किसानों के सच्चे मसीहा: चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर विशेष श्रद्धांजलि

चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि
चौधरी चरण सिंह पुण्यतिथि (सोशल मीडिया से)
चौधरी चरण सिंह पुण्यतिथि: भारतीय राजनीति में चौधरी चरण सिंह को एक महत्वपूर्ण नेता, कुशल प्रशासक और किसानों की आवाज़ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, बल्कि स्वतंत्र भारत के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके द्वारा कृषि, भूमि सुधार और ग्रामीण विकास के लिए किए गए कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। 29 मई को उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करना केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करने का अवसर है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
चौधरी चरण सिंह, जिन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता है, का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गाँव में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल से प्राप्त की और फिर मेरठ के सरकारी स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1923 में विज्ञान में स्नातक और 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। इसके बाद, 1926 में मेरठ कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त कर गाजियाबाद में वकालत शुरू की।
राजनीतिक यात्रा की शुरुआत
चौधरी चरण सिंह ने 1929 में कांग्रेस में शामिल होकर 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव जीते। 1946 से 1967 तक उन्होंने विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव के रूप में कार्य किया। 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। इसके बाद 1962-63 में सुचेता कृपलानी के मंत्रिमंडल में कृषि एवं वन मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
किसानों के मसीहा
चौधरी चरण सिंह ने अपनी राजनीतिक यात्रा किसानों के हितों के लिए शुरू की। उनका मानना था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है और जब तक गांवों का विकास नहीं होगा, तब तक भारत सशक्त नहीं हो सकता। उन्होंने उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार के लिए कई सराहनीय कार्य किए और जोत अधिनियम, 1960 को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने जमींदारी उन्मूलन अधिनियम और चकबंदी अधिनियम में भी योगदान दिया। उनका कहना था, "जो राष्ट्र अपने किसानों को पीछे छोड़ता है, वह कभी भी प्रगति नहीं कर सकता।"
प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल
चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी से अलग होकर जनता पार्टी में शामिल हुए, लेकिन जल्द ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया। 1979 में इंदिरा गांधी के समर्थन से नई सरकार का गठन कर देश के पांचवे प्रधानमंत्री बने। हालांकि, उनकी सरकार संसद में बहुमत साबित नहीं कर पाई और उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। उन्होंने कृषि और ग्रामीण विकास से जुड़े कई नीतिगत निर्णय लिए, जैसे ग्रामीण बैंकों की स्थापना और किसानों के लिए ऋण माफी।
वैचारिक योगदान और लेखन
चौधरी चरण सिंह केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक गंभीर चिंतक और लेखक भी थे। उन्होंने भारत की आर्थिक स्थिति और किसानों की समस्याओं पर कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें शामिल हैं:
- ज़मींदारी उन्मूलन
- भारत की गरीबी और उसका समाधान
- किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि
- प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम
- को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद्
निजी जीवन और व्यक्तित्व
चौधरी चरण सिंह एक कद्दावर और कड़क नेता के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए जनकल्याण के लिए अभूतपूर्व कार्य किए। वे व्यक्तिगत जीवन में सादा, ईमानदार और नैतिक मूल्यों से युक्त व्यक्ति थे। उनका विवाह गायत्री देवी से हुआ और उनके छह बच्चे हुए। उनके पुत्र अजीत सिंह भी भारतीय राजनीति में एक प्रमुख नेता बने।
मृत्यु और विरासत

29 मई 1987 को दिल्ली में चौधरी चरण सिंह का निधन हो गया। उनके निधन के बाद भारत ने एक ऐसा नेता खो दिया जो किसानों की सच्ची आवाज थे। दिल्ली में 'किसान घाट' नाम से उनका समाधि स्थल बनाया गया है, जहाँ हर वर्ष हजारों लोग श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। किसानों के साथी होने के कारण भारत सरकार ने उनकी स्मृति में 23 दिसंबर को 'राष्ट्रीय किसान दिवस' घोषित किया, जो आज भी मनाया जाता है। यह दिन केवल किसानों का सम्मान नहीं, बल्कि चौधरी चरण सिंह की विचारधारा को जीवित रखने का प्रतीक है। उनके विचार और नीतियां आज भी प्रासंगिक हैं। उनका जीवन यह दर्शाता है कि किस प्रकार सादगी, ईमानदारी और अच्छे नजरिए के साथ राजनीति की जा सकती है। वे सेवा के लिए राजनीति में आए थे।
चौधरी चरण सिंह की विचारधारा
चौधरी चरण सिंह केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे, जो भारतीय गांव, खेत और किसान से गहराई से जुड़ी हुई थी। उनकी पुण्यतिथि पर यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उनके आदर्शों को न केवल याद करें, बल्कि अपने कार्यों में भी उतारें। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।