वीर बाल दिवस: बच्चों के साहस और बलिदान की कहानियाँ जो दिल छू लेंगी
वीर बाल दिवस का महत्व
हर साल 26 दिसंबर को भारत में वीर बाल दिवस मनाया जाता है। यह दिन सिख धर्म के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों, बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के अद्वितीय बलिदान को समर्पित है।
इन छोटे वीरों ने धर्म, सत्य और मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनका साहस और बलिदान आज भी पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। वीर बाल दिवस हमें यह याद दिलाता है कि बच्चे केवल मासूम नहीं होते, बल्कि उनमें साहस और दृढ़ता भी होती है।
भारतीय सिनेमा में बच्चों की कहानियाँ
भारतीय फिल्म उद्योग ने कई ऐसी फिल्में प्रस्तुत की हैं, जो बच्चों के साहस, संघर्ष और बलिदान को संवेदनशीलता के साथ दर्शाती हैं।
गौरु - जर्नी ऑफ करेज: रामकिशन चोयल द्वारा निर्देशित यह फिल्म राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित है। यह कहानी एक छोटे चरवाहे गौरु की है, जो अपनी दादी की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए साहसिक यात्रा पर निकलता है। फिल्म का संवाद 'इच्छा तो दादी की है, म्हारी तो जिद है' इसकी पूरी कहानी को बयां करता है। 2018 में रिलीज हुई इस फिल्म में इला अरुण और रित्विक सहोरे ने दादी-पोते की भूमिकाएँ निभाई हैं।
धनक: नागेश कुकुनूर की 2016 में आई इस फिल्म में दो भाई-बहनों, परी और छोटू की यात्रा को दर्शाया गया है। बहन अपने अंधे भाई की आंखों की रोशनी वापस लाने के लिए साहसिक यात्रा पर निकलती है।
आई एम कलाम: 2011 में आई इस फिल्म में एक गरीब राजस्थानी लड़के की कहानी है, जो पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरित होकर शिक्षा की ओर अग्रसर होता है।
तारे जमीन पर: आमिर खान द्वारा निर्देशित यह फिल्म एक डिस्लेक्सिया से ग्रस्त बच्चे की कहानी है, जो अपनी प्रतिभा को पहचानने के लिए संघर्ष करता है।
इकबाल: नागेश कुकुनूर की यह फिल्म एक सुनने और बोलने में अक्षम लड़के की कहानी है, जो क्रिकेटर बनने का सपना देखता है।