ओम प्रकाश: हिंदी सिनेमा का वो सितारा जिसने बिना हीरो बने भी छोड़ी अमिट छाप
ओम प्रकाश का अद्वितीय सफर
मुंबई, 18 दिसंबर। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे कलाकार हुए हैं जिन्होंने हीरो की भूमिका निभाए बिना भी दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई। इनमें से एक प्रमुख नाम ओम प्रकाश का है। जब भी वह स्क्रीन पर आते थे, दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी। उनकी कॉमिक टाइमिंग इतनी बेहतरीन थी कि बड़े-बड़े सितारे भी उनके सामने फीके नजर आते थे। ओम प्रकाश ने सैकड़ों फिल्मों में अपने अभिनय का जादू बिखेरा।
कहा जाता है कि फिल्म निर्माताओं द्वारा उन्हें अच्छी फीस दी जाती थी, लेकिन उनकी पहली फिल्म में मिली फीस आज के समय में एक चाय की कीमत से भी कम थी।
ओम प्रकाश का जन्म 19 दिसंबर 1919 को लाहौर (जो अब पाकिस्तान है) में हुआ। उनका पूरा नाम ओम प्रकाश छिब्बर था। उनके पिता एक किसान थे। बचपन से ही ओम प्रकाश को अभिनय, संगीत और मंच की दुनिया का आकर्षण था। उन्होंने बहुत छोटी उम्र में रामलीला में भाग लेना शुरू किया। दिलचस्प बात यह है कि उनका पहला स्टेज रोल माता सीता का था, जिससे उनके अभिनय की शुरुआत हुई।
अभिनय के साथ-साथ ओम प्रकाश को संगीत का भी गहरा शौक था। उन्होंने 12 साल की उम्र में शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। 1937 में, उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो जॉइन किया, जहां उन्हें महीने के केवल 25 रुपए मिलते थे। रेडियो पर उन्हें 'फतेहदीन' के नाम से जाना जाता था और उनका कार्यक्रम लाहौर और पंजाब में बहुत लोकप्रिय हो गया। हालांकि, उनका सपना फिल्मों में काम करने का था।
बॉलीवुड में ओम प्रकाश की एंट्री भी एक फिल्मी कहानी से कम नहीं थी। एक बार, जब वह एक शादी में लोगों का मनोरंजन कर रहे थे, तब मशहूर फिल्म निर्माता दलसुख पंचोली की नजर उन पर पड़ी। पंचोली ने उन्हें फिल्म 'दासी' में काम करने का मौका दिया, जिसके लिए उन्हें केवल 80 रुपए की फीस मिली।
शुरुआती दिनों में उन्हें ज्यादा पहचान नहीं मिली, लेकिन 1949 में फिल्म 'लखपति' में निभाए गए एक विलेन के किरदार ने उन्हें चर्चा में ला दिया। इसके बाद ओम प्रकाश ने सपोर्टिंग रोल में ऐसी मजबूत पहचान बनाई कि हर फिल्म में उनका किरदार याद रखा गया। 1950 से 1980 के बीच उन्होंने लगातार काम किया और सिनेमा को 'आशिक हूं बहारो का', 'हावड़ा ब्रिज', 'सोहनी माहीवाल', 'एक झलक', 'भाई-भाई', 'पटरानी', 'मेम साहिब', 'धोती लोटा और चौपाटी', 'चौकीदार' और 'सब का साथी' जैसी शानदार फिल्में दीं। वह हिंदी सिनेमा के सबसे भरोसेमंद कलाकार बन गए।
उन्होंने अपने करियर में 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। उनकी चर्चित फिल्मों में 'पड़ोसन', 'चुपके-चुपके', 'दस लाख', 'गोपी', 'दिल दौलत दुनिया', 'जोरू का गुलाम', 'नमक हलाल', 'शराबी', 'जंजीर', 'हावड़ा ब्रिज', 'तेरे घर के सामने', 'लोफर', 'अमर प्रेम' जैसी कई फिल्में शामिल हैं। अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी को दर्शकों ने खास तौर पर पसंद किया। 'नमक हलाल' का दद्दू और 'शराबी' का मुंशी लाल आज भी लोग याद करते हैं।
अभिनय के साथ-साथ ओम प्रकाश ने फिल्म निर्माण में भी हाथ आजमाया। उन्होंने 'संजोग', 'जहान आरा' और 'गेटवे ऑफ इंडिया' जैसी फिल्मों का निर्माण किया। अपने शानदार अभिनय के लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान भी मिले। बड़े-बड़े अभिनेता उनकी तारीफ करते थे। दिलीप कुमार तक कह चुके थे कि फिल्म 'गोपी' में ओम प्रकाश की एक्टिंग ने उन्हें हैरान कर दिया था।
जीवन के अंतिम दिनों में ओम प्रकाश बीमार रहने लगे थे। दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वे कोमा में चले गए। 21 फरवरी 1998 को उनका निधन हो गया।
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