क्या 'सैय्यारा' ने दर्शकों के दिलों में फिर से जगाई रोमांस की लहर?
सिनेमाई अनुभव का जादू
जब सिनेमा हॉल की बत्तियाँ बुझ गईं, तब 'सैय्यारा' की कहानी ने मुझे अपने जादू में जकड़ लिया। अहान पांडे और अनीत पड्डा की जोड़ी ने ऐसा जादू बिखेरा जैसे पहली बारिश में धरती महक उठती है। फिर भी, एक अजीब सी शर्मिंदगी महसूस हुई। इतनी गहन कहानी के बीच मेरी आँखें नम थीं। मैंने खुद से पूछा, "क्या मैं बदल गई हूँ?" लेकिन तभी हॉल में सिसकियाँ गूंजने लगीं। हर दूसरी सीट पर 25 से 35 साल के लोग अपने आँसू बहा रहे थे। इनमें से अधिकांश जेनरेशन ज़ेड के थे, जो जीवन में कमिटमेंट से दूर भागते हैं, तो क्या ये फिल्में उन पर गहरा असर डाल रही हैं?
कोविड के बाद का सिनेमा
कोविड के बाद सिनेमा में बदलाव आया है। 'डीडीएलजे', 'हम आपके हैं कौन', और 'कुछ कुछ होता है' जैसे रोमांटिक दौर के बाद अब थ्रिलर फ़िल्मों का बोलबाला है। कहानियाँ छोटे शहरों की ओर मुड़ गई हैं, और वास्तविकता ने पर्दे पर कब्ज़ा कर लिया है। प्यार अब एक संघर्ष बन गया है।
युवाओं का अकेलापन और सिनेमा
अभिनेत्री ने मौत की अफवाहों का सच बताया। जब युवाओं को अकेलापन घेरता है, तो दिल कुछ और मांगने लगता है। लोग नौकरी और सपनों की तलाश में अपने घरों से दूर चले गए हैं। प्यार था, लेकिन वह टिक नहीं पाया। हर रिश्ता किसी मोड़ पर खत्म हो जाता है। इस बीच, हम उन कहानियों के लिए तरसने लगे हैं जो परियों की कहानियों जैसी लगती हैं।
रोमांस की वापसी
हालांकि, अब की पीढ़ियाँ प्यार से डरती हैं। ये वही लोग हैं जो डेटिंग ऐप्स पर रिश्ते बनाते और तोड़ते हैं। उनके लिए "भावनात्मक रूप से उपलब्ध" होना एक विलासिता है। फिर भी, जब सायरा की जोड़ी अपने प्यार के लिए संघर्ष करती है, तो जेन ज़ेड भी हॉल में रोती है। शायद इसलिए क्योंकि असल ज़िंदगी में हम उससे दूर भागते हैं। हम सिनेमा के माध्यम से सपने जीते हैं।
भविष्य की उम्मीदें
अब जब 'धड़क 2', 'आशिक 3', 'परम सुंदरी', और 'तू मेरी मैं तेरा' जैसी फ़िल्में आ रही हैं, तो उम्मीद है कि यह रोमांस का सिलसिला जारी रहेगा।