डॉ. भीमराव अंबेडकर: जाति से परे एक राष्ट्रीय नेता की पहचान
डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण
Baba Bhimrao Ambedkar (Image Credit-Social Media)
डॉ. भीमराव अंबेडकर की राजनीति: बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम अक्सर यह कहते हैं कि सामाजिक ढांचे को पूरी तरह से बदलना होगा। लेकिन यह समझना आवश्यक है कि कोई भी संरचना, जो अनुशासन पर आधारित है, उसे अचानक समाप्त करना संभव नहीं है। इसके साथ ही, समाज की संतुलित गतिशीलता को बनाए रखने के लिए एक क्षैतिज आयाम भी आवश्यक है।
स्वतंत्र भारत को शताब्दियों की गुलामी के बाद मिली स्वतंत्रता को बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। यदि देश में कोई भी विदेशी या आंतरिक शक्तियाँ सक्रिय होती हैं, तो यह स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। लंबे समय तक गुलामी का प्रभाव आज भी जातिगत संकीर्णता और धार्मिक उन्माद के रूप में हमारे समाज में विद्यमान है।
कांशीराम और उनके अनुयायी डॉ. अंबेडकर को एक जातीय फ्रेम में सीमित करने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि अंबेडकर का योगदान केवल एक जाति तक सीमित नहीं था। उन्होंने सामाजिक न्याय, समानता और मानव गरिमा के लिए संघर्ष किया।
अंबेडकर की व्यापक दृष्टि
अंबेडकर को सीमित न करें
भारतीय संविधान का निर्माण कर डॉ. अंबेडकर 20वीं शताब्दी के स्मृतिकार बन गए। 26 जनवरी 1950 को संविधान को समर्पित करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी भारतीय नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक न्याय का अधिकार होगा। इसी कारण उन्हें ‘भारत का मनु’ कहा गया।
आज वही अंबेडकरवादी लोग ‘मनुवाद’ के नाम पर सामाजिक व्यवस्था को कलंकित करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने जातीय विभाजन को बढ़ावा देकर राजनीतिक सत्ता प्राप्त की है। भारतीय राजनीति हमेशा से जातीय और साम्प्रदायिक शक्तियों के इर्द-गिर्द घूमती रही है।
डॉ. अंबेडकर का सच्चा उत्तराधिकार
डॉ. अंबेडकर का सच्चा उत्तराधिकार
संस्थाएँ हमेशा एक संरचना पर आधारित होती हैं। यदि हम यह मान लें कि सब कुछ समान होगा, तो यह व्यावहारिक नहीं है। यह सोच बचकानी है। दुर्भाग्य से, ऐसे विचार रखने वाले लोग खुद को डॉ. अंबेडकर का उत्तराधिकारी मानते हैं।
कुछ राजनीतिक दल अंबेडकर के नाम पर अपनी दुकान चला रहे हैं, जबकि महात्मा गांधी और अन्य महापुरुषों को किसी संगठन की संपत्ति नहीं बनाया गया। तो अंबेडकर को जातीय दायरे में क्यों समेटा जा रहा है?
अंबेडकर की चेतावनी
अंबेडकर की दृष्टि और चेतावनी
डॉ. अंबेडकर ने 5 फरवरी 1950 को संसद में चेतावनी दी थी कि भारत ने अपनी स्वतंत्रता अपने ही लोगों की गद्दारी के कारण खोई थी। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे दाहिर की हार का कारण उसके सेनापतियों का रिश्वत लेना था। आज के ‘अंबेडकरवादी’ उसी परंपरा को दोहरा रहे हैं।
आज अंबेडकर को जाति में बांधकर सामाजिक असमानता का खेल खेला जा रहा है। यह उनके संघर्ष का अपमान है।
अंबेडकर का राष्ट्रीय दृष्टिकोण
अंबेडकर की राष्ट्रीय दृष्टि
डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि जाति आधारित सोच आर्थिक विकास में बाधा डालती है। ‘अंबेडकरवादी’ बनने का दावा करने वालों को यह समझना चाहिए। लेकिन कई लोग उनके जीवन और विचारधारा से अनजान हैं।
डॉ. अंबेडकर की पत्नी सविता अंबेडकर को हरवाने में भी ऐसे ही तथाकथित अंबेडकरवादियों का हाथ था। यह आवश्यक है कि इन चेहरों को बेनकाब किया जाए।
अंबेडकर का मार्गदर्शन
अंबेडकर का मार्गदर्शन और युगधर्म
भीमराव अंबेडकर ने लोकसभा चुनाव में हारने के बाद नेहरू को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘अब दलित समाज अपने हितों को समझने योग्य हो गया है’। लेकिन आज उसी दलित हितों की आड़ में नकली अंबेडकरवादी राजनीति की जा रही है।
गांधी, बुद्ध, ईसा और अंबेडकर ने हमें जो मूल्य दिए हैं, वे सत्य, समानता और करुणा पर आधारित हैं।