कौन हैं नूरजहां? जानें 'क्वीन ऑफ मेलोडी' की अनकही कहानी
नूरजहां: एक अद्वितीय आवाज की कहानी
नई दिल्ली, 22 दिसंबर। 'क्वीन ऑफ मेलोडी' और 'मल्लिका-ए-तरन्नुम' के नाम से जानी जाने वाली नूरजहां एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनकी आवाज का जादू न केवल पाकिस्तान में, बल्कि भारत में भी महसूस किया गया। उनका निधन 23 दिसंबर 2000 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ।
भारत में जन्मी नूरजहां ने अपनी मधुर आवाज और अभिनय के जरिए हिंदी-उर्दू सिनेमा को चार दशकों तक समृद्ध किया। पाकिस्तान में भी उन्हें एक प्रमुख हस्ती माना जाता रहा। उनकी गायिकी और खूबसूरती के दीवाने दुनिया भर में थे। नूरजहां का जन्म 21 सितंबर 1926 को पंजाब के कसूर शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनका बचपन का नाम अल्लाह राखी था, जिसे बाद में नूरजहां के नाम से जाना गया।
कहा जाता है कि उनके जन्म के समय उनकी रोने की आवाज में भी संगीत की लय थी। उनकी बुआ ने भविष्यवाणी की थी कि वह बड़ी होकर एक प्लेबैक सिंगर बनेंगी। उनका परिवार थिएटर से जुड़ा था, जिससे घर का माहौल संगीतमय था। उनकी मां ने उनकी संगीत प्रतिभा को पहचाना और घर पर ही शिक्षा की व्यवस्था की। नूरजहां ने प्रारंभिक संगीत कज्जनबाई से और शास्त्रीय संगीत उस्ताद गुलाम मोहम्मद तथा बड़े गुलाम अली खां से सीखा।
1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद नूरजहां पाकिस्तान चली गईं। फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार ने उन्हें भारत में रहने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन नूरजहां ने कहा, "जहां मेरे पति हैं, वहीं मेरी जिंदगी है।" वह अपने पति शौकत हुसैन रिजवी के साथ पाकिस्तान चली गईं। बंटवारे के बाद, 1983 में नूरजहां पहली और आखिरी बार अपनी बेटियों के साथ भारत आईं।
वह पाकिस्तान में फिल्मों में गायिकी और अभिनय करती रहीं। विभाजन के 35 साल बाद एक समारोह में नूरजहां भारत आईं और भावुक होकर रो पड़ीं। दिलीप कुमार को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कई यादें साझा कीं। उन्होंने बताया कि लोगों के सवाल पर कि उनकी बेटियां क्यों नहीं गातीं, नूरजहां ने कहा, "आवाज की रियाज बचपन से होती है, बड़ा होने पर यह मुश्किल है।"
उन्होंने यह भी बताया कि वह मौसिकी को बेवफा मानती थीं। उनका मानना था कि थोड़ी सी लापरवाही से प्रतिभा दूर हो जाती है। नूरजहां ने कहा, "एक दिन रियाज छोड़ो तो यह 21 दिन साथ छोड़ देता है। मौसिकी का काम बड़ा बेवफा होता है।"
नूरजहां ने बंटवारे के दर्द को याद करते हुए भावुक बातें कीं और बताया कि भारत आकर उन्हें कितना प्यार मिला। उन्होंने कहा कि कोई भी अपने बसे-बसाए घर को छोड़ना नहीं चाहता, लेकिन उन्हें यह करना पड़ा। हालांकि, भारत आने के लिए उन्होंने रोज दुआ की और इसके लिए 35 साल इंतजार किया।