श्रीलाल शुक्ल: हिंदी साहित्य के व्यंग्य सम्राट की जयंती पर एक नजर
श्रीलाल शुक्ल का साहित्यिक सफर
नई दिल्ली, 31 दिसंबर। हिंदी साहित्य के महान व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल की जयंती आज मनाई जा रही है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के अतरौली गांव में हुआ था। शुक्ल ने अपनी लेखनी से यह सिद्ध किया कि व्यंग्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि यह गंभीर सामाजिक मुद्दों को प्रभावी ढंग से उजागर करने का एक सशक्त माध्यम है।
उनकी प्रसिद्ध कृति 'राग दरबारी' आज भी इस बात का प्रमाण है कि व्यंग्य के जरिए समाज की वास्तविकताओं को उजागर किया जा सकता है। शुक्ल ने समाज की विसंगतियों, भ्रष्टाचार, नौकरशाही और ग्रामीण जीवन की कड़वी सच्चाइयों को हास्य के माध्यम से इस तरह प्रस्तुत किया कि पाठक हंसते-हंसते सोचने पर मजबूर हो जाते थे।
'राग दरबारी' हिंदी व्यंग्य साहित्य का एक मील का पत्थर है, जो 1968 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में काल्पनिक गांव शिवपालगंज के माध्यम से स्वतंत्र भारत के ग्रामीण समाज, राजनीति और शिक्षा व्यवस्था की वास्तविकताओं को उजागर किया गया है। पाठक को ऐसा अनुभव होता है जैसे वह स्वयं उस गांव का हिस्सा हो।
श्रीलाल शुक्ल की 'राग दरबारी' ने हिंदी साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई। इस कृति का अनुवाद 15 भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी में भी किया गया है। इसके अलावा, दूरदर्शन पर इस पर आधारित धारावाहिक भी प्रसारित हुआ था, जिसमें ओम पुरी और आलोक नाथ जैसे अभिनेता शामिल थे।
शुक्ल का जन्म 31 दिसंबर 1925 को हुआ था। उनकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाओं में 'स्वर्णग्राम और वर्षा', 'अंगद का पांव', 'सूनी घाटी का सूरज', 'अज्ञातवास', 'बिसरामपुर का संत' और 'मैं क्यों लिखता हूं' शामिल हैं। उनके लेखन में समाज के प्रति गहरी संवेदना और तीखा व्यंग्य देखने को मिलता है।
साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले, जिनमें 1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2008 में पद्म भूषण और 2009 में ज्ञानपीठ पुरस्कार शामिल हैं।
एक बार उन्होंने कहा था, “मेरे स्वभाव में छटपटाहट नहीं है। यदि छटपटाहट होती तो शायद मेरे लेखन का आकार बड़ा होता। मैं ठंडे मिजाज से लिखता हूं।”
श्रीलाल शुक्ल का निधन 28 अक्टूबर 2011 को हुआ, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी जीवित हैं।
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