क्या आपको याद है वो दौर जब फिल्म सेट पर सुविधाएं थीं सीमित? माधुरी दीक्षित ने साझा किए अपने अनुभव
बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री माधुरी दीक्षित का अनुभव
मुंबई, 31 दिसंबर। वर्तमान में जहां फिल्म सेट पर वैनिटी वैन, आरामदायक सुविधाएं और उन्नत तकनीक सामान्य हो गई हैं, वहीं एक समय ऐसा भी था जब कलाकारों और तकनीकी टीम को बहुत सीमित संसाधनों में काम करना पड़ता था। बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने अपने शुरुआती दिनों के अनुभवों को साझा किया।
उन्होंने बताया कि 1980 और 1990 के दशक में फिल्म उद्योग आज की तरह व्यवस्थित नहीं था, और कलाकारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता था।
माधुरी ने कहा, ''उस समय फिल्मों की शूटिंग इतनी आरामदायक नहीं होती थी। न तो वैनिटी वैन होती थीं और न ही तैयार होने के लिए उचित स्थान। कलाकारों को खुले में, कभी-कभी जंगलों में जाकर तैयार होना पड़ता था। ठंड, धूप और मौसम की कठिनाइयों का सामना करते हुए शूटिंग करनी पड़ती थी।''
उन्होंने आगे कहा, ''मैं उन दिनों को ज्यादा याद नहीं करना चाहती, क्योंकि वह समय काफी कठिन था। उस समय जो मेहनत की गई, वह किसी मजबूरी के कारण नहीं, बल्कि काम के प्रति जुनून था। उस समय किसी को यह एहसास ही नहीं होता था कि वे कोई बड़ा त्याग कर रहे हैं, क्योंकि वही जीवनशैली बन चुकी थी।''
अपने अनुभव साझा करते हुए माधुरी ने कहा, ''ऊटी में शूटिंग के दौरान हमें जंगल या खुले स्थान में जाकर तैयार होना पड़ता था। हेयरड्रेसर ठंड से बचने के लिए शॉल ओढ़कर खड़े रहते थे। आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो उन दिनों की कठिनाइयां साफ दिखाई देती हैं, लेकिन उस वक्त सभी लोग मिलकर काम का आनंद लेते थे। टीम भावना इतनी मजबूत थी कि सभी एक-दूसरे का साथ देते थे। सभी का जुनून फिल्म को बेहतर बनाने के लिए होता था।''
माधुरी ने कहा, ''फिल्म निर्माण के तरीके में समय के साथ बड़ा बदलाव आया है। मैं अपने करियर की पहली फिल्म 'अबोध' से लेकर हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'मिसेज देशपांडे' तक के सफर को देखूं तो आज की इंडस्ट्री पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रोफेशनल और संगठित हो चुकी है।''
जब उनसे पूछा गया कि 1980 और 1990 के दशक में निर्देशकों के साथ काम करने का अनुभव कैसा था, तो माधुरी ने कहा, ''पहले इंडस्ट्री काफी हद तक अव्यवस्थित थी। उस समय केवल कुछ ही निर्माता थे जो व्यवस्थित तरीके से काम करते थे, जैसे यश चोपड़ा, बी.आर. चोपड़ा, सुभाष घई और राजश्री प्रोडक्शंस। बाकी जगहों पर काम अधिकतर परिस्थितियों के भरोसे चलता था।''
उन्होंने कहा, ''पहले कलाकारों को कुछ ही मिनटों में सीन शूट करना होता था, जबकि आज किरदार की तैयारी के लिए पूरा समय दिया जाता है। अब स्क्रिप्ट पहले से मिल जाती है, शूटिंग शेड्यूल तय होता है और सेट पर आराम के लिए वैनिटी वैन जैसी सुविधाएं मौजूद रहती हैं। कलाकार हर शॉट के बाद आराम कर सकते हैं या शांति से तैयार हो सकते हैं। इसके उलट, पहले कलाकारों को धूप में छाते के नीचे बैठकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था।''