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क्या है मौन की शक्ति? प्रेमानंद जी महाराज के विचारों में छिपा है गहरा संदेश

प्रेमानंद जी महाराज के विचारों में मौन की शक्ति का गहरा महत्व है। वे मानते हैं कि मौन साधना से व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्ति को पहचान सकता है और ईश्वर से जुड़ सकता है। इस लेख में मौन के लाभ, वाणी पर संयम, और ध्यान में सुधार के बारे में चर्चा की गई है। जानें कैसे कम बोलना और अधिक सुनना आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
 

प्रेमानंद जी महाराज का मौन का महत्व

Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

प्रेमानंद जी महाराज: जब जीवन की भागदौड़ में शब्द शोर में बदल जाते हैं, तब मौन ही वह साधन है जो हमें आत्मा की आवाज़ से जोड़ता है। प्रेमानंद जी महाराज अपने प्रवचनों में इस मौन साधना को जीवन की सर्वोच्च साधना मानते हैं। उनका कहना है कि जितना अधिक हम बोलते हैं, उतनी ही हमारी ऊर्जा बिखरती है, और जब हम चुप रहते हैं, तब वह ऊर्जा हमारे भीतर संचित होती है। यही ऊर्जा हमें ईश्वर, आत्म-ज्ञान और आंतरिक शांति की ओर ले जाती है।


मौन – धर्म और आध्यात्म की राह

मौन – धर्म और आध्यात्म की राह


प्रेमानंद जी का मानना है कि कम बोलने से ‘हृदय की बातें बाहर नहीं जातीं’, जिससे नकारात्मक भावनाएं जैसे ईर्ष्या और निंदा उत्पन्न नहीं होतीं। मौन रहने से मन शांत और केंद्रित रहता है, जिससे व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्ति को सुन सकता है।


वाणी पर संयम – तीनों दोषों से मुक्ति

वाणी पर संयम – तीनों दोषों से मुक्ति

कम बोलने से वाणी पर नियंत्रण आता है, जिससे झूठ और निंदा जैसे पापों से मुक्ति मिलती है। मौन साधना मन की चंचलता को शांत करती है और ध्यान में गहराई लाती है। प्रेमानंद जी बताते हैं कि मौन से मन स्थिर होता है, जिससे साधना में गहराई आती है।


मौन साधना से ऊर्जा संरक्षण

मौन साधना से ऊर्जा संरक्षण और ब्रह्मचर्य-वर्धन

मौन से वाणी की ऊर्जा भीतर संचित रहती है, जो ब्रह्मचर्य और ओज में परिवर्तित होती है। यह साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। मौन केवल बोलने से विराम नहीं है, बल्कि यह मन और इंद्रियों की व्यर्थ गतिविधियों से वापसी है।


ईश्वर से सहज संवाद

ईश्वर से सहज संवाद


प्रेमानंद जी कहते हैं, ‘प्रभु बाहर नहीं, भीतर है। मौन होकर बैठो, वह स्वयं बोलेगा।’ मौन स्थिति में ईश्वर की आंतरिक अनुभूति सहज होती है, जिससे आत्मा और परमात्मा का जुड़ाव मजबूत होता है।


कम बोलना, अधिक सुनना

जितना बोलना जरूरी हो, उससे भी कम बोलो

हम अक्सर आदत से बात करते हैं, लेकिन अगर हम सोच-समझकर बोलें, तो हमारी वाणी नियंत्रित और पवित्र रहती है। कम बोलना आत्मनियंत्रण का प्रतीक है। प्रेमानंद जी कहते हैं कि ‘शब्द बाण की तरह होते हैं’, जो एक बार निकल गए, तो वापस नहीं आते। इसलिए सोच-समझकर बोलना ही श्रेष्ठ है।


ऊर्जा न बिखेरो

बात न फैलाओ, ऊर्जा न बिखेरो

नकारात्मक वाणी से पारिवारिक और सामाजिक बाधाएं उत्पन्न होती हैं। मौन साधना से ऐसी बाधाएं दूर होती हैं, जिससे मन का वातावरण साफ रहता है।


मन की सुनो

मन की सुनो, शब्दों को नहीं


जब मन में गहरी शांति होती है, तो विचारों की गहराइयां स्पष्ट होती हैं। प्रेमानंद जी बार-बार इस ओर संकेत करते हैं कि बाहरी बातें केवल लहरें हैं, लेकिन मन की गहराई में ही परम शांति है।


आत्म-संयम से आत्मविश्वास

आत्म-संयम से आत्मविश्वास

वाणी पर संयम रखने का अभ्यास बढ़ता है, और जब भाषा नियंत्रित होती है, तब आत्मविश्वास अपने आप उभरता है। आत्म-संयम का अर्थ है इंद्रियों, वाणी, विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण।


ध्यान अभ्यास में मौन से सुधार

ध्यान अभ्यास में मौन से सुधार महसूस करें

कम बोलना, अधिक सुनना – इससे रिश्तों में गहराई आती है। प्रेमानंद जी का यह संदेश बताता है कि मौन केवल शब्दों का त्याग नहीं, बल्कि आत्मा, परमात्मा और सत्य के साथ संवाद का मार्ग है।