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आदि शंकराचार्य जयंती 2025: महान संत की अद्वितीय यात्रा और योगदान

आदि शंकराचार्य जयंती 2025 पर, हम महान संत के जीवन और उनके अद्वितीय कार्यों का स्मरण करते हैं। शंकराचार्य ने केवल 32 वर्ष की आयु में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनमें सनातन धर्म की पुनर्स्थापना और चार शांकर मठों की स्थापना शामिल है। उनकी शिक्षाएं आज भी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। जानें उनके जीवन की अद्वितीय घटनाओं और योगदान के बारे में।
 
आदि शंकराचार्य जयंती 2025: महान संत की अद्वितीय यात्रा और योगदान

आदि शंकराचार्य जयंती 2025: एक महान संत का अवतरण

आदि शंकराचार्य जयंती 2025 (सोशल मीडिया से)

आदि शंकराचार्य जयंती 2025: जगद्गुरु आदि शंकराचार्य एक अद्वितीय प्रतिभा के धनी थे, जिनका जन्म लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व वैशाख शुक्ल पंचमी को हुआ था। आज उनकी जयंती का उत्सव मनाया जा रहा है। युधिष्ठिर पंचांग के अनुसार, उनका अवतरण ईसा से लगभग 600 वर्ष पूर्व हुआ था, हालांकि कई इतिहासकारों ने उनके जन्म के समय को लेकर भिन्न मत व्यक्त किए हैं।


मानवता के संरक्षक: जगद्गुरु आदि शंकराचार्य

आदि शंकराचार्य ने केवल सात वर्ष की आयु में वेदों का अध्ययन शुरू कर दिया था, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वे साधारण बालक नहीं थे। उन्होंने बारह वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगतता हासिल की और सोलह वर्ष की आयु में ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा।


आदि शंकराचार्य जयंती 2025: महान संत की अद्वितीय यात्रा और योगदान


विष्णु सहस्र नाम के शांकर भाष्य का श्लोक है:


श्रुतिस्मृति ममैताज्ञेयस्ते उल्लंध्यवर्तते।


आज्ञाच्छेदी ममद्वेषी मद्भक्तोअ पिन वैष्णव।।


इस श्लोक में भगवान विष्णु ने कहा है कि जो मेरी आज्ञा का उल्लंघन करता है, वह मेरा भक्त नहीं है। शंकराचार्य का जन्म भगवान परशुराम की भूमि केरल के कालड़ी गांव में हुआ था। श्रद्धालुओं ने उन्हें 'शंकरः शंकरः साक्षात्' के रूप में स्वीकार किया।


भगवान ने भक्तों के विश्वास को मजबूत करने के लिए अवतार लिया। उनके अद्वितीय कार्यों ने सनातन धर्म को पुनर्जीवित किया।


आदि शंकराचार्य का जीवन और कार्य

आदि शंकराचार्य ने अपने अल्प जीवन में अनेक कार्य किए, जैसे कि चार शांकर मठों की स्थापना, वेदांत दर्शन का प्रचार, और धर्म की रक्षा के लिए कई बार भारत का भ्रमण किया।


आदि शंकराचार्य जयंती 2025: महान संत की अद्वितीय यात्रा और योगदान


उनकी अलौकिक घटनाओं में माता से संन्यास की आज्ञा लेना, गोविन्द भगवत्पाद से दीक्षा लेना, और भगवान विश्वनाथ के दर्शन करना शामिल हैं।


उन्होंने नेपाल में विभिन्न संप्रदायों का समन्वय किया और भारत में धर्म की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए।


आदि शंकराचार्य का अंतिम समय

भगवान शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में इस संसार को त्याग दिया। उनके कार्यों ने सनातन धर्म को एक नई दिशा दी और वे आज भी श्रद्धा के साथ याद किए जाते हैं।


आदि शंकराचार्य जयंती 2025: महान संत की अद्वितीय यात्रा और योगदान


उनकी शिक्षाएं और कार्य आज भी मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। जगद्गुरु शंकराचार्य जी को कोटि कोटि प्रणाम।


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