डिंपल यादव: सादगी में छिपी शक्ति और घुड़सवारी का जुनून
डिंपल यादव की प्रेरणादायक कहानी
Dimple Yadav Intresting Story
Dimple Yadav Intresting Story
डिंपल यादव की कहानी: जब राजनीति में दिखावे और भव्यता की होड़ होती है, तब किसी नेता की सादगी उसकी सबसे बड़ी ताकत बन जाती है। समाजवादी पार्टी की नेता और मैनपुरी की सांसद डिंपल यादव इस बात की एक बेहतरीन मिसाल हैं। वे पारिवारिक समारोहों से लेकर राजनीतिक मंचों तक हमेशा साधारण और सहज कपड़ों में नजर आती हैं। दिलचस्प बात यह है कि वे भले ही बीएमडब्ल्यू या इनोवा जैसी गाड़ियों में यात्रा करती हैं, लेकिन उनके नाम पर कोई भी कार पंजीकृत नहीं है।
घुड़सवारी की शौकीन डिंपल का यह जुनून बचपन से ही उनके साथ है, जिसे उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। उनकी बेटी टीना यादव भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।
बचपन से घुड़सवारी की दीवानी
डिंपल यादव का जन्म 15 जनवरी 1978 को पुणे, महाराष्ट्र में एक राजपूत परिवार में हुआ। उनके पिता एस.सी. रावत भारतीय सेना में अधिकारी थे, जिससे उनका बचपन देश के विभिन्न हिस्सों में बीता। सेना के अनुशासित माहौल ने उन्हें सादगी, आत्मनिर्भरता और कर्तव्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाया। लेकिन बचपन से ही घोड़े और घुड़सवारी उनके लिए एक विशेष आकर्षण रहे हैं।
वे जब भी मौका पातीं, रेसकोर्स और कैवेलरी क्लब जातीं। लखनऊ के ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज और बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान भी उनका यह शौक बरकरार रहा। उन्होंने घुड़सवारी की ट्रेनिंग ली और स्थानीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया।
रेसकोर्स में पहचान
डिंपल यादव के लिए घुड़सवारी केवल एक शौक नहीं, बल्कि एक जुनून है। वे लखनऊ रेसकोर्स और कैंटोनमेंट के घुड़सवारी क्लबों में नियमित रूप से जाती थीं। उन्होंने राज्य स्तरीय इक्वेस्ट्रियन प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया और उन्हें 'फर्स्ट लेडी ऑन हॉर्सबैक' के नाम से जाना जाने लगा।
वे रेसिंग ट्रैक्स पर भी नजर आती थीं। हालांकि वे प्रोफेशनल रेसर नहीं थीं, लेकिन सीनियर और जूनियर कैटेगरी की स्पर्धाओं में सक्रिय रहती थीं। खास बात यह है कि वे अपने घोड़ों को खुद ट्रेन करतीं और उनकी देखभाल में व्यक्तिगत रुचि रखतीं।
बेटी टीना का घुड़सवारी में योगदान
डिंपल यादव की बड़ी बेटी टीना यादव भी घोड़ों और रेसिंग ट्रैक के प्रति उतनी ही उत्साही हैं। वह अपने सोशल मीडिया पर अक्सर घुड़सवारी की तस्वीरें साझा करती हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की इक्वेस्ट्रियन प्रतियोगिताओं में भाग लिया और मेडल भी जीते हैं।
डिंपल कहती हैं, “टीना को बचपन से ही घोड़ों में दिलचस्पी थी। हमने उस पर कोई दबाव नहीं डाला। वह खुद ही रेसकोर्स जाने लगी और अब प्रोफेशनल ट्रेनिंग ले रही है।”
सादगी की मिसाल
दिलचस्प बात यह है कि डिंपल यादव भले ही लक्जरी गाड़ियों में यात्रा करती हैं, लेकिन उनके नाम पर कोई भी वाहन पंजीकृत नहीं है। उनके 2024 के चुनावी हलफनामे में स्पष्ट लिखा है कि उनके नाम कोई कार नहीं है। वे जिस गाड़ी में सफर करती हैं, वह या तो पार्टी या परिवार की होती है।
राजनीति में वे साधारण साड़ियों या कुर्ता-पायजामा में नजर आती हैं। न भारी मेकअप, न महंगे गहने। मैनपुरी में नामांकन भरते समय भी उन्होंने न कोई तामझाम किया और न ही जुलूस निकाला।
राजनीतिक सफर की शुरुआत
डिंपल यादव की राजनीति में एंट्री अचानक हुई। 2009 में कन्नौज उपचुनाव में अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद उन्हें पार्टी ने उम्मीदवार बनाया, हालांकि वे उस चुनाव में हार गईं। लेकिन 2012 में वे कन्नौज से निर्विरोध जीतीं—जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक दुर्लभ घटना थी।
इसके बाद 2014 में उन्होंने लोकसभा चुनाव जीता और महिला अधिकार, शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर मुखर रहीं। वे महिला आरक्षण विधेयक पर भी बेबाकी से बोलती आई हैं।
2025 में राजनीतिक जिम्मेदारी
2024 में उन्होंने मैनपुरी से भारी मतों से जीत दर्ज की, जो मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत मानी जाती है। इस जीत ने अखिलेश यादव के नेतृत्व और डिंपल की सादगीपूर्ण छवि को और मजबूत किया।
चुनाव के बाद उन्हें समाजवादी पार्टी के महिला प्रकोष्ठ की प्रमुख जिम्मेदारी दी गई। वर्तमान में वे मैनपुरी की सांसद हैं और संसद की महिला एवं बाल विकास समिति की सदस्य भी। हाल ही में संसद में महिला सुरक्षा और बेटियों की उच्च शिक्षा पर उनके सवालों ने व्यापक सराहना पाई।
सादगी और जनता से संवाद
डिंपल यादव की सबसे बड़ी ताकत उनकी सादगी है। वे जनता के बीच जटिल राजनीतिक भाषण नहीं देतीं, बल्कि सीधे संवाद करती हैं। गांव की महिलाओं के बीच बैठकर उनकी समस्याएं सुनना, बच्चों को किताबें बांटना, वृद्धाओं से हंसी-मजाक करना उनके लिए रोजमर्रा का काम है।
वे राजनीति में ‘इमोशनल कनेक्ट’ का एक सशक्त उदाहरण हैं। समर्थकों को वे हमेशा परिवार की तरह देखती हैं, जिससे उनका जुड़ाव और भी गहरा होता है।
आर्थिक स्थिति और समाज सेवा
2024 के हलफनामे के अनुसार, डिंपल यादव के पास लगभग 12 करोड़ की चल-अचल संपत्ति है। इसके बावजूद उनके जीवन में कहीं भी इसका प्रदर्शन नहीं दिखता। उनके पास न कारें हैं, न भारी गहनों का भंडार।
वे अक्सर जमीन पर बैठकर गरीब महिलाओं से बातें करतीं, बच्चों को बैग देतीं और वृद्ध जनों को कंबल बांटती नजर आती हैं। यही सादगी उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाती है।
महिलाओं के हक के लिए उठाए कदम
डिंपल यादव राजनीति के साथ-साथ समाज सेवा में भी सक्रिय हैं। उन्होंने महिला स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, किशोरियों के लिए मेंस्ट्रुअल हाइजीन किट वितरण, और कन्या शिक्षा पर कई पहलें की हैं। मैनपुरी में उनके प्रयास से ‘महिला शिकायत केंद्र’ स्थापित हुआ, जहाँ पीड़ित महिलाएं सीधे उनसे संपर्क कर सकती हैं।
उनकी यह यात्रा दिखाती है कि नई राजनीति में सादगी, ईमानदारी और जनता से सीधा जुड़ाव ही असली पूंजी है। घुड़सवारी जैसे शाही शौक रखने वाली यह नेता सत्ता की रेस में भी उसी संतुलन और आत्मविश्वास से आगे बढ़ रही हैं। उनकी बेटी टीना भी यही परंपरा आगे बढ़ा रही हैं।