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आभिषेक बच्चन और निम्रत कौर की नई फिल्म 'कालीधर लापता' में रोमांचक केमिस्ट्री

आभिषेक बच्चन और निम्रत कौर एक बार फिर से फिल्म 'कालीधर लापता' में साथ नजर आएंगे। इस फिल्म में उनकी केमिस्ट्री और कहानी के बारे में अभिषेक ने अपने विचार साझा किए हैं। उन्होंने बताया कि फिल्म में पात्रों की यात्रा और उनके सपनों को पूरा करने की कोशिशों को दर्शाया गया है। जानें इस फिल्म के बारे में और क्या खास है।
 
आभिषेक बच्चन और निम्रत कौर की नई फिल्म 'कालीधर लापता' में रोमांचक केमिस्ट्री

फिल्म 'कालीधर लापता' में फिर से साथ नजर आएंगे आभिषेक और निम्रत

आभिषेक बच्चन और निम्रत कौर एक बार फिर से अपनी नई फिल्म 'कालीधर लापता' में एक साथ दिखाई देंगे। दोनों ने पहले 'दसवीं' में काम किया था। इस फिल्म के प्रमोशन के दौरान, जब अभिषेक से उनकी और निम्रत की ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने अपने अनुभव साझा किए। इसके साथ ही, उन्होंने 'कालीधर लापता' के विषय में भी चर्चा की।


आभिषेक और निम्रत की केमिस्ट्री पर अभिषेक का बयान

फिल्म 'दसवीं' के बाद, अब 'कालीधर लापता' में अभिषेक और निम्रत एक बार फिर से साथ नजर आएंगे। इस फिल्म में निम्रत एक विशेष भूमिका में दिखाई देंगी। जब अभिषेक से निम्रत के साथ काम करने के अनुभव के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, "यह बहुत मजेदार था।" हालांकि, उन्होंने इस पर ज्यादा जानकारी नहीं दी।


'कालीधर लापता' की कहानी पर अभिषेक का दृष्टिकोण

अभिषेक बच्चन ने अपनी आगामी फिल्म 'कालीधर लापता' की कहानी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि फिल्म में पात्र बिरयानी खाने, मोटरसाइकिल चलाने और शादी में डांस करने जैसी इच्छाओं को पूरा करने की यात्रा पर निकलते हैं। उन्होंने निर्देशक मधुमिता की प्रशंसा की, जिन्होंने फिल्म में गहरे संदेश को सरलता से प्रस्तुत किया है।


डायरेक्टर मधुमिता की शैली पर अभिषेक का विचार

अभिषेक ने बताया कि उन्हें मधुमिता की एक बात बहुत पसंद आई, जिसमें उन्होंने गंभीर मुद्दों को सहजता से प्रस्तुत किया। फिल्म में उठाए गए विषय ऐसे हैं जिन्हें अक्सर 'पहली दुनिया की समस्याएं' कहा जाता है, जो आमतौर पर उन लोगों के जीवन में होती हैं जो सामाजिक या आर्थिक रूप से बेहतर स्थिति में होते हैं।


किरदार कालीधर की संघर्ष की कहानी

अभिषेक ने आगे कहा कि कालीधर का किरदार उस समाज से है जहां लोग अपने बारे में सोचने की उम्मीद नहीं करते। जब तक कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से स्थिर नहीं होता, तब तक उसके पास अपने सपनों को जीने का अवसर नहीं होता। इस प्रकार, अपने सपनों को पूरा करना या छोड़ना, सामाजिक दबाव का हिस्सा बन जाता है।


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