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कंगना रनौत ने संसद में 'वंदे मातरम' पर चर्चा को लेकर व्यक्त की अपनी भावनाएं

बॉलीवुड अभिनेत्री और भाजपा सांसद कंगना रनौत ने संसद में 'वंदे मातरम' पर चल रही चर्चा के दौरान अपने विचार साझा किए। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना की और कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा कि उनकी सोच हमेशा से महिलाओं के खिलाफ रही है। कंगना ने 'वंदे मातरम' के ऐतिहासिक महत्व को भी उजागर किया, जो स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया। जानें इस चर्चा के और भी महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में।
 
कंगना रनौत ने संसद में 'वंदे मातरम' पर चर्चा को लेकर व्यक्त की अपनी भावनाएं

कंगना रनौत का संसद में 'वंदे मातरम' पर बयान

नई दिल्ली, 8 दिसंबर। बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री और भाजपा सांसद कंगना रनौत ने संसद में 'वंदे मातरम' पर चल रही चर्चा के दौरान अपने विचार साझा किए। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से इस गीत के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करने की सराहना की, जिसमें बताया गया कि कैसे यह गीत स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विरोध की भावना को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा।

कंगना ने कहा, ''एक कलाकार के नाते मुझे गर्व है कि संसद में इस गीत, कविता और कला पर इतनी लंबी चर्चा हो रही है। यह गीत आज के राष्ट्रवादी विचारों का आधार है और इसकी यात्रा सदियों पुरानी है।''

उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की कला और सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने की नीति की प्रशंसा की।

कंगना ने कांग्रेस पर भी तीखा हमला किया, यह कहते हुए कि 2014 में जब भारत ने अमृत काल की शुरुआत की, तब अर्थव्यवस्था प्रधानमंत्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने महिलाओं के सम्मान को नुकसान पहुंचाया और देश के विकास में बाधा डाली।

उन्होंने कहा, ''मेरे व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार, कांग्रेस ने मेरे काम और पहनावे पर भी सवाल उठाए। जहां भाजपा की सरकार होती है, वहां की महिलाओं पर भी उंगली उठाई गई। कांग्रेस की सोच हमेशा से महिलाओं के खिलाफ रही है।''

कंगना ने यह भी कहा कि 'वंदे मातरम' में मां दुर्गा का उल्लेख है, लेकिन कांग्रेस ने इस पर भी आपत्ति जताई, जो यह दर्शाता है कि उनकी सोच में महिला विरोधी तत्व मौजूद हैं। इसके विपरीत, प्रधानमंत्री मोदी ने देश की महिलाओं के सम्मान को बढ़ावा दिया है।

'वंदे मातरम' को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में लिखा था और यह उनके उपन्यास 'आनंदमठ' में शामिल किया गया। इसके पहले दो छंद देवी दुर्गा की शक्ति और मातृभूमि की महिमा का वर्णन करते हैं, जबकि अन्य पंक्तियों में मातृभूमि की सुंदरता और भावनाओं को व्यक्त किया गया है। रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्ध किया और 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में पहली बार इसे सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया गया। इसके बाद यह गीत स्वतंत्रता संग्राम और स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक बन गया।


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