क्या प्रेमचंद की कहानियों ने भारतीय संविधान को प्रभावित किया? जानें कैसे!
प्रेमचंद की कहानियों और भारतीय संविधान का संबंध
Premchand (Image Credit-Social Media)
प्रश्न: क्या प्रेमचंद की रचनाओं में ऐसे तत्व हैं जो भारतीय संविधान में भी दिखाई देते हैं?
उत्तर: बिल्कुल, प्रेमचंद की कृतियों में सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सिद्धांतों का बार-बार उल्लेख मिलता है, जो भारतीय संविधान (1950) की नींव बने। यह समान सामाजिक बुराइयों के खिलाफ एक साझा दृष्टिकोण का प्रतीक है, न कि प्रेमचंद से सीधे लिया गया। दोनों ने अपने समय की जटिल सामाजिक संरचना की चुनौतियों का सामना किया।
मुख्य तथ्यों का विश्लेषण एवं प्रमाणिक स्रोत
1. जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता का विरोध (समानता - अनुच्छेद 14-18):
प्रेमचंद की कहानियाँ जैसे "सद्गति", "ठाकुर का कुआँ", और "कफन" जातिगत भेदभाव और शोषण की गहरी तस्वीर पेश करती हैं। "सद्गति" का पात्र इस व्यवस्था की क्रूरता का प्रतीक बन गया है।
संविधान: अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव पर रोक), अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत), अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत)।
सम्बन्ध व तथ्य: प्रेमचंद ने जिस क्रूरता का चित्रण किया, संविधान ने उसे गैर-कानूनी ठहराया। उनके लेखन ने सामाजिक न्याय की मांग को उजागर किया, जो संविधान का मुख्य उद्देश्य है।
स्रोत: प्रेमचंद की कहानियाँ ("मानसरोवर" संग्रह), भारतीय संविधान का मूल पाठ (अनुच्छेद 14-18)।
2. सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों का उत्थान (अनुच्छेद 15(4), 16(4), 46):
प्रेमचंद के पात्र जैसे "गोदान" का होरी और "कफन" के घीसू-माधव ने समाज के निचले स्तर पर जीवन की कठिनाइयों को संवेदनशीलता से दर्शाया। उनकी रचनाएँ शोषण के खिलाफ एक आवाज थीं।
संविधान: अनुच्छेद 15(4) और 16(4) (SC/ST और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण), अनुच्छेद 46 (SC/ST और अन्य कमजोर वर्गों के हितों का संरक्षण)। प्रस्तावना में "सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय" का लक्ष्य।
सम्बन्ध व तथ्य: प्रेमचंद ने जिन वंचितों के दुख को चित्रित किया, संविधान ने उन्हें न्याय और उन्नति का संवैधानिक अधिकार दिया।
स्रोत: उपन्यास "गोदान", कहानी "कफन", भारतीय संविधान (अनुच्छेद 15(4), 16(4), 46, प्रस्तावना)।
3. स्त्री अधिकार और समानता (अनुच्छेद 14, 15, 21):
प्रेमचंद की रचनाएँ जैसे "निर्मला" और "सेवासदन" में महिलाओं के प्रति अन्याय, दहेज प्रथा और बाल विवाह की समस्याओं को उठाया गया है। निर्मला का चरित्र स्त्री-शोषण का प्रतीक है।
संविधान: अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद 15 (लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार)।
सम्बन्ध व तथ्य: प्रेमचंद ने स्त्री जीवन की त्रासदियों को उजागर किया, जबकि संविधान ने महिलाओं को समान अधिकार और सम्मान का कानूनी आधार दिया।
स्रोत: उपन्यास "निर्मला", "सेवासदन", भारतीय संविधान (अनुच्छेद 14, 15, 21)।
4. गरीब किसान और मजदूरों का शोषण (अनुच्छेद 23, 24, 39, 43):
प्रेमचंद का होरी साहूकारों और जमींदारों के शोषण का शिकार है। "पूस की रात" में किसान की विवशता को दर्शाया गया है। उनकी रचनाएँ किसानों और मजदूरों की दुर्दशा को स्पष्ट रूप से दिखाती हैं।
संविधान: अनुच्छेद 23 (मानव दुर्व्यापार और बलात श्रम का निषेध), अनुच्छेद 24 (बाल श्रम पर प्रतिबंध), अनुच्छेद 39(क) (जीविकोपार्जन के साधनों का समान वितरण), अनुच्छेद 43 (कामगारों को उचित मजदूरी और काम की उचित शर्तें)।
सम्बन्ध व तथ्य: प्रेमचंद ने ग्रामीण शोषण की क्रूरता को उजागर किया, जबकि संविधान ने श्रमिकों के कल्याण के लिए ठोस प्रावधान किए।
स्रोत: उपन्यास "गोदान", कहानी "पूस की रात", भारतीय संविधान (अनुच्छेद 23, 24, भाग IV - राज्य के नीति निदेशक तत्व विशेषकर 39, 43)।
5. धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिक सद्भाव (अनुच्छेद 25-28, प्रस्तावना):
प्रेमचंद की कहानियाँ जैसे "मंदिर और मस्जिद" और "ईदगाह" हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देती हैं। उनका साहित्य साम्प्रदायिकता की निंदा करता है।
संविधान: अनुच्छेद 25-28 (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार), प्रस्तावना में "पंथनिरपेक्ष" शब्द। सभी नागरिकों को बिना धार्मिक भेदभाव के समान अधिकार।
सम्बन्ध व तथ्य: प्रेमचंद ने साम्प्रदायिक सद्भाव को प्राथमिकता दी, जबकि संविधान ने धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता को स्थापित किया।
स्रोत: कहानियाँ "मंदिर और मस्जिद", "ईदगाह", भारतीय संविधान (अनुच्छेद 25-28, प्रस्तावना)।
साहित्यिक पूर्वाभास और संवैधानिक अभिव्यक्ति
सीधा प्रभाव नहीं, साझा दृष्टि: यह कहना गलत होगा कि संविधान निर्माता सीधे तौर पर प्रेमचंद की कहानियों से प्रेरित थे। फिर भी, यह स्पष्ट है कि प्रेमचंद और संविधान निर्माता (जैसे डॉ. अंबेडकर, पं. नेहरू) एक ही ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ से जूझ रहे थे।
साहित्य: प्रेमचंद का यथार्थवादी साहित्य उस समय के भारत की सामाजिक-आर्थिक विषमताओं का दस्तावेज है। इसने समाज में व्याप्त बुराइयों के प्रति जागरूकता फैलाई और परिवर्तन की मांग को मजबूत किया।
संविधान: संविधान ने सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने और एक न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान किया। यह प्रेमचंद द्वारा उजागर की गई समस्याओं का संस्थागत समाधान था।
अंतिम बात: प्रेमचंद की कहानियाँ और भारतीय संविधान, दोनों ही भारत के सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय गरिमा के संघर्ष की अभिव्यक्तियाँ हैं। प्रेमचंद ने समाज को जागरूक किया, जबकि संविधान ने उसे बदलने के लिए कानूनी साधन दिए।
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