भीमा कोरेगांव हिंसा: क्या है इस विवाद का असली सच?
भीमा कोरेगांव हिंसा का इतिहास
Bhima Koregaon Hinsa Kya Tha
Bhima Koregaon Hinsa Kya Tha
भीमा कोरेगांव हिंसा का मामला: यह घटना 1 जनवरी 2018 को हुई, जब भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर हिंसा भड़क उठी। इस आयोजन के दौरान दलित और मराठा समुदायों के बीच झड़पें हुईं, जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई और कई लोग घायल हुए।
पुलिस की जांच में यह सामने आया कि 31 दिसंबर 2017 को आयोजित 'एल्गार परिषद' सम्मेलन में भड़काऊ भाषण दिए गए थे, जिन्होंने अगले दिन की हिंसा को उकसाया। इस सम्मेलन को कथित तौर पर माओवादी तत्वों द्वारा वित्त पोषित किया गया था। आयोजन के दौरान, भगवा झंडे लिए कुछ लोगों ने तलवारों और लोहे की छड़ों से हमला किया। इसके बाद दो एफआईआर दर्ज की गईं:
पहली एफआईआर में हिंदुत्व समर्थक नेता मनोहर भिडे और मिलिंद एकबोटे को आरोपी बनाया गया। दूसरी एफआईआर में वामपंथी समूहों के माओवादी संबंधों का आरोप लगाया गया।
पुलिस ने दूसरी एफआईआर के आधार पर कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया, जिनमें रोना विल्सन, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, स्टेन स्वामी, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्नन गोंजाल्विस शामिल थे। इन पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और जातीय समूहों में दुश्मनी बढ़ाने का आरोप लगा।
इतिहास की दृष्टि से, भीमा-कोरेगांव, पुणे जिले का एक महत्वपूर्ण गांव है। 1 जनवरी 1818 को, एक ब्रिटिश सेना, जिसमें दलित सैनिक शामिल थे, ने पेशवा बाजीराव द्वितीय की सेना को हराया। दलित समुदाय इस युद्ध को अन्याय के खिलाफ एक ऐतिहासिक विजय मानता है। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस युद्ध में मारे गए सैनिकों की याद में 'विजय स्तंभ' स्थापित किया, जो इस युद्ध को दलितों के लिए और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
घटनाओं का क्रम:
- 29 दिसंबर 2017: गोविंद गोपाल महार के स्मारक को अपवित्र करने की घटना से तनाव की शुरुआत हुई।
- 31 दिसंबर 2017: पुणे में 'एल्गार परिषद' सम्मेलन का आयोजन हुआ। पुलिस का कहना है कि इसमें भड़काऊ भाषण दिए गए।
- 1 जनवरी 2018: भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़की।
- 2 जनवरी 2018: पुणे पुलिस ने संभाजी भिडे और मिलिंद एकबोटे के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
- 9 फरवरी 2018: महाराष्ट्र सरकार ने जांच के लिए आयोग का गठन किया।
- 6 जून 2018: पुणे पुलिस ने कई दलित कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया।
- 28 अगस्त 2018: कई प्रमुख कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।
- 5 सितंबर 2018: महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उनके पास माओवादी संबंधों के सबूत हैं।
- 28 सितंबर 2018: सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी में हस्तक्षेप करने से इंकार किया।
- 14 जनवरी 2019: सुप्रीम कोर्ट ने आनंद तेलतुंबड़े के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इंकार किया।
- 22 जनवरी 2020: महाराष्ट्र सरकार ने मामले की दोबारा जांच के आदेश दिए।
- 24 जनवरी 2020: NIA ने जांच अपने हाथ में ली।
- 7 अक्टूबर 2020: NIA ने चार्जशीट दायर की।
- 21 मार्च 2021: NIA की विशेष अदालत ने स्टेन स्वामी की जमानत याचिका खारिज की।
- 20 अप्रैल 2021: वॉशिंगटन पोस्ट ने खुलासा किया कि सबूतों को 'प्लांट' किया गया था।
- 5 जुलाई 2021: स्टेन स्वामी का हिरासत में निधन हो गया।
- 5 मई 2022: सुप्रीम कोर्ट ने वरवर राव को जमानत दी।
- 19 नवंबर 2022: गौतम नवलखा को रिहा किया गया।
- 1 जुलाई 2023: आयोग को एक और विस्तार दिया गया।
- 28 जुलाई 2023: सुप्रीम कोर्ट ने वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा को जमानत दी।
- 29 अगस्त 2018: मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी को चुनौती दी।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि गिरफ्तारियां मनमानी थीं और अपर्याप्त साक्ष्यों पर आधारित थीं। उन्होंने कहा कि कोई भी आरोपी 'एल्गार परिषद' में उपस्थित नहीं था।
प्रतिवादियों का कहना था कि याचिकाकर्ताओं का इन गिरफ्तारियों से कोई संबंध नहीं है। पुणे पुलिस ने कहा कि उन्होंने आरोपियों के उपकरणों से सामग्री प्राप्त की है, जो प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश से संबंधित है। याचिकाकर्ताओं ने इसे झूठा प्रचार बताया।
न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर ने बहुमत का निर्णय सुनाया, जिसमें उन्होंने पुणे पुलिस को जांच जारी रखने की अनुमति दी। उन्होंने कहा कि आरोपियों ने वर्तमान याचिकाओं को मानने की पुष्टि की थी।
चूंकि आरोपी अब याचिकाकर्ता बन चुके थे, इसलिए SIT गठित करने की मांग खारिज कर दी गई। कोर्ट ने कहा कि कोई भी आरोपी यह नहीं मांग सकता कि जांच किस एजेंसी से कराई जाए।
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की असहमति
Bhima Koregaon Case (Image Credit-Social Media)
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जब जांच जारी थी, तब पुलिस द्वारा मीडिया से जानकारी साझा करना निंदनीय था। उनके अनुसार, यह आरोपियों के खिलाफ जनमत को प्रभावित करता है। इस कारण उन्होंने SIT के गठन की आवश्यकता पर बल दिया।
क्या सबूतों को एक्टिविस्ट्स के उपकरणों में डाला गया था?
कई गिरफ्तार लोग 'एल्गार परिषद' में मौजूद नहीं थे, फिर भी पुलिस की चार्जशीट में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से प्राप्त तथाकथित सबूतों पर भरोसा किया गया।
NIA को सौंपी गई जांच
22 जनवरी 2020 को, महाराष्ट्र सरकार ने नई जांच का आदेश दिया। 24 जनवरी को NIA ने जांच अपने हाथ में ली।
Bhima Koregaon Case (Image Credit-Social Media)
बुजुर्गों की गिरफ्तारी, स्वास्थ्य समस्याएं और जमानत
भीमा कोरेगांव मामले में कुल 16 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से केवल 5 को जमानत मिली है। स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत हो चुकी है। UAPA के तहत आरोपों के कारण जमानत का विरोध किया गया।
स्टेन स्वामी, जो 84 वर्ष के थे और कई बीमारियों से पीड़ित थे, 5 जुलाई 2021 को जेल में ही निधन हो गए। उन्हें तीन साल तक जमानत नहीं दी गई। NIA पर आरोप लगा कि उन्होंने उन्हें बुनियादी सुविधाएं देने से भी मना किया।
जांच आयोग की समय सीमा में 12 बार विस्तार
1 जुलाई 2023 को महाराष्ट्र सरकार ने भीमा कोरेगांव जांच आयोग की समय सीमा 30 सितंबर 2023 तक बढ़ा दी। यह आयोग फरवरी 2018 में गठित किया गया था और इसकी समय सीमा 12 बार बढ़ाई गई।
Bhima Koregaon Case (Image Credit-Social Media)
भीमा कोरेगांव मामला केवल एक स्थानीय हिंसा की घटना नहीं है, बल्कि यह न्यायपालिका, मानवाधिकार, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की वैधता, राज्य की शक्ति और असहमति के अधिकार से जुड़ा एक व्यापक संवैधानिक मुद्दा बन गया है। अब यह मामला भारतीय लोकतंत्र के सामने एक परीक्षा की तरह खड़ा है, जिसमें यह देखा जाना बाकी है कि कानून और मानवाधिकारों के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाता है।
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