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5 नवंबर: भूपेन हजारिका और बी. आर. चोपड़ा की अमर धरोहर

5 नवंबर को भूपेन हजारिका और बी. आर. चोपड़ा की पुण्यतिथि है, जो भारतीय कला और सिनेमा के दो महान हस्तियों के रूप में जाने जाते हैं। भूपेन हजारिका ने संगीत के माध्यम से मानवता को जोड़ा, जबकि बी. आर. चोपड़ा ने महाकाव्य और सामाजिक कथाओं के जरिए विचारों का प्रसार किया। इस दिन को भारतीय कला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। जानें इन दोनों की जीवन यात्रा और उनके योगदान के बारे में।
 
5 नवंबर: भूपेन हजारिका और बी. आर. चोपड़ा की अमर धरोहर

5 नवंबर का ऐतिहासिक महत्व

Aaj Ka Itihas 5 November Bhupen Hazarika and Br Chopra Death Anniversary

Aaj Ka Itihas 5 November Bhupen Hazarika and Br Chopra Death Anniversary

5 नवंबर का इतिहास: भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक भूपेन हजारिका की गहरी आवाज़ में गाया गया उनका गीत 'दिल हूम-हूम करे' आज भी लोगों के दिलों में गूंजता है। इसी तरह, बी. आर. चोपड़ा का धारावाहिक 'महाभारत' का उद्घाटन वाक्य 'मैं समय हूं' और शंख की ध्वनि आज भी सुनाई देती है, जो हमें उस युग में वापस ले जाती है।


भारतीय कला और सिनेमा में 5 नवंबर का महत्व

भारतीय कला और सिनेमा के क्षेत्र में 5 नवंबर का दिन हमेशा याद किया जाएगा। यह वही दिन है जब भूपेन हजारिका और बी. आर. चोपड़ा ने इस दुनिया को अलविदा कहा। दोनों ने अपने-अपने क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया, जिसमें एक ने संगीत के माध्यम से मानवता को जोड़ा और दूसरे ने महाकाव्य और सामाजिक कथाओं के जरिए विचारों का प्रसार किया।


भूपेन हजारिका: असम की सुरों की पहचान

भूपेन हजारिका - असम की मिट्टी से उठी एक सुरीली आवाज़
डॉ. भूपेन हजारिका का जन्म 8 सितंबर 1926 को असम के सदिया में हुआ। वे केवल गायक नहीं, बल्कि लोक संस्कृति के संवाहक भी थे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की और जल्द ही अपने गीतों के माध्यम से समाज की गहराइयों को छू लिया।


भूपेन हजारिका के गीतों की गहराई

उनके गीत केवल मनोरंजन नहीं थे, बल्कि समाज की पीड़ा और एकता का प्रतीक थे। उन्होंने कई असमिया फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया, जिनमें 'एरा बतर सुर' और 'प्रतिध्वनि' शामिल हैं। हिंदी फिल्म 'रुदाली' का प्रसिद्ध गीत 'दिल हूम-हूम करे' उनकी असमिया रचना का रूपांतर था।


पत्रकारिता से संगीत की ओर

कम लोग जानते हैं कि हजारिका एक प्रशिक्षित पत्रकार भी थे। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की और चीनी युद्ध को कवर किया। इस अनुभव से उन्होंने 'कोतो जुवानोर मृत्यु होल' जैसे गीत लिखे, जो युद्ध की त्रासदी को दर्शाते हैं।


भूपेन हजारिका के पुरस्कार

भूपेन हजारिका को भारत रत्न सहित कई पुरस्कार मिले, जैसे दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्म भूषण। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी संगीत के प्रति अपनी लगन बनाए रखी।


बी. आर. चोपड़ा: दिल को छू लेने वाली कहानियों के निर्माता

बी. आर. चोपड़ा - दिल को छू लेने वाली कहानियों के ज़रिए समाज को जोड़ने वाले निर्देशक
बी. आर. चोपड़ा का जन्म 22 अप्रैल 1914 को लुधियाना में हुआ। उन्होंने लाहौर यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी में एम.ए. किया और पत्रकारिता से निर्देशन की ओर बढ़े।


विभाजन की त्रासदी और फिल्म इंडस्ट्री में कदम

विभाजन के समय लाहौर में दंगों के कारण उनकी पहली फिल्म अधूरी रह गई। 1947 में मुंबई आकर उन्होंने 'करवट' बनाई, जो असफल रही, लेकिन 'अफसाना' ने उन्हें पहचान दिलाई।


बी. आर. फिल्म्स और कालजयी फिल्में

1955 में बी. आर. चोपड़ा ने अपना प्रोडक्शन हाउस खोला, जिसके तहत 'नया दौर', 'साधना', और 'धर्मपुत्र' जैसी कालजयी फिल्में बनीं।


महाभारत: भारतीय टेलीविजन का मील का पत्थर

1988 में 'महाभारत' का निर्माण किया, जो भारतीय टीवी इतिहास की सबसे लोकप्रिय गाथा बन गई। इस श्रृंखला ने दर्शकों के दिलों में एक विशेष स्थान बना लिया।


बी. आर. चोपड़ा का अंतिम सफर

बी. आर. चोपड़ा की आखिरी फिल्म 'भूतनाथ' थी, जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। 5 नवंबर 2008 को उन्होंने 94 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। उनके योगदान को कई पुरस्कारों से सराहा गया।


5 नवंबर: एक भावनात्मक दिन

5 नवंबर कला और सिनेमा के लिए एक गहरा भावनात्मक दिन है। यह वही तारीख है जब भूपेन हजारिका और बी. आर. चोपड़ा ने इस दुनिया को छोड़ा, लेकिन उनकी पहचान आज भी जीवित है।


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