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हुमा कुरैशी ने 'सिंगल सलमा' के सीमित स्क्रीन पर रिलीज पर उठाई आवाज, क्या मिलेगी समानता?

हुमा कुरैशी ने अपनी फिल्म 'सिंगल सलमा' के सीमित स्क्रीन पर रिलीज को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने सोशल मीडिया पर बताया कि कैसे छोटी फिल्मों को बड़े प्रोडक्शन हाउस के बीच जगह बनाने में कठिनाई होती है। उनके इस बयान ने दर्शकों और फिल्म इंडस्ट्री में एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया है। जानें, क्या दर्शक उनकी बात का समर्थन कर रहे हैं और क्या बदलाव की आवश्यकता है।
 
हुमा कुरैशी ने 'सिंगल सलमा' के सीमित स्क्रीन पर रिलीज पर उठाई आवाज, क्या मिलेगी समानता?

फिल्मों के लिए समान अवसर की मांग




मुंबई, 2 नवंबर। भारतीय फिल्म उद्योग विशाल है, जिसमें हर हफ्ते विभिन्न भाषाओं में नई फिल्में प्रदर्शित होती हैं। कुछ फिल्में बड़े बजट और प्रसिद्ध सितारों के साथ आती हैं, जबकि अन्य छोटी और कहानी पर आधारित होती हैं। इन छोटी फिल्मों के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है, थिएटर में जगह प्राप्त करना।


बड़े प्रोडक्शन हाउस और स्टार-स्टडेड फिल्मों के बीच, छोटी फिल्मों को अक्सर सीमित स्क्रीन और कम शो टाइम मिलते हैं। इस कारण, कई बार अच्छी कहानियों के बावजूद, ये फिल्में दर्शकों तक नहीं पहुँच पातीं। हाल ही में, अभिनेत्री और निर्माता हुमा कुरैशी ने इसी मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की, जब उनकी फिल्म 'सिंगल सलमा' को देशभर में बहुत सीमित स्क्रीन पर रिलीज किया गया।


हुमा ने सोशल मीडिया पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी फिल्म को पर्याप्त थिएटर नहीं मिले। उन्होंने लिखा, "'सिंगल सलमा' जैसी फिल्मों में न तो बड़े सितारे होते हैं और न ही करोड़ों का मार्केटिंग बजट। ऐसे में इन फिल्मों को थिएटरों में अपनी जगह बनाना और दर्शकों तक पहुंचना बहुत कठिन हो जाता है। आज भी सिस्टम उन फिल्मों को प्राथमिकता देता है जो पहले से सुरक्षित मानी जाती हैं, यानी बड़ी बजट और स्टार वाली फिल्में। इंडस्ट्री को एक संतुलित व्यवस्था की आवश्यकता है, जहां हर फिल्म, चाहे छोटी हो या बड़ी, उसे समान अवसर मिले।"


हुमा की इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा को जन्म दिया। देश के कई शहरों जैसे लखनऊ, पटना, दिल्ली और कोलकाता के प्रशंसकों ने उनकी बात का समर्थन किया। लोगों ने थिएटर मालिकों से अपील की कि 'सिंगल सलमा' के शो बढ़ाए जाएं ताकि अधिक दर्शक इसे देख सकें।


कई दर्शकों ने अपने टिकट बुकिंग ऐप्स के स्क्रीनशॉट साझा किए, जिनमें दिख रहा है कि फिल्म के शो या तो हाउसफुल हैं या उपलब्ध ही नहीं। इससे स्पष्ट है कि लोग फिल्म देखना चाहते हैं, लेकिन स्क्रीन की कमी के कारण उन्हें मौका नहीं मिल रहा।


हुमा के बयान ने फिल्म इंडस्ट्री में भी एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया है। कई लोग मानते हैं कि थिएटरों में फिल्मों के वितरण को लेकर एक संतुलित और न्यायपूर्ण प्रणाली की सख्त आवश्यकता है। बड़ी फिल्मों को हमेशा पर्याप्त जगह मिल जाती है, लेकिन छोटी फिल्मों के लिए स्क्रीन मिलना किसी चुनौती से कम नहीं होता।


यदि वितरण प्रक्रिया में सुधार किया जाए, तो कंटेंट-ड्रिवन सिनेमा को भी आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा। इससे न केवल नए कलाकारों और निर्देशकों को लाभ होगा, बल्कि दर्शकों को भी विभिन्न और बेहतर कहानियाँ देखने को मिलेंगी।


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