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साध्वी प्रज्ञा: एक विवादास्पद राजनीतिक यात्रा की कहानी

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की कहानी भारतीय राजनीति में एक विवादास्पद यात्रा को दर्शाती है। उनके जीवन में साध्वी बनने से लेकर आतंकवाद के आरोपों का सामना करने और फिर संसद में प्रवेश करने तक की घटनाएँ शामिल हैं। इस लेख में उनके प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, विवादों, और राजनीतिक सफर का गहन विश्लेषण किया गया है। जानें कैसे साध्वी प्रज्ञा ने अपने विचारों और संघर्षों के माध्यम से भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
 

साध्वी प्रज्ञा का परिचय

Sadhvi Pragya Biography: भारतीय राजनीति में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो अपने विचारों, संघर्षों और विवादों के चलते लगातार राष्ट्रीय बहस का विषय बने रहते हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ऐसी ही एक चर्चित और विवादास्पद हस्ती हैं। जिनका जीवन एक साध्वी से लेकर आतंकी आरोपों का सामना करने वाली महिला और फिर भारतीय संसद की सदस्य बनने तक की रोमांचक और अप्रत्याशित यात्रा को दर्शाता है। उनके जीवन की यह परतें न केवल राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि भारत में राजनीति, धर्म, और विचारधारा कैसे एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। इस लेख में हम साध्वी प्रज्ञा के जीवन, उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि, कानूनी विवादों और राजनीतिक सफर का गहन विश्लेषण करेंगे.


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा


पूर्व लोकसभा सांसद, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर(Pragya Singh Thakur) का जन्म 2 फरवरी 1970 को मध्य प्रदेश के भोपाल जिले में हुआ था। उनका पालन-पोषण एक धार्मिक और राष्ट्रवादी परिवेश में हुआ, जहाँ उनके पिता चुन्नीलाल ठाकुर स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े हुए एक सक्रिय कार्यकर्ता और संस्कृत के विद्वान थे। परिवार से ही उन्हें हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा का गहरा प्रभाव मिला। उन्होंने भोपाल में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और आगे चलकर सामाजिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। युवावस्था से ही साध्वी प्रज्ञा का झुकाव राष्ट्रवादी संगठनों की ओर रहा और वे RSS, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) तथा विश्व हिंदू परिषद (VHP) जैसे संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं। उनके वैचारिक निर्माण और सार्वजनिक जीवन की नींव इन्हीं संगठनों में जुड़ाव के दौरान पड़ी।


साध्वी बनने का निर्णय

साध्वी बनने का निर्णय

1990 के दशक में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने सांसारिक जीवन त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग को अपनाया। ऐसा माना जाता है कि वे स्वामी अवधेशानंद गिरी से प्रभावित होकर साध्वी बनीं। आध्यात्मिक जीवन की ओर मुड़ने के बाद उन्होंने हिंदुत्व और राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाई। अपने प्रवचनों और आयोजनों के माध्यम से वे कई राज्यों में चर्चित रहीं। साध्वी प्रज्ञा ने ‘राष्ट्रीय जागरण मंच’ जैसे संगठनों के माध्यम से युवाओं में राष्ट्रभावना और धार्मिक चेतना जाग्रत करने का प्रयास किया।


मालेगांव ब्लास्ट केस

विवादों में घिरा जीवन - मालेगांव ब्लास्ट केस


29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। प्रारंभिक जांच में इसे आतंकी हमला माना गया, लेकिन बाद में महाराष्ट्र एटीएस ने इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को आरोपी बनाया। एटीएस का दावा था कि धमाके में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल साध्वी प्रज्ञा की थी और वे हिंदू चरमपंथी संगठनों के साथ मिलकर इस साजिश में शामिल थीं। 21 अक्टूबर 2008 को उन्हें गिरफ्तार किया गया और उनके खिलाफ यूएपीए (UAPA) के तहत मामला दर्ज कर उन्हें जेल भेजा गया। बाद में यह जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपी गई, जिसने पाया कि उनके खिलाफ ठोस साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। NIA ने यह भी कहा कि मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर की नहीं थी और कई गवाहों ने अपने बयान बदल लिए थे। 2017 में उन्हें जमानत मिली और अंततः 31 जुलाई 2025 को मुंबई की विशेष NIA अदालत ने उन्हें और अन्य आरोपियों को 'संदेह का लाभ' देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने जांच प्रक्रिया में लापरवाही और सबूतों की कमी की ओर भी इशारा किया। इस प्रकरण ने देशभर में 'हिंदू आतंकवाद' जैसे विवादास्पद शब्द को जन्म दिया और वर्षों तक राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बना रहा।


राजनीति में प्रवेश

राजनीति में प्रवेश और भोपाल से चुनाव


2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मध्य प्रदेश की प्रतिष्ठित भोपाल सीट से अपना प्रत्याशी बनाया। इस सीट पर उनका मुकाबला कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से था, जिससे यह चुनाव देशभर में राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन गया। साध्वी प्रज्ञा ने यह चुनाव भारी अंतर से जीतते हुए करीब 3.64 लाख (364,822) वोटों की बढ़त के साथ संसद में प्रवेश किया। उन्हें कुल लगभग 8.66 लाख वोट मिले, जबकि दिग्विजय सिंह को करीब 5.01 लाख मत प्राप्त हुए। यह जीत भाजपा के लिए प्रतीकात्मक रूप से बेहद महत्वपूर्ण थी। क्योंकि एक ओर यह पार्टी के पारंपरिक गढ़ की रक्षा थी, वहीं दूसरी ओर पार्टी ने इसे राष्ट्रवाद और वैचारिक संघर्ष में मिली विजय के रूप में प्रस्तुत किया। दूसरी तरफ विपक्ष ने एक आतंकवाद के आरोपी को संसद भेजे जाने को लेकर भाजपा की तीखी आलोचना की।


विवादित बयान

विवादित बयान और आलोचनाएँ


साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अपने बयानों के कारण बार-बार विवादों में रहीं। उनके कुछ प्रमुख विवादित बयानों में शामिल हैं:

नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहना - साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने 2019 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान और संसद में नाथूराम गोडसे को देशभक्त कह दिया था। इस बयान से राजनीतिक बड़ी हलचल मची और भाजपा को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदगी उठानी पड़ी। भाजपा ने तुरंत इस बयान से दूरी बनाई और उन्हें रक्षा मामलों की सलाहकार समिति से हटा दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे व्यक्तिगत तौर पर इस बयान को माफ नहीं कर पाएंगे। हालांकि बाद में प्रज्ञा ने माफी भी मांगी थी लेकिन मामला विवादास्पद बना रहा।

हेमंत करकरे पर टिप्पणी - साध्वी प्रज्ञा ने कहा था कि मुंबई एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे ने उन्हें गलत तरीके से प्रताड़ित किया था और इसलिए उनका 'श्राप' करकरे पर लगा जिससे उनकी मौत हुई। यह बयान देश में विवाद पैदा कर गया। बाद में उन्होंने इस बयान को व्यक्तिगत पीड़ा बताते हुए कुछ हद तक वापस लिया और कहा कि वे करकरे को शहीद मानती हैं क्योंकि वे आतंकवादियों की गोली से मारे गए।

गौमूत्र और कैंसर उपचार के संदर्भ में - साध्वी प्रज्ञा ने अपने कैंसर का इलाज गौमूत्र और आयुर्वेदिक उपचारों से किया होने का दावा किया है। मेडिकल समुदाय ने इसे वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं माना और इसे गैर-वैज्ञानिक तथा अप्रमाणित बताया गया है.


स्वास्थ्य समस्याएँ

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ और संसदीय कार्य

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की संसद सत्रों में बार-बार अनुपस्थिति का प्रमुख कारण उनका गंभीर स्वास्थ्य रहा है। उन्होंने दावा किया है कि जेल में बिताए गए समय के दौरान उन्हें अमानवीय यातनाओं का सामना करना पड़ा, जिससे उनका शारीरिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ। वे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी जूझ चुकी हैं और उनके वकीलों ने अदालत में भी कई बार उनकी खराब तबीयत का हवाला देकर पेशी से राहत की मांग की थी। इसी कारण वे कई बार न केवल अदालत की कार्यवाहियों में बल्कि संसद की बैठकों में भी उपस्थित नहीं हो सकीं। विपक्ष ने उनकी सक्रियता पर सवाल उठाते हुए यह तर्क दिया कि जब वे इतनी बीमार हैं, तो वे चुनाव लड़ने और जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारियों को निभाने में सक्षम कैसे हो सकती हैं। यह मुद्दा सार्वजनिक बहस का विषय भी बना रहा। हालांकि स्वयं साध्वी प्रज्ञा ने कहा है कि चाहे शरीर साथ दे या न दे, वे लड़ती रहेंगी और न्यायिक प्रक्रिया में पूरा सहयोग करेंगी।


विचारधारा और समर्थन

विचारधारा और समर्थन


साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर स्वयं को एक कट्टर हिंदुत्ववादी मानती हैं और राम मंदिर निर्माण, गौ-रक्षा, लव जिहाद का विरोध तथा समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर अपने सख्त और स्पष्ट विचार रखने के लिए जानी जाती हैं। उनका राजनीतिक और वैचारिक रुख हिंदू राष्ट्रवाद के समर्थन में रहा है, जिससे उन्हें भाजपा और हिंदू संगठनों के एक वर्ग का व्यापक समर्थन मिला है। उनकी लोकप्रियता विशेष रूप से उन वर्गों में अधिक है जो उन्हें 'हिंदू पीड़िता' के रूप में देखते हैं। ऐसी महिला जो कांग्रेस शासन के दौरान राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार बनीं और झूठे मुकदमों में फंसाई गईं। खुद साध्वी प्रज्ञा भी दावा कर चुकी हैं कि जेल में बिताए गए नौ वर्षों के दौरान उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया, केवल इसलिए क्योंकि वे हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा की प्रतिनिधि थीं। यही कारण है कि भाजपा और हिंदू संगठनों के कई वर्गों में उनका प्रभाव अब भी कायम है।