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श्याम बेनेगल: भारतीय सिनेमा के 'चलता-फिरता विश्वकोश' का अद्भुत सफर

श्याम बेनेगल, भारतीय सिनेमा के एक अद्वितीय फिल्मकार, जिन्होंने अपने काम के माध्यम से दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया। उनके जीवन की यात्रा, उनके द्वारा बनाई गई फिल्मों और उनके योगदान को जानें। अमरीश पुरी द्वारा 'चलता-फिरता विश्वकोश' कहे जाने वाले बेनेगल ने सिनेमा को एक नई दिशा दी। उनके निधन से भारतीय सिनेमा ने एक महान निर्देशक खो दिया।
 

श्याम बेनेगल का योगदान




मुंबई, 22 दिसंबर। भारतीय सिनेमा में ऐसे फिल्म निर्माताओं की चर्चा होती है जिन्होंने दर्शकों को मनोरंजन के साथ-साथ गहराई से सोचने पर मजबूर किया, तो श्याम बेनेगल का नाम सबसे पहले आता है। उनकी फिल्मों में न तो शोर था और न ही दिखावा, लेकिन हर कहानी के पीछे एक गहरी सोच छिपी होती थी। उनके साथ काम करने वाले कलाकार उन्हें केवल निर्देशक नहीं, बल्कि ज्ञान का भंडार मानते थे।


प्रसिद्ध अभिनेता अमरीश पुरी उन्हें 'चलता-फिरता विश्वकोश' कहा करते थे, क्योंकि वे इतिहास, राजनीति, साहित्य और सिनेमा जैसे विषयों पर घंटों चर्चा कर सकते थे।


श्याम सुंदर बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद में हुआ। उनके पिता एक फोटोग्राफर थे, जिससे घर में कैमरा और तस्वीरों का माहौल हमेशा बना रहा। यही कारण था कि उन्होंने केवल 12 साल की उम्र में अपने पिता के कैमरे से पहली फिल्म बनाई। उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए किया, लेकिन उनका मन हमेशा सिनेमा की ओर ही रहा। कॉलेज के दिनों में उन्होंने एक फिल्म सोसाइटी बनाई, जहां फिल्मों पर चर्चा होती थी। यहीं से उनके भीतर का 'सोचने वाला फिल्मकार' विकसित होने लगा।


पढ़ाई पूरी करने के बाद, श्याम बेनेगल मुंबई आए और एक विज्ञापन एजेंसी में कॉपीराइटर के रूप में काम करने लगे। विज्ञापन की दुनिया ने उन्हें कैमरे, फ्रेम और कहानी को संक्षेप में कहने की कला सिखाई। इस दौरान उन्होंने सैकड़ों विज्ञापन और डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाई, जो बाद में उनकी फिल्मों की ताकत बनीं। 1962 में उन्होंने गुजराती में अपनी पहली डॉक्यूमेंट्री बनाई और फिर एफटीआईआई पुणे में पढ़ाने लगे।


1973 में आई उनकी पहली फीचर फिल्म 'अंकुर' ने भारतीय सिनेमा में हलचल मचा दी। यह फिल्म गांव, किसान और शोषण जैसे मुद्दों पर आधारित थी और बिना किसी बड़े सितारे के बनी, फिर भी राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने में सफल रही। इसके बाद 'निशांत', 'मंथन' और 'भूमिका' जैसी फिल्मों ने उन्हें पैरलल सिनेमा का सबसे बड़ा नाम बना दिया। 'मंथन' फिल्म उन्होंने हजारों किसानों के साथ मिलकर बनाई थी।


श्याम बेनेगल की विशेषता यह थी कि वे केवल फिल्म नहीं बनाते थे, बल्कि विषय को गहराई से समझते थे। किसी कहानी पर काम शुरू करने से पहले वे उसके इतिहास, सामाजिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक प्रभाव को गहराई से अध्ययन करते थे। यही कारण था कि अमरीश पुरी जैसे कलाकार कहते थे कि श्याम बेनेगल से बात करना किसी किताब पढ़ने के समान है।


उन्होंने भारतीय सिनेमा को नसीरुद्दीन शाह, शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, ओम पुरी और अमरीश पुरी जैसे अदाकार दिए, जिनकी अदाकारी आज भी मिसाल मानी जाती है। फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने 'भारत एक खोज' जैसे ऐतिहासिक धारावाहिक का निर्माण किया, जिसने करोड़ों लोगों को भारत के इतिहास से जोड़ा।


अपने लंबे करियर में, श्याम बेनेगल को 18 से अधिक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले। उन्हें 1976 में पद्मश्री, 1991 में पद्मभूषण और 2005 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने राज्यसभा सांसद के रूप में भी देश की सेवा की। उनकी अंतिम फिल्म 'मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन' 2023 में रिलीज हुई।


23 दिसंबर 2024 को 90 वर्ष की आयु में श्याम बेनेगल का निधन हो गया। उनके जाने से भारतीय सिनेमा ने केवल एक निर्देशक नहीं, बल्कि एक ऐसा 'चलता-फिरता विश्वकोश' खो दिया, जो सिनेमा को सोच, समझ और संवेदना से जोड़ता था।