निगरानी (Family communication and monitoring): परिवार में माता-पिता या अन्य पेरेंट्स अपने बच्चों पर मोबाइल में देखे जाने वाले सभी कंटेंट पर नज़र रखें और समय रहते उन्हें मानसिक सपोर्ट भी दें।

4. स्ट्रिक्ट रेगुलेशन (Strict Regulation): सरकार को इन ऐप्स की कार्यप्रणाली की नियमित रूप से कड़ी निगरानी करनी चाहिए और ‘लॉस लिमिट’ जैसे फीचर्स अनिवार्य कर देने चाहिए।

अब क्या कर सकते हैं...?

मनोरंजन के नाम पर शुरू हुई एक डिजिटल लत अब जुए की लत बन चुकी है, जो आज भारत के युवा वर्ग को मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से नष्ट कर रही है। सरकार, समाज और परिवार के सदस्य मिलकर इस दिशा में सतर्कता नहीं बरतते जिससे ये भविष्य की पूरी पीढ़ी को निगल लेगी। लेकिन....रुकिए ज़रा.... अभी भी देर नहीं हुई.... हम इसका समाधान - सतर्कता, सद्बुद्धि, समझदारी से कर सकते हैं और भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को इस ज़हरीले नशे की लत से बचा सकते हैं।


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