×

क्या है देव दीपावली का महत्व? जानें देवउठनी एकादशी और दीपदान की विशेषताएँ

देव दीपावली और देवउठनी एकादशी का पर्व भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। इस दिन भगवान विष्णु के जागरण का उत्सव मनाया जाता है, जिसमें दीपदान और तुलसी विवाह की परंपराएँ शामिल हैं। जानें इस पर्व की विशेषताएँ, दीप जलाने की विधि और इसके पीछे की धार्मिक मान्यताएँ। यह लेख आपको इस पवित्र पर्व के महत्व और इसकी तैयारी के बारे में जानकारी देगा।
 

देव दीपावली का उत्सव

Dev Deepawali Kab Hai 

Dev Deepawali Kab Hai

देव दीपावली कब है: वाराणसी के गंगा घाटों पर लाखों दीपों की रोशनी लहरों पर झिलमिलाती है, जो एक दिव्य दृश्य प्रस्तुत करती है। इस समय वातावरण में फैली सुगंधित धूप, फूलों की महक और मंत्रों की गूंज श्रद्धा और आनंद का संचार करती है। देवउठनी एकादशी से लेकर देव दीपावली तक भगवान विष्णु के जागरण का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन का व्रत और पूजा व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और शांति लाने का विश्वास दिलाते हैं। दीपावली के बाद अब घर-घर में देवोत्थानी एकादशी और देव दीपावली की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं। कार्तिक मास के इस पवित्र समय में जब चार महीने की चातुर्मास समाप्त होती है, भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन को देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। यह दिन श्रद्धा और भक्ति का संगम होता है। पूरे देश में इस दिन दीप जलाए जाते हैं, भगवान विष्णु की पूजा होती है और तुलसी-शालिग्राम का विवाह संपन्न होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, 2025 में देवउठनी एकादशी 1 नवंबर (शनिवार) को मनाई जाएगी, जबकि देव दीपावली 5 नवंबर को होगी।


देवउठनी एकादशी का महत्व

जागरण और नवजीवन का प्रतीक

देवउठनी एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह जागरण और नवजीवन का प्रतीक भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ मास की एकादशी को योगनिद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। उनके जागने से देवताओं की शक्तियाँ पुनः सक्रिय होती हैं और सृष्टि में शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन तुलसी माता और भगवान शालिग्राम का विवाह भी किया जाता है। तुलसी माता को देवी लक्ष्मी का स्वरूप और शालिग्राम को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। इस विवाह में सम्मिलित होने से वैवाहिक जीवन में प्रेम और स्थिरता आती है।


दीपदान का महत्व

दीपदान का महत्व और शुभ दीपों की संख्या


देवउठनी एकादशी पर दीपदान को सबसे बड़ा पुण्य कार्य माना जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु जागते हैं, तो दीपों का प्रकाश उनका स्वागत करता है। इस दिन घर-घर में दीप जलाकर भगवान का आशीर्वाद लिया जाता है।

दीपक की संख्या के अनुसार, 1, 5, 7, 11, 21, 51 या 108 दीपक जलाना शुभ माना जाता है। यदि आप सीमित संख्या में दीप जलाना चाहते हैं, तो 5 दीपक जलाना सबसे उत्तम है। ये पांच दीपक पंचदेव गणेश, शिव, शक्ति, सूर्य और विष्णु का प्रतीक होते हैं। तुलसी माता के पास एक दीपक, घर के मंदिर में एक, रसोई में एक और मुख्य द्वार के दोनों ओर दो दीपक जलाने की परंपरा है।

जो अधिक पुण्य प्राप्त करना चाहते हैं, वे 11 दीपक जलाते हैं। तुलसी चौरे में, भगवान विष्णु की चौकी पर, रसोई में, मंदिर में, पीपल के नीचे और मुख्य द्वार पर दीपक रखना शुभ माना जाता है।

कुछ लोग 7 दीपक जलाते हैं, जो सप्ताह के सातों दिनों और सात लोकों का प्रतीक होते हैं। तुलसी के पास 5 घी के दीपक जलाना विशेष रूप से फलदायी माना गया है, क्योंकि यह वैवाहिक जीवन में प्रेम, समृद्धि और सुख की वृद्धि करता है।

जो केवल एक दीपक जला सकते हैं, उन्हें वह तुलसी माता के पास अवश्य जलाना चाहिए। यह एक दीपक ही भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता दोनों को प्रसन्न करता है।

सामर्थ्यवान भक्त 11,000 दीपक जलाकर महादान का संकल्प भी लेते हैं, जिसे अत्यंत पुण्यदायी माना गया है।


दीपदान की विधि और नियम

दीपदान की विधि और नियम


देवउठनी एकादशी पर दीपक हमेशा गाय के शुद्ध घी या तिल के तेल से जलाना चाहिए। मिट्टी या पीतल के दीपक सबसे शुभ माने जाते हैं। दीपक जलाते समय भगवान विष्णु का मंत्र 'ॐ नमो नारायणाय' जपते हुए तुलसी माता की सात परिक्रमा करनी चाहिए।

मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से घर में शुभ शक्तियों का प्रवेश होता है, रसोई में दीपक जलाने से अन्न की बरकत बनी रहती है और तुलसी चौरे में दीपक जलाने से घर में लक्ष्मी का वास होता है। रातभर तुलसी के पास दीपक जलता रहना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह देवी लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक है।


तुलसी विवाह का महत्व

तुलसी विवाह का पौराणिक महत्व


देवउठनी एकादशी की शाम को तुलसी माता और भगवान शालिग्राम का विवाह संपन्न किया जाता है। इस शुभ विवाह में शामिल होने से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और दांपत्य जीवन में स्थायित्व आता है। तुलसी विवाह सृष्टि के सबसे पवित्र विवाहों में से एक है। इस दिन का विवाह प्रेम, समर्पण और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

देवउठनी एकादशी केवल पूजा और व्रत का दिन नहीं है, बल्कि यह सुख, समृद्धि और शुभता का आशीर्वाद लेकर हमारे जीवन में आता है।