राजेश खन्ना की फिल्में क्यों हुईं फ्लॉप? जानें सुपरस्टार की दर्दनाक कहानी
राजेश खन्ना का स्टारडम और संघर्ष
मुंबई, 28 दिसंबर। हिंदी सिनेमा में कुछ ही अभिनेता ऐसे रहे हैं जिन्होंने असली स्टारडम का अनुभव किया है। इनमें से एक हैं राजेश खन्ना, जिनकी एक झलक पाने के लिए फैंस पागल हो जाते थे। उनकी दीवानगी का आलम यह था कि कई लड़कियां उनके नाम का सिंदूर लगाती थीं और कुछ तो उनकी तस्वीर के साथ फेरे भी ले लेती थीं।
राजेश खन्ना की लोकप्रियता का आलम यह था कि भिखारी भी उनके नाम पर भीख मांगते थे।
अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना ने महज तीन साल में 17 हिट फिल्में दीं। डायरेक्टर और प्रोड्यूसर उनकी स्क्रिप्ट सुनाने के लिए उनके घर के बाहर लाइन लगाते थे, लेकिन केवल कुछ ही भाग्यशाली लोग होते थे जिनकी स्क्रिप्ट पर काका मुहर लगाते थे। हालांकि, राजेश खन्ना को फ्लॉप फिल्मों से निराशा होने लगी थी।
कहा जाता है कि समय कभी एक सा नहीं रहता। 1976-77 में राजेश खन्ना की फिल्में फ्लॉप होने लगीं। सिनेमाघर खाली होने लगे और फिल्में अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रही थीं। यासिर उस्मान की किताब "द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियाज फर्स्ट सुपरस्टार" में इस बात का उल्लेख है कि लगातार फ्लॉप फिल्मों के कारण वे डिप्रेशन में चले गए और अपने दुख को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेने लगे।
राजेश खन्ना रात में अचानक चीखने लगते थे और आत्महत्या के विचार उनके मन में आने लगे थे। किताब के अनुसार, वे समुद्र में डूबकर जान देने की सोचने लगे थे। 1976 और 1977 उनके लिए बेहद कठिन समय था। 1976 में हेमा मालिनी के साथ आई उनकी फिल्म 'महबूबा' को करियर की सबसे बड़ी आपदा माना गया। इस दौरान अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन का दौर शुरू हो चुका था।
1971 में आई फिल्म 'आनंद' में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन दोनों थे, लेकिन सारी लोकप्रियता अमिताभ बच्चन ने हासिल की। इसके बाद 1976 में 'बंडल बाज', 1977 में 'अनुरोध', 'त्याग', 'कर्म', 'छैला बाबू', और 'चलता पुर्जा' रिलीज हुईं, जिनमें से राजेश खन्ना की लगातार पांच फिल्में फ्लॉप हो गईं। धीरे-धीरे उन्हें फिल्में मिलना कम हो गया, क्योंकि उस समय तक अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र युवाओं की नई पसंद बन चुके थे।