हरि हारा वीरा मल्लू: एक ऐतिहासिक एक्शन ड्रामा की समीक्षा
हरि हारा वीरा मल्लू की समीक्षा
हरि हारा वीरा मल्लू की समीक्षा: 'हरि हारा वीरा मल्लू–पार्ट वन' अंततः सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। पहले कोरोना महामारी और फिर पावर स्टार पवन कल्याण की राजनीतिक एंट्री के कारण इस फिल्म के पहले भाग में पूरे 5 साल लग गए। यह फिल्म पवन कल्याण के लिए विशेष महत्व रखती है, क्योंकि उनकी राजनीतिक सफलता के बाद बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म की सफलता महत्वपूर्ण है।
फिल्म को बड़े पैमाने पर बनाया गया है, जिसमें भव्य कॉस्ट्यूम, विशाल सेट और कहानी में मुगल साम्राज्य और कोहिनूर के साथ सनातन धर्म का रंग दिखाई देता है। पवन कल्याण ने इस फिल्म के क्लाइमेक्स के 18 मिनट के एक्शन सीन को खुद कोरियोग्राफ किया है, जो उनके मार्शल आर्ट्स कौशल को दर्शाता है।
कहानी का सार
यह फिल्म 17वीं सदी के मुगल साम्राज्य की पृष्ठभूमि पर आधारित है। 1684 में, जब छत्रपति शिवाजी का निधन हुआ, यह कहानी वीर मल्लू (पवन कल्याण) की है, जो एक डाकू है, लेकिन उसका उद्देश्य बहुत महत्वपूर्ण है। यह डाकू वास्तव में सनातन धर्म की रक्षा करने वाला नायक है। मुगल बादशाह औरंगजेब (बॉबी देओल) हिंदुओं पर जजिया टैक्स लगा रहा है, और वीर मल्लू कोहिनूर हीरा चुराकर पूरे शहर को मुगलों से मुक्त करना चाहता है।
यह कहानी उस दृष्टिकोण के खिलाफ है, जिसमें मुगलों की प्रशंसा की जाती है, और यह भारत के असली नायकों की हिम्मत और देश की संपत्ति की लूट को उजागर करती है। फिल्म की ऐतिहासिक सटीकता पर बहस हो सकती है, लेकिन यह मुगलों के अत्याचार और हिंदुओं पर जुल्म को दर्शाती है।
सिनेमैटोग्राफी
इस फिल्म में दो दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, पहले लेखक और निर्देशक कृष जगरलामुडी का और फिर ए.एम ज्योति कृष्णा का। कहानी बीच में अपना प्रभाव खो देती है, और कुछ हिस्सों में ऐसा लगता है कि यह क्या हो रहा है। सेकंड हाफ में क्लाइमेक्स से पहले कुछ फीलर सीन जोड़े गए हैं, क्योंकि जो कुछ होना है वह अगले भाग में होगा।
एक्शन सीन
फिल्म के पहले और दूसरे भाग के एक्शन सीन हरि हारा वीरा मल्लू का सबसे आकर्षक हिस्सा हैं, खासकर सेकंड हाफ का क्लाइमेक्स एक्शन। ऑस्कर विजेता एम.एम. किरवानी का संगीत फिल्म के कमजोर स्क्रीनप्ले को बेहतर बनाता है। सेट डिजाइन और सिनेमैटोग्राफी ठीक हैं, लेकिन VFX की गुणवत्ता औसत से भी कम है।
स्टार कास्ट की परफॉर्मेंस
पवन कल्याण ने वीर मल्लू के किरदार में पूरी फिल्म का भार उठाया है। उनके एक्शन सीन और क्लाइमेक्स में, धर्म की रक्षा के लिए एक योद्धा के रूप में उनके संवाद और प्रदर्शन भावनात्मक रूप से प्रभावशाली हैं। बॉबी देओल ने औरंगजेब के किरदार को थोड़ा कार्टूनिश बना दिया है, लेकिन फिर भी वे अत्याचारी लगते हैं। निधि अग्रवाल और नोरा फतेही के पास सीमित स्क्रीन टाइम था और उनके किरदारों पर ज्यादा काम नहीं किया गया।
अंतिम निष्कर्ष
यह फिल्म एक और ऐतिहासिक योद्धा की कहानी है, जो पावर स्टार पवन कल्याण की परफॉर्मेंस पर निर्भर करती है। एक ऐसी फिल्म, जिसने पहले ही सेकंड पार्ट की घोषणा कर दी है। इसके प्रेजेंटेशन में और मेहनत की आवश्यकता थी। ऐतिहासिक एक्शन ड्रामा के शौकीनों के लिए, यह फिल्म एक उचित विकल्प है। हम इसे 3 स्टार देंगे।